सम्पादकीय

आरोपों की जरीब

Rani Sahu
24 July 2023 7:06 PM GMT
आरोपों की जरीब
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By: divyahimachal
हिमाचल के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के बयान ने विपक्ष को मसाला और प्रशासन को एक हवाला दिया है। आरोपों की गंभीरता में नाखून बहुत गहरे हैं, तो सरकार के अपने ही कामकाज में यह दाग चस्पां हो रहा है। मंत्री को लगता है कि उनकी विकासात्मक ड्रांइग बदली जा रही है या उन्हें पूछे बिना प्रस्ताव परिवर्तित हो रहे हैं। हालांकि इसके विस्तृत विवरण में ही अर्थ मिलेंगे, लेकिन नौकरशाही के अदब में हो रही किलेबंदी नासूर की तरह है। यह पहला अवसर नहीं कि किसी मंत्री ने आरोपों की जरीब से अपनी फाइल मापी हो, बल्कि इससे पहले जयराम सरकार में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री का बयान चर्चित रहा था, जहां उन्होंने कहा था कि ‘साहब’ लोग मानते नहीं, जो कहा जाए-सुनते नहीं। ऐसे में कुछ तो है राजधानी की सर्द हवाओं में जो आरोपों के माथे पर पसीना तक आ गया। हालांकि हर पहलू की ड्राइंग नहीं होती, फिर भी कहीं तो समरूपता की जरूरत है। बार-बार एक मंत्री के बयान हवाओं में घर्षण और निगाहों से बेचैनी पैदा कर रहे हैं, तो सियासी घटाओं में अंदेशा बढ़ता है। बहरहाल किसी मंत्री का बार-बार इस तरह दायरे से बाहर आ जाना सही नहीं है, तो गलत को सही करने की जरूरत भी है। इसमें दो राय नहीं कि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने अपने आरंभिक फैसलों से प्रशासनिक गति का परिचय कराया, लेकिन सुशासन का घी निकालना है तो अंगुली टेढ़ी करनी होगी। यानी इस प्रदेश में वर्षों से सत्ता बदल रही है, लेकिन नौकरशाही और अफसरशाही यथावत सियासी मोहरों को चला रही है। बहुत सारे प्रशासनिक सुधारों की जरूरत है और जो चरणबद्ध तरीके, पारदर्शिता एवं जवाबदेही से पूरे होंगे। दरअसल हिमाचल में न केवल वित्तीय, बल्कि मानव संसाधन का भी अपव्यय हो रहा है।
ऐसे में क्षेत्रीय अपेक्षाएं अकसर शिमला के बंद गलियारों में गुम हो जाती हैं। राजनीति अपने कारण व कारक ढूंढ कर प्राथमिकताएं तय कर सकती है, लेकिन ऐसा कोई प्रारूप नहीं-कोई संवेदनशीलता नहीं कि व्यवस्था में आमूल चूल बदलाव आए। हिमाचल अपनी भौगोलिक उम्मीदों के साथ आगे बढ़ा है और पर्वतीय राज्यों में अग्रणी बना, तो इसका श्रेय उस तालमेल व नेतृत्व को जाता है जिसके तहत भविष्य रेखांकित हुआ। आश्चर्य यह कि अब यही अंदाज भौगोलिक-राजनीतिक संकीर्णता व क्षेत्रवाद में फनां हो रहा है। धीरे-धीरे मंत्रियों की स्वीकार्यता केवल अपने चुनाव हलके तक सिमट गई। जब मंत्री केवल अपने विधानसभा क्षेत्रों को ही विभागीय दर्पण में देखेंगे, तो राज्यव्यापी दृष्टि का क्या होगा। ऐसे ही हालात में सचिवालय की संस्कृति तीव्रता से बदल रही है। जिस सचिवालय की तासीर में क्रांतिकारी बदलाव लाने की तमन्ना रहेगी, वही वर्तमान को भविष्य के सुखद एहसास में बदल सकता है। महकमा बड़ा तब होता है, जब राजनीतिक दृष्टि और प्रशासनिक कर्मठता का तालमेल हो। यहां अगर विक्रमादित्य की शिकायत मीडिया तक पहुंच गई, तो यह घालमेल अनेक शंकाओं को जन्म देगा। कहां तो हम सरकार की निरंतरता में पहले से शुरू कार्यों को पूरा करने की अपेक्षा रखते हैं और कहां अब फासले अपनी ही सरकार से एक मंत्री के बयान में दिखाई दे रहे हैं। ऐसी अशांति ठीक नहीं और न ही सरकार के एक जवाबदेह मंत्री का यह बयान साधारण माना जाएगा। हिमाचल में कमोबेश हर सरकार को प्रशासनिक, विकासात्मक, व्यावहारिक व राजनीतिक संतुलन की जरूरत रहती है। सत्ता का झुकाव फिलहाल शिमला की परिक्रमा में दिखाई दिया है, तो यह बयान कौन सा न्याय मांग रहा है। हकीकत में राजनीतिक संतुलन की कहीं अधिक आवश्यकता है और यह मंत्रिमंडल के खाली पदों को देख देख कर उत्सुकता बढ़ाता है।
Rani Sahu

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