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पर एफआईएच प्रो लीग शुरू होने से यह लीग बंद हो गई है। अन्य खेलों में भले क्रिकेट के मुकाबले पैसा नहीं है। पर खिलाड़ियों की हालत सुधरना भी अच्छा संकेत है।
भारत ने वर्ष 1975 में अजित पाल सिंह की अगुआई में हॉकी विश्व कप में खिताब जीता था, तो 1983 में कपिल देव के नेतृत्व में आईसीसी विश्व कप जीता। इन दोनों की भारतीय खेल इतिहास में खास अहमियत है। दोनों विश्व कप जिताने वाले खिलाड़ियों को वाहवाही तो खूब मिली, पर इनाम के तौर पर उतना पैसा नहीं मिला, जिससे कि वे अपनी आर्थिक हालत सुधार सकते।
हॉकी विश्व कप जीतने वाले खिलाड़ियों को किसी तरह 50-50 हजार रुपये दिए गए थे। पर दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई की 1983 में माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह अपने सितारों को मालामाल कर पाता। उसे स्वर्गीय लता मंगेशकर का कंसर्ट कराना पड़ा था और खिलाड़ियों को एक-एक लाख रुपये का इनाम दिया गया था। अब हालात बदल चुके हैं। जो खेल कभी पैसों के लिए तरसा करते थे, वहां पैसों की बरसात होने लगी है।
पिछले दिनों अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के खिलाड़ियों को बीसीसीआई ने 40-40 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की। अपने वरिष्ठ खिलाड़ियों को तो विश्व कप के बाद वह एक-एक करोड़ रुपये तक दे देता है। यह बदलाव एकाएक नहीं आया है। इसमें जगमोहन डालमिया के बीसीसीआई में कार्यकाल के दौरान किए गए प्रयासों ने अहम भूमिका निभाई है।
उन्होंने 1990 में बीसीसीआई सचिव बनने के समय बोर्ड की कमाई बढ़ाने की शुरुआत की और उनके रहते ही बोर्ड मालामाल बनता चला गया। अंडर-19 विश्व कप जीतने वाली टीम के खिलाड़ियों को लाखों का इनाम ही नहीं मिला, उनकी असली लॉटरी तो आईपीएल की नीलामी में लगी। 2020 के अंडर-19 विश्व कप में भाग लेने वाले यशस्वी जायसवाल, रवि बिश्नोई, प्रियम गर्ग और कार्तिक त्यागी जैसे खिलाड़ी पिछले साल आईपीएल की नीलामी में करोड़पति बन गए थे।
इस बार की मेगा नीलामी में राज अंगद बावा, राज्यवर्धन करोड़पति बन गए। जिनकी आईपीएल में लॉटरी नहीं भी लगेगी, उनके घरेलू क्रिकेट में खेलने से खासी कमाई की संभावनाएं बनी रहेंगी। क्रिकेट में ही पैसा आया हो, ऐसा नहीं है। अब कबड्डी, बैडमिंटन और कुश्ती में भी हमारे खिलाड़ी खूब कमाने लगे हैं। प्रो कबड्डी लीग ने पिछले कुछ वर्षों में अपने खिलाड़ियों की माली हालत सुधारी है।
इस लीग की पिछली नीलामी पर नजर डालें, तो यूपी योद्धा टीम ने रेडर प्रदीप नरवाल को लेने में 1.65 करोड़ खर्च कर दिए थे। रोहित गुलिया और अर्जुन देशवाल जैसे खिलाड़ी भी करोड़ रुपये के आसपास पहुंच गए हैं। ऐसे ही प्रीमियर बैडमिंटन लीग में ताई यू यिंग और पीवी सिंधु जैसे शटलर 77-77 लाख रुपये तक पहुंच गए हैं। बैडमिंटन में टेनिस की तरह टूर्नामेंटों की इनामी राशि से भी कमाई की अच्छी संभावना रहती है।
वॉलीबाल में बेशक अभी इन लीगों की तरह पैसा नहीं है, पर धीरे-धीरे वहां भी पैसा दिख सकता है। मुझे याद है कि 1975 में भारत के हॉकी विश्व कप जीतने पर सारा देश खुशी से झूम उठा था। उसके बाद भारतीय टीम और ऑल स्टार इलेवन के बीच देश में कुछ मैचों का आयोजन किया गया, जिनमें स्टेडियम दर्शकों से भरे थे। फिर भी खिलाड़ियों को देने के लिए सम्मानजनक रकम नहीं जुटाई जा सकी थी।
हालांकि 2014 में एक समारोह आयोजित कर इस विश्व कप के विजेता खिलाड़ियों में से प्रत्येक को पौने दो लाख रुपये दिए गए थे। आम तौर पर क्रिकेट में मिलने वाले पैसों को लेकर अन्य खेलों के खिलाड़ी असंतुष्ट रहते हैं। आईपीएल आने के बाद क्रिकेट और बाकी खेलों में कमाई में अंतर और बढ़ गया है। पर आईपीएल आने के बाद ही बाकी खेलों ने लीगों के आयोजन के बारे में सोचना शुरू किया है।
कबड्डी, बैडमिंटन, कुश्ती और वॉलीबाल में ऐसी लीगों का आयोजन हो रहा है। हॉकी में भी प्रीमियर लीग की शुरुआत की जा चुकी है। पर एफआईएच प्रो लीग शुरू होने से यह लीग बंद हो गई है। अन्य खेलों में भले क्रिकेट के मुकाबले पैसा नहीं है। पर खिलाड़ियों की हालत सुधरना भी अच्छा संकेत है।
सोर्स: अमर उजाला
Neha Dani
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