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- ऐसे बंद की व्यंजना
किसान आंदोलन का लगातार बढ़ते चले जाना न तो फायदेमंद है और न अनुकरणीय। दिल्ली से लेकर केरल तक 42 किसान संगठनों के आंदोलन का असर चिंता में डालने के लिए पर्याप्त संकेत मुहैया कराता है। हालांकि, यह सकारात्मक बात है कि भारत बंद शांतिपूर्ण रहा। न किसानों की ओर से उग्रता दिखी और न कहीं प्रशासन ने आपा खोया। ऐसा लगता है, दोनों तरफ से किसान आंदोलन को लंबे समय तक चलाए रखने की तैयारी है और समाधान के लिए संवाद की प्रक्रिया बंद है। दोनों ओर से समय-समय पर ऐसे तीखे प्रहार होते हैं कि संवाद की गुंजाइश बनते-बनते बिगड़ जाती है। इस आंदोलन के चलते न केवल सरकार की आलोचना हो रही है, किसान नेताओं को भी काफी कुछ सुनना पड़ रहा है। मकसद चाहे जो हो, भारत बंद का समर्थन नहीं किया जा सकता। आज देश जिस मोड़ पर है, हम किसी भी तरह की आर्थिक गतिविधि को रोक नहीं सकते। रोकना तो दूर की बात, किसी परिवहन को भी हम कुछ देर के लिए भी बाधित नहीं कर सकते, क्योंकि देश की जो विकास दर है, वह बेरोजगारी को बढ़ाती चली जा रही है। आर्थिक नुकसान का आकलन केवल सरकार को ही नहीं, बल्कि किसानों को भी जरूर करना चाहिए।