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उम्मीद है कि वृद्धि दर के मोर्चे पर आगामी महीनों में और भी बेहतरी आ सकती है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 13.5 प्रतिशत रहने के बाद देश और विदेश की एजेंसियों ने आगामी तिमाहियों और चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को कम कर दिया है। उनके अनुसार अब वित्त वर्ष 2022 में जीडीपी वृद्धि दर सात प्रतिशत के आसपास रह सकती है। हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था जिस दर से आगे बढ़ रही है, उसी रफ्तार से यह ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दस साल पहले दुनिया में 11वें पायदान पर थी। अब भारतीय अर्थव्यवस्था से आगे सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की अर्थव्यवस्था है। भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई में कार्यरत आर्थिक अनुसंधान विभाग के एक अनुसंधान के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था 2029 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कम वृद्धि का सबसे प्रमुख कारण विनिर्माण क्षेत्र में अपेक्षित आर्थिक गतिविधियों का न होना है।
इस क्षेत्र की वृद्धि दर महज 4.8 प्रतिशत रही है, जबकि पिछले साल समान अवधि में वृद्धि दर 49 प्रतिशत थी। कृषि क्षेत्र की इस दौरान वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही। कोरोना महामारी के दौरान इस क्षेत्र का लगातार अच्छा प्रदर्शन रहा है। निर्माण क्षेत्र में रिकॉर्ड 16.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है और सितंबर तिमाही में भी इसमें तेजी बने रहने की संभावना है। सेवा क्षेत्र में 17.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है।
हालांकि, कारोबार, होटल, परिवहन, पर्यटन आदि क्षेत्रों पर अब भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि ये क्षेत्र अभी तक महामारी से पहले वाली अवस्था में नहीं पहुंच सके हैं। विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा फिलहाल मुद्रास्फीति बनी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति की सहनशीलता सीमा को पांच से छह प्रतिशत के बीच रखा है। जुलाई, 2022 में खुदरा भाव पर आधारित महंगाई दर 6.71 प्रतिशत थी।
मुद्रास्फीति भारत सहित अमेरिका और अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में भी सहनशीलता सीमा से अधिक है। इसलिए, उम्मीद है कि आगामी महीनों में भारतीय रिजर्व बैंक के साथ-साथ अमेरिका और अन्य विकसित देशों के केंद्रीय बैंक भी नीतिगत दरों में और इजाफा कर सकते हैं। बढ़ती मुद्रास्फीति से विश्व की अर्थव्यवस्था कमजोर होती जा रही है। कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था से भारत के निर्यात में रुकावट, विदेशी निवेश में कमी और जिंसों की कीमत में तेजी आ रही है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अब भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई है और रूस, यूक्रेन, चीन और ताइवान की वजह से विश्व में भू-राजनीतिक संकट भी कायम है। इससे भी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में रुकावट आ रही है। त्योहारों के कारण जुलाई महीने से बैंकों से कर्ज लेने की गतिविधियां बढ़ी हैं। विभिन्न क्षेत्रों में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत और 18.8 प्रतिशत के बीच रही है।
निजी खर्च, जीएसटी और अन्य कर संग्रह के मोर्चे पर तेजी आना आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने का सूचक है। ऋण ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद क्रेडिट ग्रोथ में तेजी आना इस तथ्य की पुष्टि करता है कि मांग और आपूर्ति, दोनों में तेजी आ रही है। होटल, कारोबार, परिवहन और पर्यटन क्षेत्र अब भी दबाव में हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में भी तेजी से सुधार हो रहा है। दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह भारतीय रिजर्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति चुनौती बनी हुई है।
इसलिए, उसे नियंत्रित करने के लिए जीडीपी वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाना होगा। चूंकि, मुद्रास्फीति के नकारात्मक प्रभाव ज्यादा हैं, इसलिए, भारतीय रिजर्व बैंक की प्राथमिकता फिलहाल महंगाई पर काबू पाने की है। मानसून के बेहतर रहने और केंद्रीय बैंक द्वारा सही समय पर सही कदम उठाने से महंगाई में कुछ नरमी आई है। इसलिए, उम्मीद है कि वृद्धि दर के मोर्चे पर आगामी महीनों में और भी बेहतरी आ सकती है।
सोर्स: अमर उजाला
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