सम्पादकीय

चीनी अड़ंगा

Subhi
21 Oct 2022 5:23 AM GMT
चीनी अड़ंगा
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भारत और अमेरिका ने पाकिस्तान स्थित लश्कर के आतंकी शाहिद महमूद को वैश्विक आतंकी सूची में डालने का संयुक्त राष्ट्र के सामने प्रस्ताव रखा था, मगर चीन ने उसमें अड़ंगा डाल दिया।

Written by जनसत्ता: भारत और अमेरिका ने पाकिस्तान स्थित लश्कर के आतंकी शाहिद महमूद को वैश्विक आतंकी सूची में डालने का संयुक्त राष्ट्र के सामने प्रस्ताव रखा था, मगर चीन ने उसमें अड़ंगा डाल दिया। अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने शाहिद महमूद और लश्कर के एक और आतंकी मोहम्मद सरवर को लश्कर-ए-तैयबा के लिए धन जुटाने और नेटवर्क स्थापित करने के आरोप में प्रतिबंधित कर दिया था।

अब शाहिद को वैश्विक आतंकवादियों की सूची में डालने का प्रस्ताव रखा गया था। मगर जैसा कि चीन सदा से पाकिस्तान के प्रति मोह के चलते करता आया है, उसने इस प्रस्ताव पर विरोध जाहिर कर दिया। संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक अगर उसका एक भी सदस्य किसी मसले पर विरोध जताता है, तो उस पर सहमति नहीं मानी जाती। इससे पहले भी पाकिस्तान में पनाह पाए कई आतंकियों को वैश्विक सूची में डालने के प्रस्ताव पर चीन अपनी असहमति जाहिर कर चुका है। इससे साफ है कि वह पाकिस्तान में पनप रहे आतंकवाद को आतंकवाद नहीं मानता।

ऐसा नहीं कि केवल भारत आतंकवाद से जूझ रहा है, दुनिया के तमाम देशों में इसके जख्म हैं। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने दुनिया भर से आतंकवाद खत्म करने के लिए हाथ मिलाया था। चीन भी उनमें शामिल है। यों संयुक्त राष्ट्र का मकसद ही है अपने सदस्य देशों में युद्ध रोकना, आतंकवाद जैसी समस्याओं को समाप्त कर शांति की स्थापना करना। मगर चीन को जब भी अपने स्वार्थ नजर आते हैं, वह इन बुनियादी सिद्धांतों और सरोकारों से मुंह मोड़ लेता है।

वह इस बात से अनजान नहीं माना जा सकता कि पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलते हैं। इसके अनेक पुख्ता प्रमाण हैं। मुंबई हमले से जुड़े ढेरों दस्तावेज अंतरराष्ट्रीय मंचों के सामने हैं, फिर भी जब उसके सरगना को वैश्विक आतंकी सूची में डालने का प्रस्ताव रखा गया, तो चीन ने उसके विरुद्ध मतदान किया। चीन के इस रुख पर दुनिया भर में हैरानी प्रकट की जाती रही है और आलोचना भी होती है कि इस तरह वह वैश्विक आतंकवाद से लड़ने में कैसा सहयोग कर रहा है। मगर खासकर पाकिस्तान में जड़ें जमाए आतंकवादी संगठनों के प्रति उसका रुख नरम ही देखा जाता है।

दरअसल, पाकिस्तान के जरिए चीन भारत पर दबाव बनाए रखना चाहता है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनाए रख कर वह भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए रखने का प्रयास करता है। ऐसा उसे पाकिस्तान को अपने पाले में रख कर ही कर पाना संभव है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए चीन ने उसकी काफी वित्तीय मदद की है, जिसके बदले उसने पाकिस्तान में कई सामरिक परियोजनाएं भी शुरू की हैं। यही रणनीति उसने श्रीलंका में अपना रखी है। नेपाल को भी उसने अपने पाले में खींचने की भरपूर कोशिश की थी।

इस तरह वह भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश करता रहा है। ऐसे में अगर वह पाकिस्तान में रह रहे आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी सूची में शामिल करने पर सहमति जताएगा, तो उसका समीकरण गड़बड़ हो सकता है। पाकिस्तान में पल रहा आतंकवाद एक तरह से चीन की रणनीति के अनुकूल है। मगर वह शायद इस बात को भूल जाता है कि इसी तरह कभी अमेरिका ने भी पाकिस्तान में आतंकवाद को पोसा था, जो अब उस पर भारी पड़ रहा है।


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