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Written by जनसत्ता: स्वदेशी तकनीक से बने विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत के जलावतरण से भारत की सामरिक ताकत और आत्मविश्वास निस्संदेह काफी बढ़ गया है। करीब सोलह सौ सदस्यों वाले चालक दल के लिए तैयार किया गया यह युद्धपोत एक तरह से समुद्र में चलती-फिरती वायु और जलसेना छावनी की तरह काम करेगा। इस पर एक समय में करीब तीस हल्के लड़ाकू विमान और हेलिकाप्टर तैनात किए जा सकेंगे। इस तरह यह देश का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत है।
हालांकि अमेरिका, चीन और रूस के पास इससे कुछ अधिक क्षमता वाले पोत हैं, पर विक्रांत के जलावतरण के बाद भारत अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस की कतार में खड़ा हो गया है। भारत के पास एक और विमानवाहक पोत सक्रिय है- विक्रमादित्य। यानी अब भारत के पास दो ऐसे युद्धपोत हो गए हैं। चीन के पास भी इतने ही पोत हैं।
विक्रांत के संचालन से इसके जरिए मिग आदि लड़ाकू विमानों को समुद्र में उतारने और उड़ान भरने की सुविधा उपलब्ध होगी। विक्रांत खुद एक युद्धक जलपोत है। इस तरह हिंद महासागर में भारत की ताकत बढ़ गई है। स्वाभाविक ही विक्रांत के संचालन से खासकर पाकिस्तान और चीन की चिंता बढ़ गई है। अभी तक हिंद महासागर में चीन का दबदबा बना हुआ था और अपनी सामरिक ताकत के बल पर वह भारत को धौंस देता रहता है। इससे उसका मनोबल कुछ कमजोर होगा।
विक्रांत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से तैयार किया गया है। इसमें देश की करीब पांच सौ छोटी-बड़ी कंपनियों ने सहयोग दिया। इसके पहले वाला विक्रांत युद्धपोत ब्रिटेन से मंगाया गया था। विक्रमादित्य रूस से खरीदा गया था।
इस तरह विक्रांत की सफलता के बाद भारत का स्वदेशी सैन्य साजो-सामान के मामले में आत्मनिर्भर बनने का संकल्प विक्रांत के जलावतरण से साकार होता दिख रहा है। भारत उन देशों में है, जो अपने सैन्य साजो-सामान पर काफी धन खर्च करता है। इसलिए कई देश उससे सैन्य उपकरणों की खरीद आदि के लिए लालायित रहते हैं और इसके मद्देनजर अपने अंतरराष्ट्रीय रिश्तों और रणनीतियों में बदलाव भी करते रहते हैं। कई बार इसी आधार पर वे भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करते देखे जाते हैं।
दरअसल, कई देशों की अर्थव्यवस्था सैन्य साजो-सामान के कारोबार पर निर्भर है। वे बिचौलियों को मोटा कमीशन, घूस आदि देकर लड़ाकू विमान, हेलिकाप्टर, पनडुब्बी, हथियार आदि खरीदने का सौदा कराते रहते हैं। अगर भारत इस मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बन जाता है, तो न सिर्फ इन अड़चनों से मुक्ति मिलेगी, बल्कि वह खुद एक सैन्य साजो-सामान के बाजार में खड़ा हो सकता है। इसका रास्ता साफ होता नजर आ रहा है।
इसलिए भी हथियार बनाने वाले देशों को विक्रांत का जलावतरण खटक रहा होगा। सबसे बड़ी बात कि विक्रांत की हिंद महासागर में मौजूदगी से चीन का एकाधिकार समाप्त होगा और वह भारत को जब-तब आंखें दिखाने से बचेगा। अभी भारत को हिंद महासागर में सबसे अधिक चुनौती चीन की तरफ से ही मिलती रही है।
पाकिस्तान भी उसी की शह पर भारत को उकसाने का प्रयास किया करता था। अब वह ऐसा नहीं कर पाएगा, क्योंकि इस युद्धपोत में पानी के भीतर से आसमान में मार करने वाले अत्याधुनिक हथियार लगे हुए हैं। दुश्मन पनडुब्बियों की टोह लेने में भी आसानी हो गई है। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि विक्रांत के आने से हिंद प्रशांत और हिंद महासागर में शांति का वातावरण बनेगा।