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लगभग 41 करोड़ उद्यमियों को फायदा मिला है.
देश के छोटे उद्यमों के लिए आसानी से वित्त हासिल कर पाना लंबे समय तक मुश्किल रहा था. इसके समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ अप्रैल, 2015 को मुद्रा योजना की शुरुआत की थी. बीते आठ वर्षों में इस योजना के तहत बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा 23.2 लाख करोड़ रुपये की बड़ी राशि मुहैया करायी गयी है. इससे लगभग 41 करोड़ उद्यमियों को फायदा मिला है.
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में गैर-कॉर्पोरेट और गैर-कृषि क्षेत्र के सूक्ष्म एवं छोटे उद्यमों को 10 लाख रुपये तक की राशि दी जाती है. इस कर्ज के बदले में ऐसे उद्यमियों को किसी तरह की परिसंपत्ति को गिरवी भी नहीं रखना पड़ता है. बिना किसी गारंटी या गिरवी के कर्ज मिलने से इन उद्यमियों के लिए अपनी कारोबारी गतिविधियों को बढ़ाने में मदद मिली है तथा उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई है.
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में छोटे उद्यमों का बहुत बड़ा योगदान है. इनके विकास को सुनिश्चित किये बिना आर्थिक वृद्धि की गति को बढ़ा पाना संभव नहीं है. साथ ही, कोई भी वित्तीय योजना तभी सफल हो सकती है, जब उसमें सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की व्यापक भागीदारी हो. चाहे जन-धन योजना हो, विभिन्न कल्याण कार्यक्रम हों, कौशल विकास की पहले हों, डिजिटल तकनीक को सुलभ बनाने का प्रयास हो, या फिर मुद्रा या स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाएं हों, सरकार ने समावेशी विकास और भागीदारी को हमेशा प्राथमिकता दी है.
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के लाभार्थियों में लगभग 68 प्रतिशत महिला उद्यमी हैं तथा 51 प्रतिशत खाते अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के उद्यमियों के हैं. स्टैंड अप इंडिया योजना तो इन्हीं वर्गों के ऐसे उद्यमियों के लिए है, जो अपना नया उद्यम शुरू करना चाहते हैं. इस प्रकार, ऐसी योजनाएं केवल आर्थिक या वित्तीय योजनाएं ही नहीं है, बल्कि सामाजिक विकास और समानता की दिशा में ठोस कदम भी हैं.
मुद्रा योजना के आठ साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लाभार्थियों की उद्यमिता की बड़ी प्रशंसा की है. सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यमों ने ‘मेक इन इंडिया’, आत्मनिर्भर भारत, वोकल फॉर लोकल जैसे अभियानों को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभायी है. मुद्रा योजना को तीन भागों में बांटा गया है- शिशु (50 हजार रुपये तक), किशोर (50 हजार से पांच लाख रुपये तक) तथा तरुण (पांच से दस लाख रुपये तक). यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस योजना में बांटे गये कुल कर्ज में शिशु खातों की हिस्सेदारी 83 प्रतिशत है.
सोर्स: prabhatkhabar
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Triveni
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