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- 'गांधी' तक सिमटी...
शुक्र है कि कांग्रेस 'आउटसोर्स' होने से बच गई। करीब 137 साल पुरानी देश की प्राचीनतम राजनीतिक पार्टी के अभी अवशेष बाकी हैं। आम चुनाव में 12 करोड़ से ज्यादा वोट कांग्रेस के पक्ष में आए थे। यह मामूली आंकड़ा नहीं है। आज भी देश के कोने-कोने तक कांग्रेस का विस्तार ऐसा है कि उसके समर्थक मिल जाएंगे। उस पार्टी की रणनीति बाहर का कोई व्यक्ति या कंपनी कैसे तय कर सकती है? चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस को कौन-सा रणनीतिक फॉर्मूला बता सकते थे, जिसके जरिए पार्टी देश की सत्ता तक पहुंच जाती? पीके ने अपनी प्रस्तुतियों में 'पांच रणनीतियां' सुझाई थीं। उन पर पार्टी को अविलंब निर्णय लेना था। उन रणनीतियों का निष्कर्ष था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही बनें अथवा गैर-गांधी परिवार के चेहरे को पार्टी का नेतृत्व सौंपा जाए। सोनिया गांधी यूपीए अध्यक्ष बनी रहें। ये सभी विरोधाभासी रणनीतियां एक साथ कैसे लागू की जा सकती हैं? पीके का सुझाव यही रहा कि राहुल गांधी को संसदीय बोर्ड और दल का नेता बनाया जाए। प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव, समन्वय बनाया जाए। पार्टी संगठन के बुनियादी स्तर से लेकर कार्यसमिति की सदस्यता तक चुनाव कराए जाएं। मनोनयन पार्टी को ज़मीनी स्तर से जोड़ने में अक्षम ही रहता है। कार्यसमिति में आज भी गांधी परिवार के लाडले मौजूद हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली