- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- तनिक तो ठहर जाओ...

x
रिश्ते चाहे खून के हों या भावनाओं के दिल से दिल तक दस्तक देने वाले इन रिश्तों की कद्र करनी चाहिए
रिश्ते चाहे खून के हों या भावनाओं के दिल से दिल तक दस्तक देने वाले इन रिश्तों की कद्र करनी चाहिए. कहने को तो जमाने में बहुत लोग अपने हैं, पर वे अपने ही कई बार ऐसे घाव दे जाते हैं जो सदियों तक रिसते रहते हैं, जख्म बन जाते हैं. फिर भी, किन्ही कड़ियों से जुड़े रहने वाले ये रिश्ते कभी भी मरते नहीं. कई परिवारों के सुखद रिश्ते जब प्रेम, मुहब्बत, प्यार की कहानी कहते हैं, तो दिल के अहसासों को जगते वक्त नहीं लगता.
कितने अच्छे हैं वे परिवार जहां किसी मुखिया की छत्र-छाया में स्नेह के बन्धन पनपते हैं, जहां नन्हें-मुन्नों के आने की खुशी में हर दिल मचलता है, हां शादी की शहनाई गूंजे तो हर किसी की पायल बजती है. खुशियों के संसार में बसे ये रिश्ते परम्परा की दुहाई देते हैं. माता-पिता से लेकर बच्चों, दादा-दादी, नाना-नानी का प्यार मनुहार सब दिखाई देता है. इसके विपरीत, वे परिवार जहां जरा-जरा सी बात पर टकराव की स्थिति हो जाती है, जहां त्योहारों की कोई गरिमा नहीं होती, जहां कोई किसी को याद नहीं करता, सब अपनी ही जिंदगी में मस्त हैं और इसी का जीवन कहते हैं.
द्विवेदी जी की पत्नी को देखती हूं तो महसूस करती हूं कि वे काफी उदास रहती हैं. सबके रिश्तों को बड़ी ललक से देखती हैं. राखी, भाईदोज पर तनिक उदास होती हैं, पर दूसरों की खुशी में खुश रहती हैं. पूछो तो कहती हैं त्योहारों की खुशियां कभी देखी ही नहीं. सब अपने-अपने परिवारों में मस्त हैं, ना कोई बुलाता है न जाते हैं. अब तो कट गई है और कुछ कट जायेगी. बच्चे हैं वो भी व्यस्त रहते हैं, बड़े-बड़े त्योहारों पर आते हैं, पर छोटे तो उनके बिना ही बिताने पड़ते हैं. छुट्टी जो नहीं मिलती. दिल की कसक को भरसक दबाने की कोशिश करती हैं.
किसी पड़ोसी के रिश्तेदार के आने की सुनकर बहुत खुश होती हैं, लेकिन जानती हैं कि उनके रिश्तेदारों ने तो ना आने की कसम खा रखी है. दूसरी तरफ, तिवारी जी का भरा-पूरा परिवार है. हर वक्त चहल-पहल रौनक रहती है. सब जैसे एक दूसरे के लिए ही जीते हैं. हर एक की खुशी में सब शामिल हैं. ऐसे परिवारों को देखकर बड़ा अच्छा लगता है. जिंदगी तो बीत ही जानी है, फिर अपनो से कैसी बेरुखी. परिवार में बड़ों का होना बहुत जरुरी है, सभी रिश्तों को आपस में बाधें रहतें हैं. एक वजह सी रहती है, सबके जुड़े रहने की. भाई-बहन भी निकट रहते हैं. चर्चाएं होती हैं. एक दूसरे की भावनाओं से बांधे रहते हैं.
मुझे याद आती है वर्मा जी की माता जी की जब तक जिंदा रहीं, सारे भाई-बहन आपस में बंधे रहे. बिमार मां सबको आपस में जोड़े रहने का कारण रही. कभी-कभी भाई-बहनों में कहा सुनी हो भी जाती थी, पर सब एक थे. वृद्ध मां की इच्छा पूरी करते-करते गुजरते वक्त के साथ भाई-बहन दूर होते चले गए. जब मां चली गई तो ऐसा लगा जैसे हर रिश्ता ही खत्म हो गया. अब मां के बाद ना प्यार रहा, ना झगड़े का कोई कारण. सब अपने-अपने परिवार में मशगूल हो गए. क्यों इतना दर्द, इतना परायापन, इतना अहंकार लेकर जीता है इंसान.
कभी-कभी ऐसे परिवारों को देखकर बड़ी तकलीफ होती है, जहां बच्चे वृद्ध मां-बाप की मौत का इंतजार करते हैं, जहां उन्हीं की औलाद उनके जीते जी ही उनका अंतिम संस्कार करने की बात कह देते हैं. उन्हें जीवन की वो खुशी नहीं देते जो वे चाहते हैं. एक शिशु की खुशी के लिए मां बाप जान लगा देते हैं पर ऐसे बच्चे जो वृद्ध माता-पिता की खुशी छीन लें बहुत दर्दनाक है. रिश्ते चाहे जैसे भी हों प्यार के धागे में बंधे होने चाहिए. सारी जिंदगी एक दूसरे से कटुता रखी और मरने पर चिता को आग दे दी, ये रिश्ते दिखावे के हैं. वृ़द्ध माता-पिता का सम्मान संतान की प्राथमिकता होनी चाहिए.
बूढ़ी जिंदगी बड़ी आशा और तमन्ना से अपनो का साथ चाहती है. घबराहट, मौत के भय और शारीरिक अक्षमता से अपनी जिंदगी को जीते इन वृद्धों कों आत्मीयता की बहुत जरुरत होती है. इनके उग्र स्वभाव को शांत समझकर इनके साथ व्यवहार करना चाहिए. वृद्धावस्था कुछ ही दिनों की मेहमान है, यह जानकर वृद्धों की इच्छाओं की पूर्ति करनी चाहिए. उनके लिए स्नेहिल वातावरण बनाएं. अपनी जिद् उन पर ना थोपें. उनके कमजोर मन को कटु वाक्यों से आहत ना करें. उन्हें जिंदा ही ना मारें. उनकी मृत्यु का इंतजार ना करें.
अपने माता-पिता के जीवन में हस्तक्षेप करके उन्हें पीड़ायुक्त जीवन जीने को मजबूर करना रिश्तों की गरिमा को कलंकित करना है. सम्माननीय वृद्ध हमारी दया-भाव पर आश्रित होते हैं उन्हें उस रिश्ते से सम्मानित करें. स्नेह के धागों में बड़ी ताकत होती है ये अहंकार में पिरोए नहीं होने चाहिए. पारिवारिक वातावरण में हर रिश्ते का बहुत महत्व होता है, सुलझे हुए रिश्ते दिल को सुकून देने वाले होने चाहिए. उलझ जाने पर टूटने के अलावा कोई चारा नहीं होता. क्या रखा है मन मुटाव में. जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए मन की सादगी, रिश्तों की सच्चाई, प्रेम, स्नेह व विश्वास की बहुत जरुरत है.
एक दूसरे से मिलते रहें, बातचीत करते रहें, कहीं दूर निकल गए तो लौटना मुश्किल हो जाएगा. रुक जाइए अपने भावनात्मक रिश्तों के लिए ठिठक जाइए. इस डोर को मजबूती से पकड़िये ढील देने पर कहीं हाथ से छूट ना जायें ये रिश्ते…
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रेखा गर्ग लेखक
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.

Gulabi
Next Story