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- रेल रोकने की जिद: कृषि...
कृषि कानून विरोधी आंदोलन के तहत रेल रोकने की तैयारी पर किसान नेताओं के बीच मतभेद उभर आना स्वाभाविक है। कानून एवं व्यवस्था पर यकीन करने और आम जनता के दुख-दर्द को समझने वाला कोई भी व्यक्ति खुद को ऐसे आंदोलन से जोड़ना नहीं चाहेगा, जिसका मकसद लोगों को तंग करना और एक तरह से उन्हें बंधक बनाना हो। रेल रोको सरीखे जनविरोधी कृत्य आम तौर पर जोर-जबरदस्ती के बल पर ही अंजाम दिए जाते हैं। हैरानी नहीं कि रेल रोको आंदोलन के दौरान यही सब देखने को मिले। वैसे भी सबने देखा है कि किसान नेताओं ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस मनाने के नाम पर देश को किस तरह कलंकित किया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस कलंक की अनदेखी कर पहले वाहनों का चक्का जाम करने की कोशिश की गई और अब रेल रोकने की जिद ठान ली गई। नि:संदेह देश का कोई भी किसान यह नहीं चाहेगा कि उसके नाम पर लोगों को तंग किया जाए, लेकिन राजनीतिक उल्लू सीधा करने के फेर में जुटे अधिकतर किसान नेताओं को इसकी कोई परवाह नहीं। वे हठधर्मी दिखाने पर आमादा हैं। इस तथाकथित किसान आंदोलन में किस कदर हठधर्मिता हावी है, इसका पता उन नेताओं के किनारे हो जाने से चलता है, जो सुलह-समझौते की राह पर चलने के हामी थे।