सम्पादकीय

रेल रोकने की जिद: कृषि कानून विरोधी आंदोलन के तहत रेल रोकने को लेकर किसान नेताओं के बीच उभरे मतभेद

Neha Dani
18 Feb 2021 1:55 AM GMT
रेल रोकने की जिद: कृषि कानून विरोधी आंदोलन के तहत रेल रोकने को लेकर किसान नेताओं के बीच उभरे मतभेद
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कृषि कानून विरोधी आंदोलन के तहत रेल रोकने की तैयारी पर किसान नेताओं के बीच मतभेद उभर आना स्वाभाविक है।

कृषि कानून विरोधी आंदोलन के तहत रेल रोकने की तैयारी पर किसान नेताओं के बीच मतभेद उभर आना स्वाभाविक है। कानून एवं व्यवस्था पर यकीन करने और आम जनता के दुख-दर्द को समझने वाला कोई भी व्यक्ति खुद को ऐसे आंदोलन से जोड़ना नहीं चाहेगा, जिसका मकसद लोगों को तंग करना और एक तरह से उन्हें बंधक बनाना हो। रेल रोको सरीखे जनविरोधी कृत्य आम तौर पर जोर-जबरदस्ती के बल पर ही अंजाम दिए जाते हैं। हैरानी नहीं कि रेल रोको आंदोलन के दौरान यही सब देखने को मिले। वैसे भी सबने देखा है कि किसान नेताओं ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस मनाने के नाम पर देश को किस तरह कलंकित किया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस कलंक की अनदेखी कर पहले वाहनों का चक्का जाम करने की कोशिश की गई और अब रेल रोकने की जिद ठान ली गई। नि:संदेह देश का कोई भी किसान यह नहीं चाहेगा कि उसके नाम पर लोगों को तंग किया जाए, लेकिन राजनीतिक उल्लू सीधा करने के फेर में जुटे अधिकतर किसान नेताओं को इसकी कोई परवाह नहीं। वे हठधर्मी दिखाने पर आमादा हैं। इस तथाकथित किसान आंदोलन में किस कदर हठधर्मिता हावी है, इसका पता उन नेताओं के किनारे हो जाने से चलता है, जो सुलह-समझौते की राह पर चलने के हामी थे।

आंदोलन के नाम पर अपनी मनमाने करने वाले किसान नेताओं का मकसद किसानों की समस्याओं को सुलझाना नहीं, बल्कि सरकार को झुकाना है। वास्तव में इसी कारण वे उन तमाम प्रस्तावों पर विचार करने को तैयार नहीं, जो 11 दौर की वार्ता में सरकार की ओर से उनके समक्ष रखे गए। वे खुद तो अडि़यल रवैया अपनाए हैं, लेकिन दुष्प्रचार यह कर रहे हैं कि सरकार नरमी दिखाने को तैयार नहीं। इस झूठ की कलई खुल चुकी है। सच यह है कि ये किसान नेता हैं, जो टस से मस होने को तैयार नहीं। अब तो यह भी साफ है कि कांग्रेस एवं कुछ अन्य विपक्षी दलों के साथ-साथ संदिग्ध इरादों वाले गैर राजनीतिक संगठनों के हाथों में खेल रहे किसान नेताओं की सरकार से बातचीत में दिलचस्पी ही नहीं। वे जानबूझकर टकराव वाला रवैया अपनाए हुए हैं। कृषि मंत्री के साथ प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि सरकार किसान नेताओं से नए सिरे से बात करने और उनकी उचित आपत्तियों का निस्तारण करने को तैयार है, लेकिन वे किसी की और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की भी सुनने को तैयार ही नहीं। वे ऐसा दिखा रहे हैं जैसे देश का समस्त किसान उनके पीछे खड़ा है, लेकिन हकीकत तो यही है कि आम किसानों को संकीर्ण स्वार्थो वाले कृषि कानून विरोधी आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं।


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