सम्पादकीय

कड़ाई अब मजबूरी

Triveni
17 April 2021 12:45 AM GMT
कड़ाई अब मजबूरी
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अंतत: उत्तर प्रदेश सरकार को कडे़ फैसले लेने की शुरुआत करनी पड़ी। जिस हिसाब से कोरोना संक्रमण बढ़ रहा

अंतत: उत्तर प्रदेश सरकार को कडे़ फैसले लेने की शुरुआत करनी पड़ी। जिस हिसाब से कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है, उसमें लॉकडाउन और कफ्र्यू के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है। एक ओर, जहां रात्रिकालीन कफ्र्यू का विस्तार किया गया है, वहीं रविवार को पूरी तरह से लॉकडाउन लगाने का फैसला भी प्रदेश में संक्रमण की शृंखला तोड़ने के लिए अनिवार्य है। मास्क न पहनने वालों से एक हजार रुपये का जुर्माना वसूलना गरीबों की दृष्टि से थोड़ा आक्रामक लगता है, लेकिन बचाव के लिए यह भी जरूरी है। रविवार को सभी बाजारों को सैनेटाइज करने का फैसला भी स्वागतयोग्य है। जो लोग सरकार की इस कड़ाई को जरूरी नहीं मानते, उन्हें उत्तर प्रदेश में गुरुवार को सामने आए आंकडे़ देखने चाहिए। एक दिन में 104 लोगों की मौत हुई है और 22,439 नए मामले सामने आए हैं। नोएडा जैसे अपेक्षाकृत विकसित क्षेत्र में मरीजों के लिए सरकारी अस्पतालों में जगह कम पड़ने लगी है, तो उत्तर प्रदेश के दूरदराज के इलाकों में अस्पताल किस दबाव में होंगे, सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

जहां तक बिहार का सवाल है, यहां उच्च न्यायालय ने चिंता जाहिर की है। राज्य के बड़े नेताओं, अधिकारियों, न्यायाधीशों को भी कोरोना परेशान करने लगा है। गुरुवार को बिहार में 6,133 मामले सामने आए, जबकि 24 मौतें दर्ज की गईं। हम जानते हैं, बिहार में आंकडे़ जुटाना आसान नहीं। स्वास्थ्य सेवाओं तक हर किसी की पहुंच नहीं है। डॉक्टरों के खाली पदों की संख्या ही अगर हम देखें,तो हमें अंदाजा हो जाएगा कि बिहार में चिंता का स्तर क्या है। क्या बिहार इस स्थिति में है कि पचास या एक लाख मरीजों को झेल पाए? सक्रिय मामले लगभग 30,000 के आसपास दर्ज हैं और आने वाले दिनों में विशेषज्ञों को आशंका है, बिहार जैसे क्षेत्रों में संक्रमण बढ़ेगा। जैसे जीवन और जीविका बचाने की जंग उत्तर प्रदेश में शुरू हो रही है, ठीक उसी राह पर बिहार को भी चलना पड़ेगा। शनिवार को राज्यपाल के नेतृत्व में सर्वदलीय बैठक होने वाली है, उसके बाद सरकार कडे़ फैसलों के साथ सामने आ सकती है। लचीले फैसलों का समय बीत चुका है। यदि हम कड़ाई नहीं करेंगे, तो मुसीबतों से घिरते चले जाएंगे। कोरोना का नया हमला सबके सामने है। जरूरत वास्तविक आंकड़ों या हकीकत से मुंह चुराकर लोगों का मनोबल बनाए रखने की नहीं है। लोगों को जिम्मेदारी लेने के लिए पाबंद करना होगा। नेतृत्व वर्ग को समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करना होगा। चेहरा दिखाने के बजाय काम दिखाने का वक्त है? काम न दिखा, तो जो घाव लोगों की देह और दिल पर लगेंगे, उनका इलाज आने वाले कुछ दशकों तक नहीं हो पाएगा। संक्रमण के बढ़ते मामलों पर पटना हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए स्वास्थ्य विभाग की जमकर खिंचाई की है, तो यह स्वाभाविक है। ऐसे समय में न केवल जांच रिपोर्ट जल्दी आनी चाहिए, सभी के इलाज का मुकम्मल इंतजाम भी होना चाहिए। ताकि किसी कोर्ट को यह न कहना पड़े कि आमजन के लिए सरकारी अस्पताल का दरवाजा लगभग बंद सा है। यह आरोप-प्रत्यारोप का समय कदापि नहीं और न ही राजनीति का है। आज देश-समाज के नेताओं की सार्थकता तब है, जब जरूरी सेवाएं युद्ध स्तर पर सुनिश्चित हों।


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