सम्पादकीय

पाकिस्तानी सेना के उत्पीड़न से त्रस्त होकर जोर पकड़ती अलग सिंधु देश की मांग

Gulabi
27 Jan 2021 11:18 AM GMT
पाकिस्तानी सेना के उत्पीड़न से त्रस्त होकर जोर पकड़ती अलग सिंधु देश की मांग
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पाकिस्तानी लेखक और विचारक हसन निसार का कहना है

पाकिस्तानी लेखक और विचारक हसन निसार का कहना है, समय के साथ अगर आवश्यकताएं बदलती हैं तो हमें नियम भी बदलने चाहिए, नहीं तो शासन करने की राजनीति स्थिर और जड़ हो जाती है। लेकिन पाकिस्तान में ही शासन के तौर-तरीकों में इतना जबरदस्त भेदभाव है कि बलूच, पख्तून, गिलगिट बाल्टिस्तान, के बाद सिंध प्रांत में आजाद सिंधु देश की मांग जोर पकड़ती जा रही है।


वर्तमान पाकिस्तान में प्राप्त राजस्व का करीब 80 प्रतिशत कर सिंध प्रांत से आता है और इस कर के माध्यम से जो रुपया पाक आर्मी के पास पहुंचता है, उसकी संगठित लूट पंजाबी मुसलमान ब्यूरोक्रेसी करती है। जबकि खर्चे में सिंध प्रांत की हिस्सेदारी मात्र 22 प्रतिशत दिया जाता है। पाक की लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था वहां की आर्मी के जूते साफ करने के सिवाय कुछ नहीं कर पाती, सारे बड़े निर्णय पंजाबी आर्मी व ब्यूरोक्रेसी करती है। पाकिस्तान मामलों के जानकार और पूर्व पाकिस्तानी नागरिक व अब यूरोप में निर्वासित जीवन जी रहे आरिफ अजाकिया के अनुसार पाकिस्तान की आर्मी नागरिक कानूनों को जूते की नोक पर रखती है।

सिंधियों की अपनी एक अलग और स्वतंत्र सभ्यता थी, जिसे पाकिस्तानी पंजाबी आर्मी रौंद देने पर आमादा है। अजाकिया कहते हैं पाकिस्तान और पाकिस्तान की आर्मी एक आर्टििफशियल देश है, यहां पर जिहादी मानसिकता के मौलाना और पंजाबी मुस्लिम आर्मी व ब्यूरोक्रेसी के साथ अन्य समुदायों का रहना नामुमकिन है। सिंध के राष्ट्रवादी नेता जीएम सईद को बांग्लादेश बनने के पश्चात ही यह समझ में आ गया था कि सिंध के लोगों का पाकिस्तानी फौजी हुकूमत के साथ रहना मुश्किल है। जीएम सईद वही शख्स थे जो मोहम्मद अली जिन्ना के साथ एक स्वतंत्र मुस्लिम पाकिस्तानी देश बनाने के बहुत पक्के हिमायती और पक्षकार थे। जीएम सईद का कहना था कि सिंधु सभ्यता और सिंध नदी मानव सभ्यता का संदेश देने वाली पहली सभ्यता थी।
हालांकि पाकिस्तान से बांग्लादेश के अलग होने के पश्चात जिस प्रकार बलूच अपनी आजादी की मांग को लेकर लगातार सक्रिय रहे, उसी प्रकार सिंधु देश की मांग को लेकर जीएम सईद ने माना कि पाकिस्तान की अहंकारी पंजाबी फोर्स कभी सिंधियों को बराबरी का दर्जा नहीं दे सकती। अत: सिंधी भाषा, सिंधी सभ्यता और सिंधी लोगों के लिए स्वतंत्र सिंध देश का निर्माण होना चाहिए, चाहे वह सिंधी हिंदू हो या मुसलमान, वह एक गुलदान की तरह है। सिंध प्रांत में प्रदर्शनकारियों की मांग है कि चीन को आखिर सिंध की जमीन क्यों दी जा रही है? चीन अपने यहां सामरिक हितों को साधने में लगा हुआ है और सिंधियों के अधिकारों का हनन कर रहा है। साथ ही, वह उनके संसाधनों पर डाका डाल रहा है। सिंध के प्राकृतिक संसाधनों को अपने कब्जे में ले रहा है।
आखिर सिंधियों की आजादी की मांग को वाजिब क्यों न माना जाए। जिस पाक चीन की दोस्ती पर इमरान की सरकार इतरा रही है, क्या उसे समझ नहीं आता है कि उसका मुस्लिम दोस्त मलेशिया कर्ज न चुकाने के कारण उसका विमान अपनी धरती पर रोक लेता है और कहता है पहले इमरान खान कर्जा चुकाएंगे, उसके बाद विमान को जाने देंगे। इससे ज्यादा शर्मसार करने वाली स्थिति पाकिस्तान के लिए और क्या हो सकती है? जो देश कर्ज के कारण अपने विमान गिरवी रखने पर मजबूर हो जाता है, क्या वह चीन के कर्ज के तले दबे होने के बाद अपनी जमीन चीन से दोबारा हासिल कर पाएगा?
उल्लेखनीय है कि पूरे पाकिस्तान के अंदर अभी सबसे ज्यादा हिंदू और ईसाई सिंध प्रांत में रहते हैं। लिहाजा इस पूरे मामले पर भारत को पैनी नजर रखने की जरूरत है। गिलगिट बाल्टिस्तान जो कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रहा है, चीन पाक आíथक गलियारा के नाम पर यहां से लेकर सिंध और बलूचिस्तान होते हुए ग्वादर पोर्ट तक नई सड़क बना रहा है।

