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- अवैध निर्माणों पर रोक...
नवभारत टाइम्स; नोएडा के विवादित ट्विन टावर के नौ सेकंड के अंदर रविवार दोपहर ढाई बजे धूल-धूसरित होने की इमेज लंबे समय के लिए देशवासियों के जेहन में दर्ज हो गई। ट्विन टावर को गिराने की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सरकारी एजेंसियों की देखरेख में और हर तरह की सतर्कता के साथ हुई। यही वजह रही कि दिल्ली की ऐतिहासिक कुतुब मीनार से भी ऊंची इन दोनों बिल्डिंगों को विस्फोटकों के जरिए ध्वस्त करने के बावजूद किसी तरह के जान-माल का नुकसान नहीं होने दिया गया। हालांकि इसके संभावित परोक्ष दुष्प्रभावों के बारे में अभी से कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता, इसके लिए विशेषज्ञों को ज्यादा गहरी जांच-पड़ताल करनी होगी, जिसमें वक्त लगेगा। फिर भी यह नोएडा अथॉरिटी समेत तमाम एजेंसियों और विशेषज्ञ टीमों की सफलता कही जाएगी कि इस पूरी कवायद को ठीक उसी तरह अंजाम दिया गया जैसा कि तय हुआ था। यह ट्विन टावर वर्षों से विवादों में था और देश में बिल्डर-नौकरशाही-राजनेताओं की सांठगांठ का प्रतीक बन गया था।
पिछले कुछ समय से देश में यह आम धारणा बनती जा रही थी कि अपने यहां सब चलता है। नियम-कानूनों को धता बताते हुए जैसे भी हो जमीन लेकर बिल्डिंग खड़ी कर दो, एक बार फ्लैट्स बिक गए, लोग उसमें रहने लगे तो फिर कुछ नहीं होता। भ्रष्टाचार का टावर कहे जाने वाले इस ट्विन टावर को गिराए जाने से इस परसेप्शन को तोड़ने में थोड़ी मदद जरूर मिलेगी। लेकिन इस प्रकरण ने कई गंभीर सवाल उठाए हैं। एक तो यही कि अवैध बिल्डिंग तो गिरी, पर बिल्डिंग बनाने वालों का क्या? इस सिलसिले में पहली बात यह याद रखने की है कि बिल्डिंग को पूरी तरह से कंस्ट्रक्शन कंपनी के खर्च पर गिराया गया है। दूसरी और ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि इसे गलत तरीके से मंजूरी देने वाले भी कार्रवाई के दायरे में लिए गए हैं। कई अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हुई है और जांच चल रही है। फिर भी यह बहस अपनी जगह है ही कि क्या पूरी तरह से तैयार ऐसी बिल्डिंगों को यों जमींदोज करना ही सबसे अच्छा विकल्प है? क्या सरकार द्वारा जब्त कर अस्पताल या किसी और रूप में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था? सब जानते हैं कि नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए बनाई गई यह देश की इकलौती इमारत नहीं है। तो क्या बाकी इमारतों को भी इसी तरह ध्वस्त करना पड़ेगा? जाहिर है, ऐसी कार्रवाई सांकेतिक ही हो सकती है। सो इस ट्विन टावर के जरिए जो संदेश देना था, वह दिया जा चुका है। अब आगे का काम यह सुनिश्चित करना है कि इस संदेश को बिल्डर-अफसर-नेता बिरादरी गंभीरता से ग्रहण करे और अपने कार्य व्यवहार में आवश्यक बदलाव लाए।