- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- बंगाल की राजनीति की...
x
अपनी सोच और राजनीतिक गतिविधियों के कारण प्रायः ही सुर्खियों में रहने वाला पश्चिम बंगाल कई मामलों में पूरी तरह से अलग है
अजय विद्यार्थी।
अपनी सोच और राजनीतिक गतिविधियों के कारण प्रायः ही सुर्खियों में रहने वाला पश्चिम बंगाल कई मामलों में पूरी तरह से अलग है. पश्चिम बंगाल का राजनीतिक कल्चर केवल देश के अन्य राज्यों से ही नहीं वरन अपने पड़ोसी राज्यों बिहार, झारखंड और ओडिशा से भी कई मायनों में पृथक है. यह बातें प्रायः ही चुनाव के दौरान राजनीतिक हिंसा को लेकर कही जाती हैं. जब चुनाव के दौरान देश के अन्य राज्यों में हिंसा नहीं होती है, लेकिन बंगाल में अभी भी चुनाव हिंसा के साये में होती है, लेकिन राजनीतिक हिंसा के अतिरिक्त ये बातें निकाय चुनाव पर भी लागू होती है. देश के अन्य भागों में निकाय चुनावों में मंत्री, सांसद और विधायकों के रिश्तेदारों और संगे-संबंधियों के लड़ने की बात आपने सुनी होगी. वहां जनप्रतिनिधि खुद चुनाव नहीं लड़ते हैं. पूरे देश में केवल पश्चिम बंगाल ही अकेला एक ऐसा राज्य है, जहां निकाय चुनाव मंत्री, सांसद और विधायक न केवल लड़ते हैं, बल्कि पार्षद के साथ-साथ मंत्री, विधायक और सांसद भी बने रहते हैं और यह इस बार भी कोलकाता नगर निगम चुनाव में यह साफ रूप से देखा जा रहा है.
पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ने 19 दिसंबर को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता की देखभाल करने की वाली संवैधानिक इकाई कोलकाता नगर निगम के लिए चुनाव का ऐलान किया है. इस चुनाव में सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं. इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत है कि इस चुनाव में टीएमसी के छह विधायक, एक मंत्री और एक सांसद भी चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव लड़ने वालों में मंत्री फिरहाद हकीम हैं, जो सीएम ममता बनर्जी के काफी करीबी माने जाते हैं और ममता के मंत्रिमंडल में परिवहन मंत्री हैं. वह पहले भी एक ही साथ मंत्री, पार्षद और विधायक एक साथ रह चुके हैं. दक्षिण कोलकाता से टीएमसी की सांसद माला रॉय भी इस बार पार्षद की चुनाव लड़ रही हैं. वह पहले भी पार्षद रहती हुई, सांसद निर्वाचित हो चुकी हैं.
केवल बंगाल में ही एक व्यक्ति दो पद का है प्रावधान
बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक पत्रकारिता का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में ही सिर्फ यह नियम है कि एक व्यक्ति एक साथ दो या दो से अधिक संवैधानिक पदों पर रह सकता है. पश्चिम बंगाल में एक व्यक्ति पार्षद और विधायक या मंत्री या सांसद या मेयर एक साथ रह सकता है. इसके बंगाल की राजनीति में कई उदाहरण भी हैं. संभवतः सरकार ने कभी निकाय चुनाव नियमावली में इस बाबत संशोधन कराकर विधानसभा में नियम बनाए होंगे. इसी कारण ही यह प्रावधान है, लेकिन पश्चिम बंगाल के पड़ोसी राज्यों बिहार, झारखंड और ओडिशा में ये प्रावधान नहीं हैं. उन्होंने कहा, " पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दलों के बैनर तले निकाय चुनाव होते हैं, लेकिन अन्य राज्यों झारखंड और बिहार में पार्टियां उम्मीदवार नहीं उतारती हैं, हालांकि उनका उम्मीदवारों को पार्टी को पूरा समर्थन मिलता है. इसी तरह से पश्चिम बंगाल में पार्षद बहुमत के आधार पर मेयर का चुनाव करते हैं, जबकि अन्य राज्यों में मेयर पद के लिए चुनाव होता है और आम मतदाता मेयर का चयन करते हैं."
