सम्पादकीय

रणनीतिक : ओलंपिक के बहिष्कार का मतलब

Neha Dani
24 Jan 2022 1:49 AM GMT
रणनीतिक : ओलंपिक के बहिष्कार का मतलब
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शीतकालीन ओलंपिक पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला, इसका आयोजन उसी उत्साह के साथ होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा चीन में आयोजित होने जा रहे विंटर ओलंपिक के रणनीतिक बहिष्कार के फैसले से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होने वाला। इतिहास बताता है कि ओलंपिक खेलों के बहिष्कार का फैसला कारगर नहीं होता। वर्ष 1956 में हंगरी पर सोवियत हमले के विरोध में स्पेन, स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड द्वारा ओलंपिक के बहिष्कार को दुनिया देख चुकी है, जबकि रूसी हमले का भू-राजनीतिक असर मामूली ही था। ऐसे ही वर्ष 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत हमले के विरोध में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 1980 के मास्को ओलंपिक का बहिष्कार किया था।

लेकिन तब अमेरिका के ज्यादातर यूरोपीय सहयोगियों ने महाशक्ति देश का साथ नहीं दिया था। अमेरिकी बहिष्कार का नुकसान यह भी हुआ था कि उसके एथलीट स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीतने से वंचित रह गए। अमेरिका ने तब सोवियत संघ के सामने अफगानिस्तान से हटने की समय सीमा भी रखी थी, लेकिन मास्को ने उसकी परवाह नहीं की। अमेरिकी प्रतिक्रिया में सोवियत संघ ने दर्जन भर से अधिक देशों के साथ 1984 के लास एंजेलिस ओलंपिक का बहिष्कार किया था।
दूसरी तरफ चीन कोविड-19 के बीच ओलंपिक के आयोजन में भारी प्रक्रियागत सख्ती का परिचय देने जा रहा है। आगामी चार से 20 फरवरी तक होने जा रहे ओलंपिक में वित्तपोषकों, आयोजकों और खिलाड़ियों को संक्रमण के खतरे से दूर रखा जाएगा। चीन ने उस कार्ययोजना को अंतिम रूप दे दिया है, जिसके तहत खेलों से जुड़े अधिकारियों, कर्मचारियों, स्वयंसेवकों, सफाई कर्मचारियों, रसोइयों और प्रशिक्षकों को कई सप्ताह तक एक साथ रहना पड़ेगा और उनका बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं होगा। भारत ने विंटर ओलंपिक का समर्थन किया है, पर इसका प्रतीकात्मक महत्व ही है।
कश्मीर के स्काइर आरिफ खान इस ओलंपिक में भारत के एकलौते प्रतिभागी होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी बहिष्कार के फैसले के व्यापक नतीजे हो सकते हैं, और इससे बाइडन को दो मोर्चे पर लाभ मिल सकता है। एक तो इससे चीन के मानवाधिकार हनन के रिकॉर्ड को दुनिया के सामने लाया जा सकता है। आखिर उइघुरों के प्रति उसके रवैये के बारे में दुनिया को पता ही है। फिर चूंकि इस बहिष्कार में सिर्फ अधिकारी शामिल हैं, खिलाड़ी नहीं, लिहाजा इससे चीन की छवि को ज्यादा नुकसान तो नहीं होगा, लेकिन अपने दमनात्मक रवैये के कारण उसकी कमोबेश किरकिरी हो भी, तो हैरानी नहीं।
हालांकि अभी तक बहिष्कार के बाइडन के आह्वान का ज्यादा असर नहीं दिखा है, क्योंकि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और कोसोवो ने ही बीजिंग में अपने अधिकारी न भेजने का फैसला लिया है। जापान भी हालांकि अपने अधिकारियों को नहीं भेज रहा, पर इस फैसले को 'बहिष्कार' कहने से वह बच रहा है। लेकिन यह तो तय है कि बाइडन के इस फैसले से अमेरिका और चीन के बीच बनी खाई और गहरी होगी, और क्या पता कि इसके जवाब में बीजिंग 2028 में मैक्सिको सिटी में होने वाले समर ओलंपिक के बहिष्कार का फैसला ले!
इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि शिंजियांग प्रांत में उइघुरों के दमन के कारण अपने खेल अधिकारियों को बीजिंग न भेजने का बाइडन का फैसला रक्षात्मक ही है। अलबत्ता ओलंपिक से पहले कुछ और देश अगर अमेरिका के साथ हो जाएं, तो इससे चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। रिपोर्टें हैं कि बीजिंग ने शिंजियांग में 10 लाख से अधिक उइघुरों को कैंपों और जेलों में बंद कर रखा है, और बंदियों के बच्चों को भी यातना दी जा रही है। चीन ने न सिर्फ इन्हें तथ्यहीन आरोप बताया है, बल्कि उसका कहना है कि अमेरिका समेत ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया को इस बहिष्कार की कीमत चुकानी पड़ेगी।
यह संयोग ही है कि सोवियत संघ के बाद एक और ताकतवर कम्युनिस्ट देश अमेरिका के निशाने पर है। अमेरिका ने शीतकालीन ओलंपिक के बहिष्कार का फैसला तब लिया, जब एक चीनी टेनिस सितारे पेंग शुआई ने एक पूर्व शीर्ष चीनी अधिकारी पर यौन शोषण का आरोप लगाया। उसकी शिकायतों को इंटरनेट से तत्काल हटा लिया गया, और पेंग शुआई गायब भी हो गईं। इस पर दुनिया भर के एथलीटों ने 'पेंग शुआई कहां हैं,' शीर्षक से अभियान चलाना शुरू किया। बाद में पेंग शुआई कुछ वीडियोज में देखी गईं, जिन्हें वहां के सरकारी मीडिया से जुड़े पत्रकारों ने ट्विटर पर साझा किया था।
इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी का कहना है कि उसने पेंग शुआई को दो बार बुलाया था, जबकि लोगों का कहना है कि वह कितनी आजादी के साथ अपनी बात रख पाई होंगी, इस पर संदेह है। एक अमेरिकी ओलंपिक एथलीट इवान बेट्स ने अपने स्केटिंग पार्टनर मेडिसन चोक के साथ तमाम एथलीटों की तरफ से इस घटना पर सख्त टिप्पणी की है। उनका कहना है कि यह मानवाधिकार हनन का तो घटिया उदाहरण है ही, इससे मानवता भी तार-तार हुई है।
गौरतलब है कि 180 से अधिक मानवाधिकार संगठन समूहों के अलावा अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों ने उइघुरों के प्रति बीजिंग के व्यवहार और हांगकांग में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर हमले की तीखी आलोचना की है। जाहिर है, अमेरिका ने इसे विंटर ओलंपिक के बहिष्कार की वजह बनाया, और दुनिया भर में चीन के अधिनायकवादी रवैये की आलोचना होनी तय है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी का कहना है कि कुछ देशों द्वारा बहिष्कार करने के बावजूद शीतकालीन ओलंपिक पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला, इसका आयोजन उसी उत्साह के साथ होगा।


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