सम्पादकीय

एक "सफल" योजना की कथा

Subhi
7 April 2021 2:15 AM GMT
एक सफल योजना की कथा
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लगभग दो तीन महीने पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के पांच साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक संदेश में कहा था

लगभग दो तीन महीने पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के पांच साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक संदेश में कहा था कि इस योजना ने प्रकृति के प्रकोप से किसानों को बचाया है और करोड़ों किसानों को लाभ पहुंचाया है। एक अन्य मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि फसल बीमा योजना के तहत दावा निपटारे की पारदर्शी प्रक्रिया, किसानों के कल्याण के लिए उनकी कोशिशों को दर्शाता है। लेकिन अब एक वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट ने इस योजना की कथित कामयाबी कलई खोली है। ये रिपोर्ट आरटीआई से हासिल आंकड़ों पर आधारित है। यानी खुद सरकारी आंकड़ों से ये कहानी उभरी है। इसके मुताबिक बीमा कंपनी एचडीएफसी एर्गो ने कम से कम 86 फीसदी और टाटा एआईजी ने तकरीबन 90 फीसदी से अधिक किसानों के क्लेम को खारिज कर दिया। रिलायंस जनरल ने 61 फीसदी से अधिक और यूनिवर्सल सोम्पो ने 72 फीसदी से अधिक फसल बीमा दावों को खारिज किया है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्रावधानों के मुताबिक बड़े पैमाने पर प्रभावित करने वाली सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृति आपदा से हुए नुकसान पर किसानों को क्लेम करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसका आकलन उत्पादन में आई कमी के आधार पर कर लिया जाता है। लेकिन अगर नुकसान छोटे स्तर का होता है, तो इसके लिए क्लेम करने की प्रक्रिया तय है। इस तरह के नुकसान स्थानीय ओलावृष्टि, भूस्खलन, सैलाब, बादल फटना या प्राकृतिक आग के चलते होती है। ऐसी स्थिति में किसान को संबंधित बीमा कंपनी, राज्य सरकार या वित्तीय संस्थाओं को इसकी जानकारी देनी होती है, जिसके बाद राज्य सरकार और बीमा कंपनी के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त समिति नुकसान का आकलन करती है। अब ये साफ हुआ है कि ऐसे मामलों में कंपनियां ज्यादातर क्लेम को ठुकरा देती हैं। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से हासिल जानकारी के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 से 2019-20 के बीच छोटे स्तर पर हुए नुकसान को लेकर किसानों के दायर कम से कम 13.03 लाख दावों को खारिज कर दिया गया। इस दौरान किसानों ने सरकारी एवं प्राइवेट कंपनियों के सामने कुल 1.02 करोड़ क्लेम दायर किए थे। हर क्लेम को ठुकराने के अपने तर्क और नियम संबंधी पेचीदगियां होती हैं। मुमकिन है कि किसान भी बढ़ा-चढ़ा कर क्लेम करते हों। लेकिन यह 60 से 90 फीसदी तक होगा, ये मान पाना मुश्किल है। तो जवाब सरकार को देना चाहिए, जिसके दावे के मुताबिक यह उसकी एक फ्लैगशिप योजना है।


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