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- कैग पर भी लगाम?
जनता से रिश्ता वेबडेसक | भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने 2015 में 55 रिपोर्टों पेश की थीं। 2020 में ये संख्या घट कर 14 रह गई। असल में नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में रिपोर्टों की संख्या में लगातार गिरावट आई है। गौरतलब है कि ये सरकार सत्ता में आई, तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कैग की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे। कहा था कि ये एजेंसी सरकारी योजनाओं पर अमल में बाधक बन जाती है। तो साफ है कि जैसाकि अन्य कई मामलों में हुआ है, धीरे- धीरे सरकार ने इस एजेंसी पर भी लगाम लगा दी है। ऐसा करने के पीछे मंशा साफ है। आखिर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को यह याद होगा कि कैसे सीएजी की बोफोर्स घोटाले में आई रिपोर्ट राजीव गांधी सरकार के पतन का कारण बनी। फिर इसी संस्था की 2-जी स्पेक्ट्रम और कोयला खदान आवंटन में आई रिपोर्टों ने मनमोहन सिंह सरकार की साख में पलीता लगा दिया। तो फॉर्मूला साफ है- ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी। ना जांच होगी, ना रिपोर्ट आएगी और ना कोई मामला बनेगा। मोदी सरकार किस तरह कैग को लेकर असहज रही है कि इसकी एक और मिसाल सामने आई है।