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![कहानी : पत्नी की मुस्कान, सांसत में जान कहानी : पत्नी की मुस्कान, सांसत में जान](https://jantaserishta.com/h-upload/2025/02/12/4381465-11111111111111111111.webp)
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विजय गर्ग : पत्नी जब मुस्कुराती है तो अच्छे-अच्छे पतियों को नानी याद आ जाती है। पति जानता है कि पत्नी वैसे ही खाली-पीली नहीं मुस्कुराती। उसकी मुस्कुराहट के पीछे कई राज़ होते हैं। पत्नी को मुस्कुराते देख कई पतियों का तो दिल बैठ जाता है। पत्नी जब मुस्कुराती है तो अक्सर दो बातों की संभावना होती है। या तो पति की जेब पर डाका पड़ने वाला है या पति का कोई राज़ पत्नी को मालूम चल गया है। दोनों ही स्थितियों में पति की शामत ही समझो। एक दुस्साहसी पति ने अपनी मुस्कुराती पत्नी से इसका कारण पूछा तो पत्नी बोली, ‘अब क्या मैं मुस्कुरा भी नहीं सकती। आप तो जब-तब अट्टहास करते रहते हो। मेरे मुस्कुराने पर भी बैन लगाओगे?’
‘अरे भई मैं तो सिर्फ मुस्कुराने का कारण पूछ रहा हूं। कोई तो वजह होगी या यूं ही...।’
‘तो मैं यूं ही मुस्कुरा नहीं सकती? जरूरी है क्या मुस्कुराने के पीछे कोई वजह हो।’ पत्नी के तेवर बदल चुके थे। वह मुस्कुराहट से सीधे डांट-डपट वाले भाव में आ गई थी। ‘नाराज क्यों हो रही हो, मैंने तो वैसे ही पूछ लिया था।’ पति डरते-सहमते बोला।
‘जब मेरे मुस्कुराने पर तुम्हें आपत्ति है तो मेरे हंसने पर क्या करोगे। वैसे भी तुमसे शादी के बाद तो मैं हंसना-मुस्कुराना ही भूल गई हूं। मुझे याद है पिछली बार मायके गई थी, वहां हंसना-हंसाना हुआ था। हर समय रोनी सूरत बनाए रखते हो, तुम्हारे चढ़े हुए थोबड़े को देखकर भला कौन मुस्कुरा सकता है।’ पत्नी के मुंह से दे-दनादन क्रांतिकारी शब्दों का उत्पादन होने लगा था। पति को महसूस हो गया था कि उसने पत्नी से उसकी मुस्कान के बारे में पूछकर बर्र के छत्ते में हाथ दे दिया है।
‘चलो जाने दो...। यह बताओ आज खाने में क्या बनाया है।’ पति ने विषय बदलते हुए कहा।
‘बदल दी न बात। तुम से कुछ कहो तो झट बात बदल लेते हो। इसीलिए तो मेरी मुस्कान चली गई है। थोड़ी भी हंसने-मुस्कुराने की वजह आई नहीं कि पूछताछ करने लगते हो। अब इंसान क्या किसी वजह से ही हंसे-मुस्कुराए? बिना बात भी तो मुस्कुरा सकता है। तुम्हारा तो एक ही काम है। जब देखो तब यही पूछते रहते हो कि आज खाने में क्या बनाया है...। जो बन जाए खा लेना। मैं कौन से छप्पन भोग खाऊंगी, वही खाऊंगी जो तुम्हारे लिए बनेगा। जब भी हंसती-मुस्कुराती हूं, पूछने लगते हो खाने में क्या बनाया है। आदमी क्या खाने के लिए ही जी रहा है?’ पति को काटो तो खून नहीं।
‘मैंने तो बस तुम्हारे मुस्कुराने की वजह ही तो पूछी थी, कौन-सा गुनाह कर दिया।’ पति अब झल्लाने लगा था।
‘तो मैंने ऐसा क्या कह दिया, जो तुम इतना झींक रहे हो। बात ही तो कर रही हूं। अब कुछ कह-सुन भी नहीं सकती क्या...।’ पत्नी टप-टप आंसू गिराने लगी थी। पति हतप्रभ था। क्या करता। पत्नी को मनाने में लग गया।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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Gulabi Jagat
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