सम्पादकीय

दो भारतीयों की कहानी : बजरंगी बाबा का कलंक और एस जयशंकर का गौरव

Rani Sahu
16 April 2022 11:03 AM GMT
दो भारतीयों की कहानी : बजरंगी बाबा का कलंक और एस जयशंकर का गौरव
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मीडिया हाउसेज ने 13 अप्रैल को दो कहानी दिखाई. इन दोनों कहानियों का एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं है

सुतानु गुरू

मीडिया हाउसेज ने 13 अप्रैल को दो कहानी दिखाई. इन दोनों कहानियों का एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं है. पहली कहानी में भारत (India) के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने अमेरिकी लोगों को यह बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका में मानवाधिकारों के उल्लंघन (Human Rights Violations) को लेकर भारत चिंतित है. और दूसरी कहानी उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बजरंग मुनि दास (Bajrang Muni Das) की गिरफ्तारी को लेकर थी. बजरंगी बाबा के नाम से मशहूर बजरंग मुनि को गिरफ्तारी से पहले काफी कम लोग जानते थे. हाल ही में इन्होंने मुसलमानों को खुलेआम गाली और मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार करने की धमकी भी दी थी. आश्चर्यचकित पाठकों के मन में सवाल उठ रहे होगें कि यह लेखक आखिर इन दो अलग-अलग घटनाओं को लेखक क्यों जोड़ रहे हैं. वे यह सवाल भी उठा सकते हैं: क्या एस जयशंकर की तुलना बजरंगी मुनि से करना हास्यास्पद नहीं है
एक तरह से ये हास्यास्पद बात हो सकती है. लेकिन बुनियादी तौर पर ये दोनों ही दो उभरते और प्रतिस्पर्धी संस्करणों का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन सवाल ये है कि इनमें से कौन नए भारत का प्रतिनिधित्व करता है. यह वही नया भारत है जिसके बारे में पहले नरेंद्र मोदी और अब अरविंद केजरीवाल बात करते हैं. इसमें कोई शक नहीं है. दरअसल यही न्यू इंडिया है. सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों की वजह से भारत पूरी तरह से बदल गया है. लंबे समय से चला आ रहा उपनिवेशवाद का खुमार अब धीरे-धीरे उतर रहा है. एक व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि भारत कैसे बदल गया है.
नए भारत का प्रतिनिधित्व बजरंगी बाबा जैसे लोग कर रहे हैं
साल 1993 में मैं कोक की वापसी की खबर को कवर करने के लिए आगरा गया हुआ था. रास्ते में एक ढाबे पर हम रूके. वहां का वेटर हमें नज़रअंदाज करते हुए विदेशी पर्यटकों के झुंड की चापलूसी करता नजर आ रहा था जिससे हम काफी नाराज़ हुए और चकित भी. वहीं एक महीने पहले, आगरा एक्सप्रेसवे पर फिर जाना हुआ. इस बार देखा कि ढाबे का एक वेटर मेरे और विदेशियों के एक अन्य समूह के साथ एक जैसा व्यवहार कर रहा था: ये एक ऐसा व्यवहार है जिसे व्यापार की जरूरत कह सकते हैं जो दोनों के प्रति काफी विनम्र था.
1993 का वेटर ओल्ड इंडिया का था. अभी वाला पूरी तरह से न्यू इंडिया का है. उसका व्यवहार न तो अपमानजनक था और न ही वो किसी हीन भाव से ग्रसित था. एस जयशंकर जैसे लोग ही इस नए भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं. और ये नया भारत निस्संदेह ही शांत, आत्मविश्वास से लबरेज और दूरदर्शी है. यह अब न ही याचना करता है और न ही शत्रुतापूर्ण विद्वेष का सहारा लेता है. यह अब काफी विनम्रता के साथ सिर्फ राष्ट्रीय हितों की बात ही करता है. साथ ही दुनिया के सबसे उन्नत देश भा अगर धमकी भरे लहजे में सवाल पूछता है तो उस पर अपनी असहमति जता देता है. यह नया भारत सुरक्षित है; यह भारत अब सिर्फ अपने मुद्दों पर ही केंद्रित नहीं रहता है और न ही किसी पुराने विचार-धारा को लेकर चल रहा है.
