सम्पादकीय

सुब्रमण्यम स्वामी की ना दुश्मनी अच्छी ना दोस्ती, गांधी परिवार के बाद क्या अब बीजेपी बनेगी निशाना?

Gulabi
23 May 2021 8:25 AM GMT
सुब्रमण्यम स्वामी की ना दुश्मनी अच्छी ना दोस्ती, गांधी परिवार के बाद क्या अब बीजेपी बनेगी निशाना?
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सुब्रमण्यम स्वामी की ना दुश्मनी अच्छी ना दोस्ती

डॉ सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) की एक खासियत है. वह जिसके पीछे पड़ जाते हैं उसे तबाह करके ही छोड़ते हैं.अगर 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की सरकार गिरी तो इसके पीछे स्वामी ही थे. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जयललिता (J. Jayalalithaa) को आय से अधिक सम्पति के मामले में जेल भी उनके कारण ही हुई. और अब वह सोनिया गाँधी (Sonia Gandhi) और राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) के पीछे हाथ धो कर पड़े हुए हैं. स्वामी का व्यक्तित्व अन्य नेताओं से बिलकुल भिन्न है. उनके अन्दर चाणक्य और नारद का वास एक साथ है. चाणक्य की तरह वह जिसके पीछे पड़ जाए उनकी खैर नहीं और नारद की तरह सब का कच्चा चिट्ठा उनके पास होता है.


बात है 1980 के आखिरी वर्षों की. उन दिनों मोबाइल फ़ोन आया नहीं था और पत्रकारों के खबर ढूढने का तरीका आज से थोडा अलग था. अन्दर की खबर निकालने के लिए पत्रकार बेवजह भी नेताओं से मिलने जाते थे. ऐसी में एक बार मेरी उनसे मुलाकात हुयी. वह राज्यसभा के सदस्य होते थे. राजनीति में उनको लाने वाले वाजपयी थे पर उन दिनों वह वाजपेयी से खफा चल रहे थे. अपने सरकारी बंगले के स्टडी रूम में ले कर गए और फाइल में से एक पुराना दस्तावेज निकाला. "यह है वाजपेयी का माफीनामा जो उन्होंने 1942 जेल जाने से बचने के लिए दिया था. अगर छापने की हिम्मत है तो तुम्हे इसकी कॉपी दे सकता हूँ," स्वामी ने कहा.

जब सुब्रमण्यम स्वामी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरा दी थी
खबर बड़ी हो सकती थी और धमाकेदार भी. मैं ने अपने अख़बार के संपादक से बात की और उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि अगर डॉ. स्वामी कोई दस्तावेज़ दे रहे हैं तो वह जाली भी हो सकता है. मेरे उत्साह पर ठंढा पानी फिर गया और उस बारे में मेरी डॉ. स्वामी से फिर कोई बात नहीं हुई. कई वर्षों बाद यह साबित हो गया कि वह दस्तावेज़ था तो असली पर वाजपेयी का कहना था कि चूंकि वह दस्तावेज़ उर्दू में लिखा था जो वह पढ़ नहीं सकते थे, उन्हें नहीं पता था कि उनमे क्या लिखा है. उन्होंने उस दस्तावेज़ पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर कर दिया था यह सोच कर कि उनमें वही लिखा होगा जो उन्होंने पुलिस को बयान दिया था. जब 1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ था तो वे लगभग 16 वर्ष के थे. अपने जन्मस्थान बटेसर में अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन को वह देख रहे थे. पुलिस ने उनको पकड़ा और एक दस्तावेज़ पर उनका हस्ताक्षर लेकर छोड़ दिया क्योंकि वह आन्दोलनकारियों में शामिल नहीं थे.

एक बड़ी खबर मेरे हाथ से जाती रही, जिसका मुझे उस समय गम ज़रूर हुआ था, पर अब नहीं, क्योंकि वाजपेयी ने किन परिस्थितियों में उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किया था उसकी जानकारी मुझे नहीं थी और अनजाने में ही सही, एक गलत खबर लिखने से मैं बच गया. पर चाणक्य की तरह स्वामी के अन्दर बदले के आग सुलगती रही. कहा जाता है कि गुस्से में मगध के नन्द राजा के दरबार में अपमान का बदला लेने के लिए चाणक्य ने अपनी चोटी खोल दी थी और कहा था कि वह उसें तब ही बांधेंगे जब वह नन्द वंश का नाश कर देंगे. चन्द्रगुप्त को चाणक्य ने अपना शिष्य बनाया और नन्द वंश का नाश कर के ही छोड़ा. डॉ स्वामी वाजपेयी का नाश तो नहीं कर सके पर अपना प्रतिशोध वाजपेयी सरकार को गिरा कर जरूर ले लिया. दिलचस्प बात यह है कि वाजपेयी सरकार गिराने में उन्होंने सोनिया गाँधी और जयललिता का साथ लिया था, बाद में उन दोनों के पीछे पड़ गए और 2013 में वह बीजेपी में शामिल हो गए.

