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डॉक्टरों की हड़ताल तो सामान्य समय में भी मरीजों और उनके परिजनों के लिए जानलेवा होती है
डॉक्टरों की हड़ताल तो सामान्य समय में भी मरीजों और उनके परिजनों के लिए जानलेवा होती है। ऐसे में कोरोना और ओमिक्रॉन के प्रकोप से जूझती स्वास्थ्य सेवाओं के लिए रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल कितनी बुरी खबर है, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर मार्च कर रहे हड़ताली डॉक्टरों के समूह पर हुई पुलिस कार्रवाई से हालात ज्यादा गंभीर हो गए। रेजिडेंट डॉक्टरों ने बुधवार से अस्पतालों में सभी सेवाओं पर रोक का आह्वान कर दिया। हालांकि इस मामले में डॉक्टरों को ही पूरी तरह दोषी नहीं कहा जा सकता। उनकी हड़ताल पिछले करीब एक महीने से जारी है। शुरू में उन्होंने सांकेतिक विरोध के जरिए ही अपनी बात रखने की कोशिश की। मांग को तवज्जो नहीं मिली तो उन्होंने धीरे-धीरे आंदोलन को तेज करने का फैसला किया। पिछले करीब दो वर्षों से जिस तरह के हालात में उन्हें रात-दिन ड्यूटी करनी पड़ रही है, उसे देखते हुए मैनपावर की कमी की उनकी शिकायत बिल्कुल जायज है।
आम तौर पर नीट की जो परीक्षा जनवरी में हो जाती है, वह कोरोना से उपजी परिस्थितियों के चलते इस बार सितंबर में हुई। नतीजा यह कि मई तक जो बैच कॉलेजों में आ जाना चाहिए था, वह अब तक नहीं आ पाया। इसी बीच, आरक्षण संबंधी प्रावधानों के कुछ पहलुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हो गई, जिससे काउंसिलिंग की प्रक्रिया फिर अटक गई। ताजा स्थिति यह है कि 45,000 डॉक्टरों का जो नया बैच अस्पतालों में हाथ बंटाने के लिए पूरी तरह तैयार है, वह काम संभाल नहीं पा रहा। इस बीच ओमिक्रॉन के आने के बाद कोरोना की तीसरी लहर की मजबूत होती आशंका सबकी नींद उड़ाए हुए है। ऐसे में डॉक्टरों की यह चिंता बिल्कुल सही है कि अगर तीसरी लहर ने अपना विकराल रूप दिखाया तो उनका क्या हाल होगा, अस्पतालों की क्या स्थिति होगी और मरीजों की कैसी दुर्गति होगी। इसीलिए वे चाहते हैं कि काउंसिलिंग के काम को जल्द से जल्द निपटाकर इस नए बैच को काम शुरू करने दिया जाए।
दूसरी तरफ सरकार की यह बात भी सही है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। इतना वादा जरूर सरकार कर रही है कि वह सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई से पहले ही अपना जवाब दाखिल कर देगी ताकि उसकी वजह से कोई देर न हो। सरकार का ताजा रुख स्वागत योग्य है, लेकिन अच्छा होता अगर शांतिपूर्ण विरोध कर रहे डॉक्टरों पर पुलिस सख्ती न करती। बहरहाल, अब सभी पक्षों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझते हुए और प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए बगैर डॉक्टरों की हड़ताल खत्म करवाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि आम मरीजों को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित ना रहना पड़े।
क्रेडिट बाय NBT
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