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खुद को नंगा करना
अब सीबीआई और वह जिसका 'तोता' है, वो अपने सारे वस्त्र उतार चुके हैँ। इसलिए एक ऐसी एकतरफा कार्रवाई हुई है, जिसके पीछे तनिक भी सही मकसद का भ्रम नहीं रहा है। ये तो जग जाहिर है कि सीबीआई के आका सियासी हार पचा नहीं पाते। तो उसका बदला वे येन-केन-प्रकारेण लेने में यकीन करते हैँ।
सीबीआई चाहती तो अपने बारे में कुछ भ्रम बनाए रख सकती थी। इसके लिए उसे बस इतना करना था कि नारदा स्टिंग घोटाले में जब उसने दो मंत्रियों सहित तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार किया, तो लगे हाथ तृणमूल से भाजपा में चले गए मुकुल राय और सुभेंदु मुखर्जी को भी हिरासत में ले लेती। लेकिन अब सीबीआई और वह जिसका 'तोता' है, वो अपने सारे वस्त्र उतार चुके हैँ। इसलिए एक ऐसी एकतरफा कार्रवाई हुई है, जिसके पीछे तनिक भी सही मकसद का भ्रम नहीं रहा है। ये तो जग जाहिर है कि सीबीआई के आका सियासी हार पचा नहीं पाते। तो उसका बदला वे येन-केन-प्रकारेण लेने में यकीन करते हैँ। इसका खुला खेल पश्चिम बंगाल में देखने को मिला है। इसीलिए जो सरकार के कट्टर समर्थक नहीं हैं, उन्हें तृणमूल कांग्रेस के इस बयान पर यकीन करने में कोई हिचक नहीं है कि यह बदले की भावना से की गई कार्रवाई है। इससे एक अत्यंत गंभीर महामारी के बीच पश्चिम बंगाल में नया तनाव पैदा होगा। गिरफ्तारियों के खिलाफ राज्य में तृणमूल समर्थकों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
सीबीआई दफ्तर के सामने तो पुलिस वालों से उनकी भिड़ंत हुई और पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा। यह सवाल जरूर पूछा जाएगा कि ये हाल पैदा करने के लिए जिम्मेदार कौन है। सवाल यह नहीं है कि इन गिरफ्तारियों के बाद क्या होगा। असल सवाल गिरफ्तारियों के पीछे की मंशा का है। ये मंशा सिरे से संदिग्ध है। पश्चिम बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप सामने आया था। उससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई थी। तब दावा किया गया था कि यह स्टिंग 2014 में किया गया था और इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक की तरह दिखने वाले व्यक्तियों को एक काल्पनिक कंपनी के नुमाइंदों से नकदी लेते दिखाया गया था। स्टिंग ऑपरेशन कथित तौर पर नारदा न्यूज पोर्टल के मैथ्यू सैमुअल ने किया था। इस टेप के सामने आने के बाद राज्य में खूब बवाल मचा। भाजपा ने इसे पिछले दो चुनावों में बड़ा मुद्दा बनाया था, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। तो अब, जैसाकि तृणमूल ने ध्यान दिलाया है, बिना किसी नोटिस के गिरफ्तारी की गई, जो कानून संदिग्ध है। और ये सवाल दोहराने लायक है कि जब कार्रवाई हुई ही, तो फिर मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?
क्रेडिट बाय नया इंडिया
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