पाकिस्तान की धरती पर तालिबानियों को खड़ा करने में पाकिस्तान आर्मी की ही सबसे बड़ी भूमिका थी और उसमें सबसे ज्यादा पख्तून ही भर्ती करवाए गए थे। अब पाकिस्तान आर्मी ने तालिबान को दिखावटी तौर पर समाप्त करने के नाम पर पख्तून नौजवानों के खिलाफ लगभग युद्ध छेड़ दिया है। बलूची और सिंधियों की तरह ही पख्तून बहुत ही बहादुर कौम है। बलूची नौजवानों की तरह ही पख्तून राष्ट्रवादियों ने तो नारा भी दे दिया है- यह जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है।
फेडरल एडमिनिस्ट्रेशन ट्राइब एरिया, (फाटा) खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तानी फौज के भय की सीमा पार हो चुकी है और अब विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी है। अगर पख्तूनों और बलूचों का सहयोग सिंध राष्ट्रवादियों को मिला तो पाकिस्तान का संघीय ढांचा स्वत: खतरे में आ जाएगा। पाकिस्तान मामलों के बुद्धिजीवियों का कहना है कि पूरे पाकिस्तान में वर्दी का जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप एक और 1971 रक्त रंजित गृह युद्ध को बहुत जल्द पाकिस्तान में दोहरा सकता है।
पाकिस्तान के लेखक और कनाडाई नागरिक तारिक फतेह के अनुसार, राज्य चलाने में समस्त देश की विभिन्न संस्कृतियों की पहचान कर सत्ता में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है। जबकि सच्चाई यह है कि पाकिस्तान की आर्मी पंजाबियों के अलावा किसी और संस्कृति के लोगों को सत्ता के लिए दूर की कौड़ी समझती है। विडंबना देखिए कि बलूच रेजिमेंट में एक भी बलूची जवान की भर्ती नहीं होती। वर्तमान पाकिस्तान के करीब 70 प्रतिशत क्षेत्र में सिंध और बलूचिस्तान है, जबकि यहां उच्च शिक्षा का ढांचा सबसे कमजोर है। ऐसे और भी बहुत से कारण हैं, जिससे वहां की जनता आज आंदोलित है और अपनी मांगों के समर्थन में सड़क पर है। ऐसे में भारत को इस मामले में कूटनीति के स्तर पर आगे बढ़ना चाहिए।


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