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- आफत की घड़ी में छात्र

यूक्रेन युद्ध के बीच हिमाचल का सामाजिक पक्ष भी आहत है और ऐसे कई अभिभावक मिल जाएंगे, जो अपने बच्चों के मार्फत एक घोर संकट का मुकाबला कर रहे हैं। अब कुछ सुरक्षित रास्ते बने हैं और रोमानियां-पोलैंड जैसे देशों के जरिए भारत लौट रहे बच्चों को कुशल पाकर राहत मिल रही है। पहली खेप में हिमाचल के भी 42 छात्र घर लौटे हैं, जबकि कुछ इससे पूर्व आए थे और कई अभी भी वहीं फंसे हैं। यूक्रेन में करियर की धूप सेंक रहे छात्रों के लिए यह दौर अति वेदना और पीड़ा का है। कई अमानवीय परिस्थितियों के बीच और युद्धक माहौल के अति कठोर, अनिश्चित और मारक लम्हों से खुद को बचा कर जो लौट पा रहे हैं, उनके लिए यह पुनर्मिलन का सबब है। ऐसे में अगर एक पक्ष किसी तरह की आलोचना में सरकार से शिकायत कर रहा है, तो यह जितना गैर जरूरी है उतना ही संवेदनशील भी। अगर प्रश्न उठ भी रहे हैं, तो यह हैरानी हो रही है कि भारत का चिकित्सा क्षेत्र किस कद्र यूक्रेन की शिक्षा का मोहताज बन चुका है या जो शिक्षा के पात्र यहां नहीं बन पा रहे, वे वहां शिक्षा की शरण में भाग्य आजमा रहे हैं। मौटे तौर पर बीस हजार भारतीयों में कितने हिमाचली रहे होंगे, लेकिन इस आंकड़े को चार सौ भी मान लें, तो इस जरूरत का आलम एक विशिष्ट समाज की संरचना करता है।
