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2014 के बाद से देश में होने वाला हर चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद्दावर व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द ही रहा है
कावेरी बामजेई का कॉलम:
2014 के बाद से देश में होने वाला हर चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद्दावर व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द ही रहा है। 'केवल मोदी ही है!'- इस सच्चाई को कुछ ने समझा, कुछ ने इसका उत्सव मनाया और कुछ ने इसे कड़वी गोली की तरह गले के नीचे उतारा। लेकिन अब देश के सबसे बड़े राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की वापसी ने इसमें यह भी जोड़ दिया है कि 'अब योगी भी है!' सुरक्षा और पहचान की राजनीति ने उत्तर प्रदेश के चुनावों में सपा और कांग्रेस को परास्त कर बीजेपी को जीत दिलाई।
बीजेपी ने साथ ही तीन और राज्य भी जीते हैं। आप मान सकते हैं कि अब देश में जारी बहस का अंत हो गया है और विशेषकर योगी-मॉडल के हिंदुत्व- यानी धर्म के साथ मजबूत कानून व्यवस्था का मेल- ने सफलता पा ली है। लेकिन इसके बावजूद एक ऐसा राज्य भी है, जिसने दूसरी तरफ असहमति के स्वर को जीवित रखा है।
1921 में मौलाना हसरत मोहानी के द्वारा दिए गए एक नारे- जिसे भगत सिंह ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का घोष-वाक्य बना लिया था और 1929 में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम धमाका करते समय उसका उद्घोष किया था- की याद जगाकर अरविंद केजरीवाल ने भारत के विमर्श को जीवित रखा है।
यही कारण था कि जहां प्रधानमंत्री मोदी 'योगी यूपी के लिए बहुत हैं उपयोगी' (यूपी प्लस योगी) का नारा दे रहे थे- जो कि बहुत कुछ मोदी प्लस हिंदुत्व यानी 'मोदीत्व' के नारे से मिलता-जुलता था- वहीं पंजाब का दिल 'इंकलाब जिंदाबाद' पर धड़क उठा। पंजाब के नए मुख्यमंत्री कार्यालय में अब भगत सिंह और अम्बेडकर की तस्वीरें लगाई जाएंगी।
भगत सिंह की छवि याद दिलाने के लिए भगवंत मान ने पीली पगड़ी तक धारण की। प्रतीकात्मक रूप से इसने यह बतलाया कि देश में आज भी संवाद के लिए गुंजाइश बची है। किसान आंदोलन- जिसमें शामिल होने वाले बहुतेरे पंजाब के थे- में इंकलाब जिंदाबाद का नारा गूंजता रहा था। पटकथाकार जसदीप सिंह के शब्दों में इस नारे ने प्रश्न पूछने और प्रयोग करने का जज्बा जगाया था और इसी के चलते पंजाब ने विकल्प के तौर पर अपने लिए एक नई पार्टी चुन ली।
एक मायने में इन चुनावों में डर और उम्मीद की विचारधाराओं के बीच भी टकराव था। जब योगी आदित्यनाथ ने मतदाताओं से बीजेपी को वोट देने की अपील की तो उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा, ताकि यूपी को कश्मीर, बंगाल और केरल बनने से बचाया जा सके।
उन्होंने इशारे से बता दिया कि वे किन्हें अपना दुश्मन मानते हैं- इस्लामिक कट्टरपंथियों और कम्युनिस्टों को। लेकिन जब केजरीवाल ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ वोट मांगे तो उसके पीछे उम्मीद की वही भावना थी, जिसके साथ आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी।
'आप' की उम्र कुलजमा दस साल है। इसके मद्देनजर उसे अपने लिए नए प्रतीकों की आवश्यकता थी। पंजाब में उसके लिए भगत सिंह से बेहतर प्रतीक कौन हो सकते थे? 'पंजाब में जो हुआ, वह किसी इंकलाब से कम नहीं था'- ये अरविंद केजरीवाल के शब्द थे, जो उन्होंने परिणामों के बाद पंजाब के लोगों को सम्बोधित करते हुए कहे। भगत सिंह एक जाट-सिख थे, जो जाति में विश्वास नहीं रखते थे, नास्तिक थे और कम्युनिस्ट-क्रांतिकारी भी थे।
केजरीवाल ने बिना सोचे-समझे इस प्रतीक को नहीं चुना था। 'आप' ने 'भारत माता की जय' के नारे को भी अपना लिया। अगर 'आप' इन दोनों नारों में सामंजस्य बैठा पाई तो वह आकांक्षाओं से भरे बहुलतावादी भारत के लिए नया विमर्श रच सकेगी।
इस तरह वह एक राजनीतिक विकल्प भी प्रस्तुत कर सकेगी। वह कानून-व्यवस्था के मॉडल के सामने शिक्षा और स्वास्थ्य में विकास के प्रारूप को तो प्रस्तुत कर ही रही है। भारत इन दोनों में से किसकी तरफ जाएगा, इसी से यह तय होगा कि आने वाला कल किसका है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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