जयललिता और गांधी परिवार के पीछे पड़े सुब्रमण्यम स्वामी
जयललिता के खिलाफ उन्होंने चेन्नई की अदालत में केस दर्ज कराया जिसमें जयललिता को चार साल की कारावास हुयी. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. चेन्नई हाई कोर्ट ने निचली अदालात्त का फैसला पलट दिया और जयललिता फिर से मुख्यमंत्री बन गईं. स्वामी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गए जहाँ उन्हें सफलता मिली. हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया, पर फैसला आने के कुछ ही समय पहले जयललिता का निधन हो चुका था. और अब वह 2012 से स्वामी सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के पीछे पड़े हुए हैं. उन्होंने मां-बेटे पर आरोप लगाया कि नेशनल हेराल्ड मामले में दोनों ने मिलकर 20,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया है.

नेशनल हेराल्ड और उर्दू अख़बार कौमी आवाज़ एसोसिएटेड जरनल्स प्राइवेट लिमिटेड (AJPL) कंपनी की सम्पति थी, जो नेहरु के समय से कांग्रेस पार्टी के अधीन था. दोनों अख़बार बंद हो गया था और स्वामी का आरोप है कि AJPLकी दिल्ली और उत्तर प्रदेश में स्थित सम्पति गाँधी परिवार की कंपनी यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड के नाम कर दी गयी और गैर क़ानूनी तरीके से यंग इंडियन को कांग्रेस पार्टी से व्याज मुक्त क़र्ज़ भी दिया गया. यह केस कई सालों से चल रहा है जिसमें स्वामी निचली अदालत, दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का चक्कर लगा चुके हैं. दिल्ली हाई कोर्ट में पिछले हफ्ते सुनवाई पूरी हो गयी जिसपर 22 जुलाई के बाद कभी भी फैसला आ सकता है. सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ने हाई कोर्ट से इस केस को खारिज करने की मांग की है.

फैसला जो भी आये पर मामला अभी लम्बा खिंचने वाला है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुचेगा और तब तक डॉ सुब्रमण्यम स्वामी का डर कांग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार को सताता रहेगा. स्वामी दस्तावेज इकट्ठा करने और केस करने के माहिर माने जाते हैं और ज्यादातर केसों में उनकी जीत होती है. बीजेपी जब विपक्ष में थी तो उसे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो गाँधी परिवार के नाक में दम भरता रहे. स्वामी भी उन दिनों बेरोजगार थे. 2013 में वह बीजेपी में शामिल हो गए और 2016 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया. बहुतों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो अर्थशाश्त्र के विशेषज्ञ हैं को शायद केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा. पर जब तक वह राज्यसभा के सदस्य बने तब तक स्वामी की उम्र 75 वर्ष से अधिक हो चुकी थी. मोदी ने 2014 में ही यह साफ़ कर दिया था कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को उनके मंत्रीमंडल में नहीं लिया जाएगा.

सुब्रमण्यम स्वामी की ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी अच्छी
बीजेपी को पता है कि स्वामी उस पुलिसवाले की तरह हैं जिससे ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी अच्छी. स्वामी को कहीं ना कहीं इसका मलाल तो है ही कि उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया और कभी कभी वह सरकार के खिलाफ बयान भी देते नज़र आते हैं. बीजेपी की अब समस्या यह है कि अगले वर्ष अप्रैल में स्वामी की राज्यसभा सदस्यता समाप्त हो जाएगी. स्वामी की इच्छा होगी कि उन्हें एक बार फिर से राज्यसभा में भेजा जाए,पर बीजेपी शायद इसके लिए तैयार नहीं होगी. देखाना दिलचस्प होगा कि अगर डॉ स्वामी को एक बार फिर से राज्यसभा में नहीं भेजा जाता है तो क्या वह मोदी के खिलाफ भी पड़ जायेगे? जहाँ स्वामी हैं वहां सब कुछ संभव है क्योकि डॉ सुब्रमण्यम स्वामी उस ऊंट की तरह है जो किस करवट बैठेगा किसी को नहीं पता.


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