सम्पादकीय

जनसंख्या पर सख्ती

Subhi
15 July 2022 6:16 AM GMT
जनसंख्या पर सख्ती
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भारत में जनसंख्या विस्फोट कोई नया मसला नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या आकलन प्रकोष्ठ के अनुसार भारत की आबादी इस वर्ष के दिसंबर माह तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी हो जाएगी और यह चीन को भी पछाड़ देगी। हर मिनट तीस बच्चे जन्म ले रहे हैं

Written by जनसत्ता; भारत में जनसंख्या विस्फोट कोई नया मसला नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या आकलन प्रकोष्ठ के अनुसार भारत की आबादी इस वर्ष के दिसंबर माह तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी हो जाएगी और यह चीन को भी पछाड़ देगी। हर मिनट तीस बच्चे जन्म ले रहे हैं, जबकि चीन में दस। दुनिया की कुल जमीन का मात्र दो फीसद भारत के हिस्से में है। पानी सिर्फ चार फीसद उपलब्ध है, लेकिन आबादी अठारह फीसद से ज्यादा है।

भारत को जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े कानूनों की जरूरत है। अगर 1979 में चीन एक बच्चे वाला कानून न लाया होता और जागरूकता पर निर्भर होता तो उसकी आबादी ढाई सौ करोड़ से अधिक होती, लेकिन उसके सख्त कानूनों की वजह से उसकी गति और औसत बहुत कम हो गया है। विश्व स्तर पर भी बढ़ती आबादी मानवता के लिए खतरा है।

भारत के संदर्भ में तो यह वर्ग विशेष के लिए भी खतरा है। स्वास्थ, शिक्षा, रोजगार, पर्यावरण आदि मापदंड इन आंकड़ों पर निर्भर करते हैं और बढ़ती संख्या की वजह से कई इससे वंचित भी रह जाते हैं, इसलिए अब जरूरी है कि हम आबादी की रफ्तार को थामें और इस पर सख्त कानून बने।

श्रीलंका से भारत के उन राज्यों को भी सबक लेना होगा कि पर्यटन पर पूरी तरह निर्भर राज्यों को उद्योग-धंधों का विस्तार करना होगा और स्वयं को आत्मनिर्भर बनना होगा। उत्तर प्रदेश इसका सबसे उत्तम उदाहरण है, जिसकी अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से चलने वाली अर्थव्यवस्था बंद हो गई है। सभी राज्यों को अपने अपने राज्यों में गतिशील मंत्रालय और मंत्री बनाने चाहिए, ताकि राज्यों में परस्पर प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा हो, जिससे उनकी आय बढ़ेगी और कर्ज कम होगा, लोगों का जीवन स्तर भी सुधरेगा। नौजवानों को रोजगार के लिए कहीं दूर भी नहीं जाना पड़ेगा।

पिछले कई वर्षों से देखने में आ रहा है कि संपूर्ण विपक्ष एकजुट होकर भी कोई ठोस मुद्दा वर्तमान सरकार के विरुद्ध खड़ा नहीं कर पा रहा है। हालांकि कुछ विषयों पर इन्होंने अन्य लोगों के कंधों का इस्तेमाल जरूर करने का प्रयास किया, जैसे किसान आंदोलन और नागरिकता संशोधन पर, परंतु वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी। शायद इसी निराशा के चलते विपक्षी अब हतोत्साहित हो चुके हैं और वे अब जनसंख्या नियंत्रण जैसे संवेदनशील मुद्दे के खिलाफ खड़े होकर जनता के क्रोध का ही सामना करेंगे।


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