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Editorial: राघव का नाम चारों तरफ गूंज रहा था। मामूली घर से निकलकर उसने कारोबार की बुलंदियों को इस तरह छुआ था कि हर तरफ उसकी चर्चा थी। अखबारों में उसकी तस्वीरें छपतीं, रेडियो और सभाओं में उसका ज़िक्र होता। जो दोस्त-रिश्तेदार कभी उसके नाम से कतराते थे, वे अब उसके साथ खड़े नज़र आते। राघव को लगने लगा था कि ज़िंदगी की सारी मुश्किलों को उसने हरा दिया है। शोहरत के शिखर पर पहुँचकर उसे ये भ्रम होने लगा कि अब कभी कुछ गलत नहीं हो सकता।
लेकिन शोहरत का नशा वही करता है, जो शराब—पहले सिर चढ़ती है, फिर पैर के नीचे की ज़मीन खींच लेती है। एक शाम, दफ्तर में बैठा राघव नए मुनाफ़ों का हिसाब देख रहा था, तभी फोन की घंटी बजी। उधर से उसके मैनेजर ने हड़बड़ाई हुई आवाज़ में कहा, "सर, बाजार अचानक गिर गया है, हमारे शेयर धड़ाम से नीचे आ गिरे हैं!"
राघव को यकीन नहीं हुआ। जिस कारोबार की नींव उसने अपनी मेहनत से रखी थी, वह इस तरह धराशायी कैसे हो सकता था! कुछ ही दिनों में उसकी हालत ऐसी हो गई कि जिस सफलता पर वह घमंड करता था, वही अब लोगों की हँसी और चर्चा का कारण बन गई। जो लोग कल तक उसकी तारीफें करते नहीं थकते थे, वही आज उसकी नाकामियों का मजाक उड़ाने लगे।
राघव को अब एहसास हुआ कि जिस डाल पर वह बैठा था, वह कभी भी टूट सकती थी। लेकिन उसे यह समझने में देर हो गई थी। उसने दौलत और शोहरत के घमंड में न केवल अपने पुराने दोस्तों से दूरी बना ली थी, बल्कि अपने आपको भी भुला दिया था।
ऐसे में एक दिन उसका पुराना मित्र मोहन, जो उसकी बुलंदियों के वक्त भी उससे दूर नहीं हुआ था, मिलने आया। उसने बड़े स्नेह से कहा, "राघव, जीवन में ऊँचाइयाँ हासिल करना बुरा नहीं है, पर ऊँचाई पर रहते हुए यह भूलना सबसे बड़ा धोखा है कि इंसान को कभी भी गिरना पड़ सकता है। शोहरत और दौलत का खेल पल भर का तमाशा है—आज हैं, कल नहीं। इसीलिए हमेशा विनम्र रहना चाहिए।"
उस रात राघव ने अपने कमरे में देर तक सोचा। उसे एहसास हुआ कि उसने लोगों को छोटा समझा, अपनों से मुँह मोड़ा, और सफलता के नशे में खुद को भी कहीं खो दिया था। अगले दिन उसने अपने काम की फिर से शुरुआत की, लेकिन इस बार मन में कोई अहंकार नहीं था।
अब राघव न सिर्फ अपने कारोबार को संभाल रहा था, बल्कि हर छोटे-बड़े से वही इज्जत और स्नेह के साथ पेश आता, जिसे कभी वह भूल बैठा था। उसने सीख लिया था कि बुलंदियों का सुख तभी टिकाऊ होता है, जब इंसान ज़मीन से जुड़े रहे।
अब भले ही उसकी कंपनी पहले जैसी बड़ी न हो, लेकिन उसे इसका मलाल नहीं था। राघव ने समझ लिया था कि सफलता पंखों पर सवार होकर आती है, लेकिन विनम्रता वह नींव है, जो इंसान को कभी गिरने नहीं देती।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट
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Gulabi Jagat
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