सम्पादकीय

तालिबान की कहानी (पार्ट-2) : ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर कैसे नजदीक आए बन गए सबसे खतरनाक

Tara Tandi
12 Sep 2021 12:33 PM GMT
तालिबान की कहानी (पार्ट-2) : ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर कैसे नजदीक आए बन गए सबसे खतरनाक
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हिंदू कुश पहाड़ियों की तलहटी में जलालाबाद से 5 मील दक्षिण में नदी के पास सोवियत सैनिकों द्वारा छोड़े गए शिविरों में ओसामा बिन लादेन ने 'नजम-अल-जिहाद' का आधार रखा था, जिसका अर्थ है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| सौरज्य भौमिक| हिंदू कुश पहाड़ियों की तलहटी में जलालाबाद से 5 मील दक्षिण में नदी के पास सोवियत सैनिकों द्वारा छोड़े गए शिविरों में ओसामा बिन लादेन ने 'नजम-अल-जिहाद' का आधार रखा था, जिसका अर्थ है युद्ध का सितारा. कुछ ही दूर उन्होंने तोराबोरा की गुफाओं में शहद का कारोबार शुरू किया. लेकिन उस वक्त, तालिबान और बिन लादेन में दोस्ताना संपर्क नहीं थे, वे एक-दूसरे पर संदेह करते थे. बिन लादेन के विचार में तालिबान कम्युनिस्ट हैं.

तालिबान के सूचना मंत्री ने दोहराया कि "हम नहीं चाहते हैं कि कोई गुप्त रूप से हमारे देश से दूसरे देशों में विध्वंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहा है." देखा जाए तो, 96 में दिया गया यह बयान फरवरी 2020 के यूएस-तालिबान दोहा समझौते जैसा ही है, जहां यह कहा गया है कि अलकायदा को अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल नहीं करने दिया जाएगा.

तोराबोरा गुफा को मदीना की गुफा की तरह मानते थे बिन लादेन

बिन लादेन की अफगानिस्तान यात्रा तालिबान के लिए एक सुनहरा अवसर था. उन्हें उम्मीद थी कि आवास व्यवसाय में राज करने वाला बिन लादेन का परिवार युद्ध में बर्बाद हुए इस देश का पुनःनिर्माण करेगा. उस वक्त बिन लादेन तोराबोरा गुफा को मदीना कि गुफा की तरह ही पवित्र मानते थे और अपने आप को पैगंबर सोचते थे. उनका रहन-सहन, खाना पीना सब पैगंबर का अनुकरण था. भले ही मुल्ला उमर ने संदेश दिया कि तालिबान मदीना की गुफाओं में पैगंबर के छात्रों की तरह ही हैं. इसलिए तालिबान के सहयोगी सऊदी अरब पर हमला नहीं किया जा सकता और उन्होंने मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया था.

शरीया के अनुसार सऊदी का शाही परिवार गैर-मुस्लिम : बिन लादेन

सन 1996, मार्च के महीने में बिन लादेन ने अपना वादा तोड़ कर सीएनएन को एक साक्षात्कार दिया. बिन लादेन ने कहा, सऊदी का शाही परिवार संयुक्त राज्य अमेरिका के अधीन है और शरीया के अनुसार, वे गैर-मुस्लिम हैं. उन्होंने इजरायल का समर्थक रहे अमेरिका के खिलाफ युद्ध का भी आह्वान किया. इस बार मुल्ला उमर खुद बिन लादेन के पास गया और कहा कि बिन लादेन को कंधार में रहना पड़ेगा. लक्ष्य था, बिन लादेन को नजरबंद रखना. कंधार में बिन लादेन के घर के बाहर सोवियत काल के दो टैंक खड़े कर दिये गये थे.

तब तक बिन लादेन के जिहाद के आह्वान का सकारात्मक जवाब आना शुरू हो गया था. सउदी तक खबर पहुंची कि बिन लादेन उनके देश में हथियारों की तस्करी कर रहा है और वे अपने अनुयायियों के माध्यम से थाने पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं. 1996 में, शाही परिवार के राजकुमार तुर्की बिन फैसल अल सऊद कंधार के लिए रवाना हुए. उसने उमर से मुलाकात की और मांग की कि बिन लादेन को उन्हें सौंप दिया जाए. लेकिन उमर ने आश्चर्य रूप से अस्वीकार कर दिया था.

मजार ए शरीफ पर तालिबान का कब्जा

पश्तो आदिवासी नियमों के मुताबिक मेहमान के साथ विश्वासघात नहीं किया जा सकता. लेकिन अफगानिस्तान का इतिहास गवाह है कि पैसे से ईमान को भी खरीदा जा सकता है. सउदी से 400 ट्रकों के साथ भारी रकम उमर के दरबार में पहुंचाई. डेढ़ महीने बाद, सउदी की मदद से विपक्ष के कब्जे वाला मजार-ए-शरीफ तालिबान के हाथों आ गया. उमर ने बिन लादेन की मदद ली, बिन लादेन के सैकड़ों लड़ाके तालिबान में शामिल हो गए. दो दिन तक शिया समुदाय के हज़ारों लोगों का क़त्ल किया गया, महिलाओं का बलात्कार किया गया और उन्हें मरने के लिए गर्म रेगिस्तान में छोड़ दिया गया.

उस दौरान, 5,000 किलोमीटर दूर तंजानिया और केन्या में एक दूतावास में एक ट्रक-बम विस्फोट में कम से कम 200 लोग मारे गए. अमेरिकी खुफिया विभाग को इस विस्फोट का सीधा संबंध अल-कायदा से जुड़ा हुआ मिला. अमेरिका भी चुप करके बैठने वाला नहीं था, फिर शुरू हुआ ऑपरेशन इनफिनिट रिच. शुरू हुआ अफगानिस्तान और पाकिस्तान सीमा पर स्थित खोस्त प्रांत में अंतहीन मिसाइल हमला. लेकिन अमेरिकी खुफिया विभाग की गलत जानकारी के कारण आधी से ज्यादा मिसाइलें पाकिस्तान में गिरीं. दो पाकिस्तानी नागरिक मारे गए. अफगानिस्तान में मिसाइलें किसी मस्जिदों में या किसी के घर के शौचालय में गिरीं. 22 साधारण अफगान नागरिक मारे गए. कुछ टॉमहॉक मिसाइलों में विस्फोट नहीं हुआ, जिसे बाद में बिन लादेन ने उन्हें 70 करोड़ रुपये में चीन को बेच दिया था.

तब तक बिन लादेन एक बड़ा हीरो बन गया था. उमर ने अमेरिकी विदेश विभाग को फोन पर कहा कि इस्लामिक दुनिया में अमेरिका विरोधी भावना बढ़ी है. इससे आतंकवाद की घटनाएं बढ़ेंगी. एक ही रास्ता है, अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को इस्तीफा दे देना चाहिए. दूसरी ओर, बिन लादेन ने उमर के प्रति पूरी निष्ठा दिखाई. उन्होंने कहा कि उमर "अमीर ऑफ मुस्लिम वर्ल्ड" हैं और पूरी मुस्लिम दुनिया को तालिबान की मदद के लिए आगे आना चाहिए. उसके बाद बिन लादेन-उमर की जोड़ी को रोका नहीं जा सका. ठीक 3 साल बाद बिन लादेन का सपना साकार हुआ, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को मिट्टी में मिला दिया गया.


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