सम्पादकीय

किस्सा एक तालीबाज का

Rani Sahu
2 Jun 2023 4:46 PM GMT
किस्सा एक तालीबाज का
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यह किस्सा एक अनूठे तालीबाज का है, जो तालियां पीटते-पीटते उस मुकाम पर जा पहुंचा, जहां बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं। तालियां बजती देखी हैं, परन्तु नटवर जी की जैसी ताली कोई नहीं बजाता। हर सभा में वे तालियां बजाते पाये जाते। जब वे ताली बजाते तो पूरी भीड़ उनकी तरफ मुखातिब हो जाती तथा वे बेखबर होकर तालियां पीटते रहते। कई बार तो प्रश्न यह उठता कि नटवर जी तालियां क्यों बजाते हैं? परन्तु मन सहज रूप से उत्तर दे देता कि कम-से-कम वे ताली तो बजा रहे हैं। तालियां बजाने की परम्परा हमारे यहां प्राचीनकाल से चली आ रही है, जिसे नटवर जी ने आधुनिक काल में भी बचाये रखा। वे भाषण देने वाले हर व्यक्ति से इतना प्रभावित हो जाते कि उनका पूरा शरीर अतिरिक्त रोमांच से भर उठता तथा वे भूल जाते कि उनका ताली बजाना मजाक बन रहा है। नटवर जी के दफ्तर में हड़ताल होती तो वे ही एकमात्र कर्मचारी थे, जो नियमित रूप से सभा स्थल पर पहुंचते, कोई कुछ भी बोले, वे ताली पीटने से बाज नहीं आते।
शनै: शनै: उनका ताली पीटना इतना मशहूर हो गया कि लोग हड़ताल में नहीं, उनकी ताली की आवाज सुनने तथा उसका अंदाज देखने आने लगे, सब कुछ चमत्कृत करने वाला। लोगों के पेट में बल पड़ जाते हंसते-हंसते, परन्तु नटवर जी लगातार पूरे माहौल को रोमांचपूर्ण बनाये रखते। तालियां तो शिखंडी समाज भी बजाता है परन्तु नटवर जी ने उनको भी मात दे दी। ताली क्या बजाते, साथ में मुंह की पूरी बत्तीसी को ही बजा डालते। उनकी हथेलियों की इस अद्भुत शक्ति पर लोग ईष्र्या करने लगे। अपनी हथेलियां देखते और खुद के सिर में दे मारते। मेरी शुरू से ही ऐसे ‘विचित्र किन्तु सत्य’ लोगों से मिलने की जिज्ञासा रही है। अत: एक दिन मैं नटवर जी से जा भिड़ा-‘क्यों सा‘ब आप ताली कब से बजा रहे हैं?’ ‘सन् 1947 से। जब देश आजाद हुआ तथा उसका जश्न मनाया गया, तब मैं मात्र ग्यारह वर्ष का था। पिताजी ने कहा था कि बेटा नेताजी का भाषण चले तब खूब ताली बजाना। मैंने उस दिन इतनी ताली बजायी कि नेताजी ने सभा के बाद आयोजकों से पूछा कि यह होनहार बालक किसका है? पिताजी को और मुझे बुलाया गया। पिताजी को साधुवाद तथा मुझे शाबाशी दी गई।
उसके बाद तो मेरा हौसला ताली बजाने में बढ़ता ही गया। अब तो हालात यह हैं कि यह मेरी आदत बन गई है।’ नटवर जी ने किस्सा-ए-ताली बताया। मैं बोला-‘इसका मतलब आप आजादी के बाद से ताली बजा रहे हैं। कभी आपने यह भी सोचा है कि आप अकेले ताली कब तक बजाते रहेंगे?’ ‘यह मैं क्यों सोचूं? ताली बजाने में मेरा जाता क्या है? उल्टा इससे तो लोगों का उत्साहवर्धन होता है। आपको पता होना चाहिए आजकल लोग ताली बजाने में भी कृपण हो गये हैं।’ ‘लेकिन आप तो किसी की मजाक बनाई जा रही हो, तब भी ताली बजाते हैं। भला, यह तो विसंगति हुई, ताली बजाने का एक समय होता है।’ ‘भाई हम इतनी गूढ़ बातें तो जानते नहीं। बस इतना जरूर जानते हैं कि सामने वाला जो कुछ बोल रहा है-उसे बोलते रहने के लिए प्रोत्साहन देने के लिये तालियां बजाते रहो तो ठीक रहता है।’ नटवर जी ने कहा। मैंने सिर पकड़ कर कहा-‘आपको शायद यह भी मालूम नहीं है कि पूरे शहर में आपकी तालियां प्रसिद्धि की पराकाष्ठा पर पहुंच गई हैं तथा लोगों में आपको देखने का चाव पैदा हो गया है।’ मेरे प्रश्न पर वे लजा गये, बोले-‘यह सब उस प्रभु की कृपा है शर्मा जी। वरना खाकसार क्या चीज है?’
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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