सम्पादकीय

मौत की डोर

Subhi
16 Aug 2022 3:58 AM GMT
मौत की डोर
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कोई भी खेल किसी के लिए मनोरंजन का मामला हो सकता है, लेकिन अगर वह सिलसिलेवार तरीके से कुछ दूसरे लोगों के लिए जानलेवा साबित होने लगे तो इसे खेलने वालों को इसके तौर-तरीकों को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत है। वहीं, सरकार को मनोरंजन के ऐसे जरिए को सीमित, नियंत्रित या विशेष स्थितियों में प्रतिबंधित भी करने के बारे में विचार करना चाहिए। हमारे यहां कुछ खास मौकों पर पतंग उड़ाने के खेल को एक सांस्कृतिक उत्सव के तौर पर देखा जाता है।

Written by जनसत्ता; कोई भी खेल किसी के लिए मनोरंजन का मामला हो सकता है, लेकिन अगर वह सिलसिलेवार तरीके से कुछ दूसरे लोगों के लिए जानलेवा साबित होने लगे तो इसे खेलने वालों को इसके तौर-तरीकों को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत है। वहीं, सरकार को मनोरंजन के ऐसे जरिए को सीमित, नियंत्रित या विशेष स्थितियों में प्रतिबंधित भी करने के बारे में विचार करना चाहिए। हमारे यहां कुछ खास मौकों पर पतंग उड़ाने के खेल को एक सांस्कृतिक उत्सव के तौर पर देखा जाता है।

इस लिहाज से इसे मन को खुशी देने वाला आयोजन होना चाहिए था। लेकिन आजकल पतंग उड़ाने के लिए जिस तरह के मांझे से लैस धागों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह कई बार आसमान में उड़ते पक्षियों से लेकर राह चलते इंसानों तक के लिए नाहक ही जान जाने की वजह बनने लगा है। ऐसे ही धागे से बीते कुछ दिनों के भीतर अकेले राजधानी दिल्ली में सड़क पर अपने वाहन से कहीं जा रहे चार लोगों का गला कट गया और उनकी मौत हो गई। सवाल है कि मनोरंजन के ऐसे साधनों को किस हद तक छूट मिलनी चाहिए, जो लोगों की जान जाने की वजह बन रहे हों।

इस साल मांझे की चपेट में आकर होने वाली मौतों की घटनाएं कोई नई नहीं हैं। इन हादसों के बाद सरकार सख्ती के नाम पर चीनी मांझे के खिलाफ सख्ती बरतने और इस पाबंदी लगाने की बात करती है, मगर फिर कुछ दिनों बाद मामला शांत पड़ जाता है। भारत में रक्षा बंधन और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जब से सामान्य धागों के बजाय चीनी मांझे के जरिए पतंग उड़ाना शुरू किया गया है, तब से यह अक्सर कुछ लोगों के लिए जानलेवा साबित होने लगा है।

दरअसल, पतंग उड़ाने के लिए इस्तेमाल में लाए जा रहे धागों पर जिस तरह का मांझा चढ़ा होता है, वह किसी तेज धार वाले हथियार से कम असर का नहीं होता है। खासतौर पर जब मोटरसाइकिल पर सवार कोई व्यक्ति अपनी राह जा रहा होता है तो सावधानी के बावजूद उसकी नजर उड़ रही या कटी पतंग के गुजरते धागे पर नहीं भी जा सकती है। जबकि अगर वह धागा उसके गले से लग कर तेजी से गुजर जाए या लिपट जाए तो उसकी रगड़ गला और उसके संवेदनशील नसों को तुरंत काट देती है।

विडंबना यह है कि कुछ लोग अपनी पतंग को कटने से बचाने के लिए तीखे मांझे वाले धागे का इस्तेमाल तो करते हैं, मगर यह नहीं समझ पाते कि यह धागा किसी राह चलते व्यक्ति की जान भी ले सकता है। यह मांझा नायलान और मैटेलिक पाउडर से मिला कर बनाया जाता है। यह चूंकि जल्दी से टूटता या कटता नहीं है, इसलिए लोग अपनी पतंग को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। आम धारणा है कि ऐसे मांझे केवल चीन में बनते हैं। लेकिन सच यह है कि अब ये भारत में भी बनते हैं।

2017 में चीनी मांझे पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश के बाद इस पर पाबंदी लगा दी गई थी। मगर अब भी इसके खुलेआम बिकने और इस्तेमाल में कोई कमी नहीं आई है। आए दिन जिस तरह ये मांझे वाले धागे लोगों की मौत की वजह बन रहे हैं, उसमें जरूरत इस बात की है कि सरकार इसके खिलाफ कोई सख्त कानूनी पहल करे। साथ ही आम लोगों को भी यह समझने की जरूरत है कि अगर उनका मनोरंजन किसी के लिए जानलेवा भी हो सकता है, तो वे उसमें बदलाव करें। साधारण धागों से उड़ाए जाने वाले पतंग ही इस खेल के उतार-चढ़ाव का वास्तविक आनंद दे सकते हैं।


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