सम्पादकीय

पंजाब का प्रचंड जनादेश : आप की आंधी का आधार, आसान नहीं था आम आदमी के मन की बात भांपना

Neha Dani
11 March 2022 1:46 AM GMT
पंजाब का प्रचंड जनादेश : आप की आंधी का आधार, आसान नहीं था आम आदमी के मन की बात भांपना
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केजरीवाल को यह तथ्य ध्यान में रखना होगा।

पंजाबियों ने अपने स्वभाव और तत्व के अनुरूप ही जनादेश दिया है। त्रिशंकु सरकार आने के कयास और चुनाव बाद के गठबंधन की सरकार बनाने के कुछ राजनीतिक दलों के दावों की धज्जियां उड़ाते हुए पंजाब ने स्पष्ट ही नहीं, प्रचंड जनादेश दिया है। बेशक चुनाव परिणामों की समीक्षा और चर्चा में मुफ्त सुविधाओं को दिल्ली मॉडल पर देने की घोषणा आम आदमी पार्टी (आप) की जीत का आधार मानी जा रही हों, लेकिन इस जनादेश में मतदाता के मानसपटल पर बदलाव का संकल्प रहा है।

इसके लिए उसके पास 1+1 पैकेज यानी मुफ्त की सुविधाएं और गैर आजमाए दल के रूप में आम आदमी पार्टी सर्वोच्च और संभवतः एकमात्र विकल्प थी। किसान आंदोलन से राजनीतिक दबाव झेल रही केंद्र की भाजपा नीत सरकार द्वारा नए कृषि कानूनों को वापस लेने और अकाली दल से रिश्ता टूटने के बाद भाजपा द्वारा पंजाब में डेमोग्राफिक समीकरणों पर आधारित दलित मुख्यमंत्री बनाने का कार्ड खेलने की शुरुआत की इतिश्री कांग्रेस द्वारा कैप्टन अमरिंदर को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने और अकाली दल द्वारा बसपा से गठबंधन करने से हुई।
कांग्रेस ने तो चन्नी को ड्यूल मॉडल के रूप में पेश किया, दलित मुख्यमंत्री और केजरीवाल के दिल्ली मॉडल की तरह की मुफ्त सुविधाएं देकर। इसके अलावा भाजपा की डेरा पॉलिटिक्स, केजरीवाल को आतंकवादी घोषित करने की पुरानी तिकड़म भी पंजाबियों के संकल्प को बदल नहीं सकी। इस बार के चुनाव ने काफी हद तक उन मिथकों को भी तोड़ा है, जो डेरों के एक बड़ा वोट बैंक होने से जुड़े आए हैं। तथाकथित राष्ट्रवाद, प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर मुख्यमंत्री तक पर दोषारोपण और सीमा पार से खतरे के प्रचार पर पंजाब की हालत बदतर करने वालों के विरुद्ध संपूर्ण बदलाव का संकल्प भारी पड़ा है। कई दिग्गज नेताओं का हारना इस संपूर्ण बदलाव के पीछे के जन संकल्प को प्रकट करता है।
आप ने यह जनादेश तब पाया है, जब पंजाब पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और घोषित मुफ्त सुविधाओं के लिए 37 हजार पांच सौ करोड़ रुपये वार्षिक अलग से पैदा करने हैं। पंजाब को बेहतर और आम लोगों की पहुंच वाले शिक्षा और चिकित्सा संस्थान, कृषि और औद्योगिक बदलाव के लिए नया ढांचा चाहिए। अकाली दल में लगभग साढ़े पांच दशक तक बादल कुनबे का कब्जा रहा है। यह विचित्र संयोग है कि 1997 में जिस पंजाब ने 90+ सीटें देकर उसे राजभाग सौंपा था, आज उसी ने यह आंकड़ा आप के पक्ष में दिया है और बादल कुनबे के तमाम गुंबद धराशायी कर दिए हैं। केजरीवाल को यह तथ्य ध्यान में रखना होगा।

सोर्स: अमर उजाला


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