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- आतंक का दंश
Written by जनसत्ता: पाकिस्तान के पेशावर शहर में एक बार फिर शिया मस्जिद पर हुए फिदायीन हमले से साफ है कि यह मुल्क अब अपने ही बुने आतंक के जाल में बुरी तरह से फंस चुका है। जुमे की नमाज के दौरान हुए इस हमले में बड़ी संख्या में लोग मारे गए। सौ से ज्यादा के घायल होने की खबरें हैं। लंबे समय से पाकिस्तान में ऐसे बड़े हमले हो रहे हैं और शिया समुदाय को निशाना बनाया जाता रहा है। भले अभी तक किसी आतंकी गुट ने इस घटना की जिम्मेदारी न ली हो, पर इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि ऐसे जघन्य हमलों के पीछे आतंकी गुट ही सक्रिय हैं।
पेशावर अफगानिस्तान की सरहद से लगे प्रांतों में सबसे ज्यादा अशांत है। लेकिन आतंकी संगठन जिस तरह से यहां दबदबा बनाए हुए हैं और शिया समुदाय पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं, उससे तो लगता है कि यहां सरकार या प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है, बल्कि आतंकियों का राज है। शिया बहुल प्रांत और शहरों में तो ऐसे हमले होते ही रहते हैं, दूसरी जगहों पर भी शिया समुदाय के लोगों पर हमले कर उन्हें नफरत का अहसास कराया जाता है।
गौरतलब है कि पूरी दुनिया में पाकिस्तान आतंकवाद के सबसे बड़े गढ़ के रूप में कुख्यात हो चुका है। यहां बड़ी संख्या में आतंकी संगठनों का जाल बिछा हुआ है। आतंकियों की फौज तैयार करने के लिए प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। सैकड़ों रिपोर्टों में इस बात का खुलासा हो चुका है कि आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजंसी आइएसआइ का संरक्षण हासिल है। इन्हें पैसे से लेकर हथियार तक दिए जाते हैं। इन आतंकवादियों का इस्तेमाल भारत जैसे देशों के खिलाफ तो किया ही जाता है, देश के भीतर शिया समुदाय पर हमलों में इनको हथियार बनाया जाता है।
फिर पाकिस्तान जैसे मुल्क में आबादी का बड़ा हिस्सा शिक्षा से वंचित है। लोग बेहद गरीब हैं। धार्मिक कट्टरता भी बुरी तरह से हावी है। आतंकी संगठनों से लेकर देश की राजनीतिक पार्टियों को ऐसे हालात ही सबसे मुफीद लगते हैं। वरना क्या वजह है कि पकिस्तान की सेना और सरकार चाह कर भी शिया समुदाय की रक्षा नहीं कर पा रही है! अगर आज पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन सरकार के लिए चुनौती बन गए हैं तो इसके लिए जिम्मेदार सरकार और सियासत ही है।
पेशावर की मस्जिद पर हमले के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने आतंकवाद को पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी चुनौती और खतरा बताया। सवाल है कि आखिर इमरान खान यह क्यों भूल जाते हैं कि इस आतंकवाद की जड़ें पाकिस्तान की राज्य प्रायोजित आतंकवाद की नीति में ही गहरे तक फैली हुई हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए अपने शासन में इमरान खान ने कुछ नहीं किया।
अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश पिछले कई सालों से पाकिस्तान पर इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि वह अपने यहां मौजूद आतंकी संगठनों और उनके सरगना के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे। लेकिन अब तक पाकिस्तान ने किसी आतंकी संगठन या उसके सरगना के खिलाफ कोई ऐसी कार्रवाई नहीं की, जिससे यह संदेश जाता हो कि वह वाकई आतंकवाद से निपटने को लेकर गंभीर है। वित्तीय कार्रवाई बल (एफएटीएफ) ने लंबे समय समय से पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाल रखा है और काली सूची में डालने की धमकी दे रखी है। पर लगता है पाकिस्तान की सरकार और सेना पर इसका कोई असर नहीं हो रहा। अगर सरकार और सेना का वरदहस्त न हो तो आतंकी संगठन कैसे सिर उठा सकते हैं?