एक ही व्यक्ति बने विधायक अलग पार्टी से और मेयर अलग पार्टी से
पश्चिम बंगाल में निकायों में मंत्री, विधायक और सांसदों का पार्षद होना आम बात है, लेकिन बंगाल की राजनीति में ऐसे भी उदाहरण है, जब एक ही व्यक्ति दो संवैधानिक पद पर अलग-अलग पार्टी का प्रतिनिधित्व किया है. वरिष्ठ पत्रकार पार्थ मुखोपाध्याय बताते हैं कि पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री सुब्रत चटर्जी विधानसभा में कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन कोलकाता निगम में टीएमसी ने उन्हें मेयर बनाया था. उसी तरह से वर्तमान में बीजेपी से टीएमसी में शामिल हुए विधायक मुकुल रॉय विधानसभा में बीजेपी के विधायक हैं और बीजेपी के विधायक के रूप में उन्हें पब्लिक अकाउंट कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है, जबकि विधानसभा के बाहर वह टीएमसी का दामन थाम चुके हैं. पार्थ मुखोपाध्याय का कहना है कि केवल मंत्री फिरहाद हकीम या सुब्रत मुखर्जी ही इसके उदाहरण नही हैं. इसके पहले कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी भी एक ही साथ मेयर, मंत्री और विधायक रह चुके हैं. हालांकि यह परंपरा टीएमसी के राजनीति में प्रभुत्व बढ़ने के बाद बढ़ी है, लेकिन सिलीगुड़ी में माकपा के मंत्री और विधायक अशोक भट्टाचार्य एक ही साथ पार्षद रहते हुए सिलीगुड़ी के मेयर रह चुके हैं. वर्तमान में पार्षद रहते हुए अतिन घोष, देवाशीष कुमार मलय मजूमदार भी विधायक हुए थे और अब विधायक रहते हुए पार्षद का चुनाव फिर से लड़ रहे हैं.
सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए नहीं छोड़ना चाहते हैं पद
बंगाल बीजेपी के महासचिव संजय सिंह कहते हैं कि दो संविधान पद पर एक ही व्यक्ति के आसीन होने की परंपरा और राजनीतिक कल्चर केवल पश्चिम बंगाल में ही है और इसके लिए पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग के विधान भी हैं. यह विधान और परंपरा देश के अन्य किसी राज्यों में नहीं है. इसका मुख्य कारण राजनीतिक नेताओं में सत्ता से दूर होने का भय है. उनके मन में यह डर है कि यदि पार्षद किसी दूसरे को बना दिया जाता है, तो राजनीतिक रूप से उनका नुकसान होगा या उससे मिलने वाले लाभ से वे वंचित रहेंगे. बीजेपी नेता विश्वप्रिय रायचौधरी कहते हैं कि कोलकाता नगर निगम के मेयर रहने में जितनी लोकप्रियता मिलती है, शायद एक विधायक रहने में इतनी लोकप्रियता नहीं मिलती है और निगम को फंड भी बहुत ज्यादा ही मिलता है. संभवतः इसी कारण सांसद और मंत्री भी पार्षद पद का चुनाव लड़ते हैं और एक ही साथ दो पदों पर बने रहते हैं, हालांकि टीएमसी ने हाल में एक व्यक्ति और एक पद की नीति बनाई है, लेकिन उम्मीदवारों के ऐलान में इसका पालन होते नहीं दिखा है, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद यह स्थित साफ होगी कि पार्षद चुने जाने वाले मंत्री, सांसद या विधायक एक ही पद पर रहेंगे या फिर पहले की तरह दोनों ही पदों पर बने रहेंगे.
Next Story