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- महिमामंडन बंद करें
Written by जनसत्ता: बुधवार को जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के सरगना तथा कुख्यात आतंकी यासीन मलिक लगभग सभी टीवी चैनलों पर जिस तरह से छाए रहे, उससे लगा कि सच में, दुर्जन की वंदना पहले और सज्जन की बाद में होती है। दरअसल, यासीन मलिक को अदालत में उसके दुष्कर्मों की सजा सुनाई जानी थी। उस पर कई आरोप थे। यासीन मलिक की पाकिस्तान-परस्ती और देश-विरोधी भावनाओं का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह हाजी ग्रुप में शामिल होकर आतंकी ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान भी गया। हिंसा के इसी दौर में कश्मीरी हिंदुओं को चुन-चुन कर मारा गया, जिससे उन्हें कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
यासीन के खिलाफ एक और मामला अदालत में विचाराधीन है कि उसने अपने साथियों संग मिल कर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रूबिया सईद का अपहरण किया था। यासीन को अगस्त 1990 में हिंसा फैलाने के विभिन्न मामलों में पकड़ा गया और 1994 में वह जेल से छूटा। उसने अपना आतंकी चोला बदलने की कोशिश भी की और एलान किया कि वह अब बंदूक नहीं उठाएगा और महात्मा गांधी की राह पर चलेगा, लेकिन कश्मीर की आजादी के लिए उसकी जंग जारी रहेगी।
यासीन मलिक पर साल 1990 में पांच भारतीय एयरफोर्स के जवानों की हत्या का भी आरोप है। 25 जनवरी 1990 को सुबह साढ़े सात बजे रावलपोरा (श्रीनगर) में एयरफोर्स अधिकारियों पर हुए आतंकी हमले में तीन अधिकारी मौके पर ही शहीद हो गए थे जबकि दो अन्य ने बाद में दम तोड़ दिया था।
इधर कुछ मानवाधिकारवादी यासीन को निर्दोष बताने का वृथा जतन कर रहे हैं। पहले भी याकूब मेमन, अफजल गुरु, बुरहान वानी आदि खूंखार आंकवादियों के पक्ष में हमारे यहां आवाज उठी थी। क्या इस आचरण से यह निष्कर्ष निकाला जाए कि सदाचार के प्रति हम उत्तरोत्तर उदासीन और कदाचार के प्रति रुचिशील होते जा रहे हैं? दुष्ट का यशोगान क्यों? मीडिया, खासकर टीवी चैनलों को चाहिए कि वे दुष्ट और धूर्त को बिल्कुल भी महिमामंडित न करें।