सम्पादकीय

आफत की घड़ी में छात्र

Rani Sahu
1 March 2022 7:08 PM GMT
आफत की घड़ी में छात्र
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यूक्रेन युद्ध के बीच हिमाचल का सामाजिक पक्ष भी आहत है

यूक्रेन युद्ध के बीच हिमाचल का सामाजिक पक्ष भी आहत है और ऐसे कई अभिभावक मिल जाएंगे, जो अपने बच्चों के मार्फत एक घोर संकट का मुकाबला कर रहे हैं। अब कुछ सुरक्षित रास्ते बने हैं और रोमानियां-पोलैंड जैसे देशों के जरिए भारत लौट रहे बच्चों को कुशल पाकर राहत मिल रही है। पहली खेप में हिमाचल के भी 42 छात्र घर लौटे हैं, जबकि कुछ इससे पूर्व आए थे और कई अभी भी वहीं फंसे हैं। यूक्रेन में करियर की धूप सेंक रहे छात्रों के लिए यह दौर अति वेदना और पीड़ा का है। कई अमानवीय परिस्थितियों के बीच और युद्धक माहौल के अति कठोर, अनिश्चित और मारक लम्हों से खुद को बचा कर जो लौट पा रहे हैं, उनके लिए यह पुनर्मिलन का सबब है। ऐसे में अगर एक पक्ष किसी तरह की आलोचना में सरकार से शिकायत कर रहा है, तो यह जितना गैर जरूरी है उतना ही संवेदनशील भी। अगर प्रश्न उठ भी रहे हैं, तो यह हैरानी हो रही है कि भारत का चिकित्सा क्षेत्र किस कद्र यूक्रेन की शिक्षा का मोहताज बन चुका है या जो शिक्षा के पात्र यहां नहीं बन पा रहे, वे वहां शिक्षा की शरण में भाग्य आजमा रहे हैं। मौटे तौर पर बीस हजार भारतीयों में कितने हिमाचली रहे होंगे, लेकिन इस आंकड़े को चार सौ भी मान लें, तो इस जरूरत का आलम एक विशिष्ट समाज की संरचना करता है।

यह शिक्षा का नया प्रचलन या उपाधियों का ऐसा आखेट है जो एक साथ कई अभिभावकों की महत्त्वाकांक्षा को पूरा कर रहा था। हर साल कितने भारतीय वाया यूक्रेन डाक्टर बनते हैं या इस शिक्षा के बरअक्स देश के मेडिकल शिक्षा कितनी कठिन है, इसका भी खुलासा हो रहा है। हमें यह तो नहीं लगता कि किसी सस्ते रेट की बजह से बच्चे यूक्रेन का टिकट ले रहे थे, लेकिन यह जरूर है कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में मेडिकल पढ़ाई का विकल्प यूक्रेन ने इतना विस्तृत कर दिया कि हर साल हजारों बच्चे वहां का रुख करते देखे गए। हिमाचल भी इस दिशा में अग्रणी राज्य बना है। व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिहाज से यूक्रेन के पैमाने में फंसे बच्चांे के लिए अब आफत की कितनी घडि़यां बची हैं, इसका फैसला शीघ्रता से हो रहा है। सर्वप्रथम सभी की सकुशल घर वापसी वांछित है। इस दृष्टि से काफी प्रयत्न हो चुके हैं और जिनके सार्थक नतीजे सामने आ रहे हैं, लेकिन यूक्रेन में इंडियन छात्रों के प्रति नफरत से त्रासदी बढ़ जाती है।
उम्मीद है अगले कुछ दिनों मंे सभी लोग लौट आएंगे। यह दीगर है कि सकुशल वापसी के बाद छात्रों की चिंताएं समाप्त हो जाएंगी, बल्कि सरकार को अपने अगले कदम में यह फैसला भी लेना होगा कि इन बच्चों के करियर में आए इस मध्यांतर को फिर से कैसे पूरा कराया जाए। हो सकता है यह एक लंबी प्रक्रिया के तहत ही संभव हो या किसी तरह के मूल्यांकन से इसकी अहर्ता पूरी होगी, लेकिन बीस हजार छात्रों के सपने बचाने होंगे। हिमाचल भी अपने तौर पर कुछ पहल कर सकता है। दूसरी ओर यूक्रेन के सबक न केवल राष्ट्रीय फलक पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों, दबावों व परिस्थितियों के घनघोर अनिश्चिय में नए रास्ते खोज रहे हैं, बल्कि इस एहसास से गुजरे अभिभावकों के लिए भी कानों को हाथ लगाने की नौबत आई है। बच्चों का करियर बनाने की दौड़ न तो अधूरी छोड़ी जा सकती है और न ही इसका कोई अंतिम विकल्प है। ऐसे में हम यह तो नहीं कहेंगे कि अभिभावकों ने बच्चों को यूक्रेन भेज कर कोई गलती की या ये छात्र अपनी क्षमता में कम थे, लेकिन हम भारतीय यह क्यों समझ रहे हैं कि सबसे श्रेष्ठ उपाधि केवल चिकित्सा विज्ञान के मार्फत ही मिलेगी। करियर को श्रेष्ठ बनाने के लिए कोई भी विषय या संस्थान छोटा नहीं हो सकता, लेकिन आज भी अपने देश में शिक्षा का मूल्यांकन केवल नौकरी ही कर रही है। भविष्य के डाक्टरों की जो पौध यूक्रेन में पल रही थी, उसके लिए अब आसमान से गिरे और खजूर में लटके जैसी स्थिति होने जा रही है, अतः केंद्र सरकार बचाव व राहत के साथ-साथ इनके करियर के समक्ष आए अवरोध को भी हटाने का त्वरित फैसला ले।
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