सम्पादकीय

फिर भी राम मौजूद हैं

Rani Sahu
3 Nov 2021 7:00 PM GMT
फिर भी राम मौजूद हैं
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आज दीपावली का दिन है-दीपोत्सव और उजालों का त्योहार। आज भारतीय समाज का सबसे अहम और जगमगाता पर्व है

आज दीपावली का दिन है-दीपोत्सव और उजालों का त्योहार। आज भारतीय समाज का सबसे अहम और जगमगाता पर्व है। अमीर की अट्टालिकाओं में उजाला है, तो गरीब की झोंपड़ी में भी दीया उजाले ही बिखेर रहा है। एहसास और सोच का अंतर है। बड़े शहर प्रकाशमय हैं, तो दूरदराज की ग्रामीण गलियां और चौपाल भी आलोकित हैं। बाज़ारों में बेतहाशा भीड़ है, तो किसी के संसाधन भी बेहद सीमित हैं, लेकिन मन की फिज़ाओं में हर्ष, उल्लास, उमंग, उत्साह, उत्सव, मिठास, अपनत्व के भाव तैर रहे हैं। चारों ओर रोशनी की कतारें हैं। दूसरी ओर, आज कार्तिक माह की अमावस्या का दिन है-काली, अंधेरी, बिना चांद की रात! फिर भी रात की भयावहता और सन्नाटा बिल्कुल भी डरा नहीं रहे हैं। दिवाली जीवन के इन्हीं विरोधाभासों का त्योहार है। आज किसी भी अयोध्या में राम, मां सीता और लक्ष्मण के साथ, नहीं लौटेंगे, लेकिन फिर भी प्रतीक्षा और उम्मीद है कि वे हौले-हौले कदमों से लौटेंगे और प्रत्येक अयोध्या को आबाद करेंगे। सभी प्रफुल्लित होंगे। नगाड़े बजेंगे। आतिशबाजियां भी चलाई जाएंगी और पटाखे भी फूटेंगे। हमें अपने पर्यावरण की भी चिंता है, क्योंकि सभी राम की ही अयोध्या हैं। हर भारतीय के मानस में आज भी राम मौजूद हैं, बेशक उनका शारीरिक अस्तित्व गायब लगता है। हमारे राम सनातन और सक्रिय हैं।

बेशक मर्यादाएं भंग हुई हैं, अनुशासन टूट रहे हैं, संबंध बिखर रहे हैं, ईमानदारी और भाईचारा नदारद हैं, गौण हैं, शब्दों और वचनों में पवित्रता, सहिष्णुता, स्नेह मौजूद नहीं हैं, नैतिक मूल्यों का निरंतर पतन हो रहा है, फिर भी राम हमारे भीतर, हमारे दरमियान मौजूद हैं। ये कलिकाल के दुष्प्रभाव हैं, हमारे राम को भी पूर्वाभास था। फिर भी राम हमसे जुदा नहीं हैं। अब भी राम हमें सबक सिखा रहे हैं। राम आज भी पथ-प्रदर्शक हैं। मंदिरों में घंटियां बज रही हैं, आरती के दैविक स्वर गूंज रहे हैं, लिहाजा सुनाई भी दे रहे हैं। राम समेत असंख्य देवी-देवताओं की पूजा की जा रही है, कुछ वर्गों की आस्था भी अमूर्त और निराकार है। सभी में राम का समभाव निहित है। कलिकाल चाहकर भी इन भावों को कुचल नहीं सका है। भक्ति का भाव है। सार एक ही है, तो उसमें श्रद्धा, स्नेह, निष्ठा, प्रतिबद्धता, समर्पण के भाव भी निहित होंगे। यह हमारे राम का ही शाश्वत प्रभाव है। मतलब मानवीयता और सकारात्मकता अब भी मौजूद हैं, क्योंकि आध्यात्मिकता, परस्पर स्नेहिल भाव, मानवीय देवत्व आज भी अस्तित्व में हैं, क्योंकि हमारे राम कहीं न कहीं मौजूद हैं। बेशक वह कहीं भी हैं, लेकिन गायब नहीं हो सकते। राम एक भाव हैं, आदर्श हैं, मूल्य हैं, नैतिकता हैं।
राम सिर्फ रघुकुल के सम्राट का एक चेहरा या मर्यादा पुरुषोत्तम महानायक ही नहीं हैं अथवा सिर्फ एक संज्ञा नहीं हैं। राम विश्व के सह-अस्तित्व, सांस्कृतिक समन्वय, भ्रातृत्व, रचनात्मक निर्माण और स्वच्छ, जीवनोपयोगी पर्यावरण, पृथ्वी ग्रह के अस्तित्व को बचाने और सार्वभौमिक मैत्री संबंधों में मौजूद हैं। आज राम को समर्पित दिन है, तो खूब मनाइए, खुशियां बांटें और बटोरें, दुनिया को जगमग रखें, क्योंकि उजाला भी एक स्थायी भाव है, आशा और संभावनाओं का …! दशरथ-पुत्र और इक्ष्वाकु वंश के राजा राम से जुड़ा दिन है, तो ऐतिहासिक और भौतिक अयोध्या में लाखों दीपक प्रज्वलित किए गए हैं, कीर्तिमान आलोकित हो रहे हैं, भावों की यह अभिव्यक्ति भी जरूरी है, क्योंकि इन तमाम उजालों में राम की चमक निहित है। यह एहसास का सरोकार है। जरा आंखें मूंद कर सोच कर तो देखो, तुम्हें राम का एहसास होगा। यदि जीवन में राम हैं, तो रावण भी जरूर होंगे। त्रेता युग के राक्षसराज लंकापति रावण का तो कल्याण राम के हाथों हो चुका है। आज वह प्रासंगिक नहीं है, लिहाजा हर साल उसके पुतले जलाना बेमानी है। रावण भी एक भाव है, प्रवृत्ति है, अहंकार है, नशा है। ये सब क्षणभंगुर हैं। आपने भी अपने जीवन में अनुभव, एहसास किया होगा! उन व्यसनों का दहन करें। आपको ज्ञात है कि हम किन व्यसनों की बात कर रहे हैं। यदि यह जि़क्र आया है, तो यह भी राम की ही इच्छा है, लिहाजा आडंबरों में राम की तलाश करना बंद करें और आत्मालाप का अभ्यास करें। बहरहाल दिवाली की शुभकामनाएं।

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