लेकिन एक और नया भारत है जो वास्तव में काफी कुरूप है. इस नए भारत का प्रतिनिधित्व बजरंगी बाबा जैसे लोग कर रहे हैं . इन लोगों का जीवन रात-दिन इसी मुद्दे के इर्द गिर्द घूमता है कि कैसे मुसलमानों की छवि बदतर बनाई जाए. इसमें कोई शक नहीं कि न्यू इंडिया में कट्टर और इस्लामी मुसलमान भी हैं . लेकिन इस तरह के प्रतिस्पर्धी कट्टरता से आखिर हमारा कौन सा मकसद पूरा होता है ? बजरंगी बाबा जैसे लोग विक्टिम कार्ड खेलने की साजिश में लगे रहते हैं ; और उनका पसंदीदा बयान यही होता है कि कुछ दशकों में मुसलमान भारत के बहुसंख्यक हो जाएंगे.
भारत अब अपनी सभ्यता की आजादी के लिए लड़ रहा है
यह तथ्य और आंकड़ा कि मुसलमानों की प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर के करीब पहुंच रही है उनके खिलाफ एक साजिश है. वे मांस पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं, बूचड़खानों को बंद करना चाहते हैं, मुस्लिम व्यापारियों को मंदिरों के पास जगह नहीं देना चाहते… कोई भी इस तरह की सूची में नई-नई पाबंदियों को जोड़ सकता है. यदि बजरंगी बाबा जैसे लोग सफल होते हैं तो वे यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत कभी भी 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था नहीं बने. वे यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत तीसरी दुनिया का दकियानूसी खयालात वाला देश बना रहे जैसा कि पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में कानून के नस्लवादी प्रोफेसर ने हाल ही में टिप्पणी की थी.
भारत ने 1947 में राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल की जब अंग्रेजों ने लगभग दो शताब्दियों तक देश को लूटने के बाद आखिरकार देश छोड़ दिया था. इसने 1991 में आर्थिक स्वतंत्रता हासिल की. देर से ही भले लेकिन इसी साल भारतीय उद्योगपतियों पर से सोवियत शैली के नियंत्रण को अंततः समाप्त कर दिया गया. तीसरा, भारत अब अपनी सभ्यता की आजादी के लिए लड़ रहा है. और आप पूरी तरह से गलत होंगे अगर आपको लगता है कि ये सभ्यता की लड़ाई हिंदुओं और मुसलमानों के बीच है. हकीकत इससे काफी दूर है. बहुसंख्यक हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे से नाराज नहीं हैं. वे जीओ और जीने दो के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं और अपने परिवारों के लिए आर्थिक रूप से एक बेहतर भविष्य की तलाश कर रहे हैं.
असली लड़ाई हिंदुओं के दो प्रतिस्पर्धी समूहों के बीच है. जयशंकर दूरदर्शी और सकारात्मक समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह अमीश जैसे लोगों का दौर है जिनकी भगवान शिव और रामायण जैसी किताबों ने हिंदुओं की अपनी जड़ों से फिर से जुड़ने की प्रबल इच्छा को दर्शाया है. यह चेतन भगत जैसे लोगों का दौर है जो पुराने अभिजात वर्ग के उपहास की परवाह किए बगैर एक के बाद एक "बेस्टसेलिंग" किताबों की श्रंखला लाते हैं. इस दौर का प्रतिनिधित्व फिल्म निर्देशक एसएस राजामौली जैसे लोग कर रहे हैं जिनकी हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित फिल्में बड़े पैमाने पर ब्लॉकबस्टर बन गई हैं. इसका प्रतिनिधित्व हजारों छोटे और बड़े उद्यमियों द्वारा किया जाता है जो अपने लिए भौतिक समृद्धि तो चाहते ही हैं लेकिन साथ ही वे अपनी हिंदू विरासत से भी जुड़े रहना चाहते हैं.
लेकिन उन्हें अभी एक भीषण लड़ाई लड़नी है. क्योंकि बजरंगी बाबा जैसे लोग अपनी नफरती परिकल्पना के आधार पर एक नया भारत बनाने के लिए कटिबद्ध हैं. 21वीं सदी के भारत को पटरी से उतारने की उनकी ताकत या उनकी क्षमता को कम आंकना मूर्खता होगी. अगर बजरंगी जैसे लोगों को बढ़ावा मिलता है तो भारत न केवल अपनी राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता को फिर से खो देगा, बल्कि अपनी बुलंद सभ्यता वाली विरासत को पुनः प्राप्त करने की लड़ाई भी हार जाएगा. भले ही हम जयशंकर को स्वतंत्र भारत के सर्वश्रेष्ठ विदेश मंत्री के रूप में तारीफ करते रहें, लेकिन अपने देश में छिपे उस खतरे को भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.
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