सम्पादकीय

सत्य के पुतले

Rani Sahu
5 Jun 2022 7:13 PM GMT
सत्य के पुतले
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इतिहास से बाहर निकलकर राजा हरीशचंद्र कुतुब मीनार के ठीक सामने सत्य की खोज में बैठ गए हैं

इतिहास से बाहर निकलकर राजा हरीशचंद्र कुतुब मीनार के ठीक सामने सत्य की खोज में बैठ गए हैं। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि सत्य यहीं कहीं छिपा है, बल्कि आधुनिक भारत में उन्हें हर इमारत के ऊपर तो पता नहीं, लेकिन नीचे सत्य जरूर छिपा है, यह विश्वास है। दरअसल सत्य की अपनी कसौटियों में रहे राजा ने पुनः जन्म लेकर अपने ही मार्ग को खोजने की कसम ली है। वह चाहते थे कि अयोध्या में बैठकर सत्य खोजा जाए, मगर उन्हें बताया गया कि सत्य का सारा प्रकाश तो अब दिल्ली से आता है। अयोध्या को अब प्रकाश की जरूरत नहीं, इसलिए दिल्ली में इसके मुख्य स्रोत का पता लगाया जाए, सो कुतुब मीनार को चुन लिया। वहां हर आने वाला हैरान था कि भारत में सत्य की खोज में अतीत क्यों आकर बैठ गया। एक मुस्कराते व्यक्ति से हरीशचंद्र ने पूछ लिया, 'क्या तुम नहीं चाहते कि देश में सत्य फिर से खोजा जाए।' व्यक्ति ने कहा, 'महाराज! आज यह प्रश्न ही अप्रासंगिक है. किसी को सत्य से लेना-देना नहीं, बल्कि असली खोज तो यह है कि झूठ किन तरीकों से सत्य लग सकता है।' सत्य में अब न कोई कला और न ही कोई काल बचा है, जबकि झूठ को सत्य बनाना हुनर है। यह सत्य है कि भारत आजाद है, लेकिन इसी तथ्य को झूठ के जरिए बताना पड़ता है कि असली आजादी तो अभी आनी बाकी है। भारत का सत्य वर्तमान इतिहास नहीं, बल्कि या तो अतीत से लाना पड़ेगा या भविष्य को बताना पड़ेगा। राजा हरीशचंद्र परेशान थे कि देश में सत्य से मिलने के लिए किसे माध्यम बनाएं। तभी उन्होंने अपने पास माइक और कैमरा आते देखा, तो सोचने लगे कि भारत ने सत्य के लिए कितने पुख्ता इंतजाम कर लिए हैं।

कैमरा उनके ऊपर तन गया था और उससे भी कहीं अधिक तना हुए पत्रकार घूर रहा था, 'आप किस सत्य की बात कर रहे हैं?' यह सुनकर राजा भूल गए कि आज के युग का सत्य है क्या, लेकिन टीवी पत्रकार ने बात आगे बढ़ाई, 'अब देश का सत्य यही है कि राजा हरीशचंद्र का सत्य आज नहीं है। यहां का सत्य आईटी सैल बताता है। सत्य ढूंढना है तो तमाम भारतीयों के उस सर्टिफिकेट को देखो, जो बताता है कि मुफ्त की वैक्सीन ने किस तरह देश को बचाया। आज की सत्यता एक 'लीक' है, इसलिए हर 'लीक' करवाने वाला सत्यार्थी हो जाता है। देश के लिए जो 'लीक' करते हैं, वही आज के राजा हैं। दरअसल राजाओं के लिए यह आवश्यक है कि वे 'लीक' की सत्यता को स्वीकार करें।' राजा हरीशचंद्र को भरोसा होने लगा कि यूं ही अब यह देश विश्व गुरु नहीं बन रहा, बल्कि सत्यता की खोज में सारा विश्व यहां 'गुरु-गुरु' बोल रहा है, तो इसका अर्थ यह भी है कि झूठ को पकड़ना नामुमकिन हो गया। तभी राजा ने देखा कि कुतुब मीनार के पास ही एक पुतला खड़ा हंस रहा था। यह सत्यता का ही पुतला था। सत्यवादी हरीशचंद्र को देखकर बोला, 'मैं भी सत्य की खोज में कभी निकला था, लेकिन आईटी सैल ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया। मेरी आत्मा अब मुझ पर यकीन नहीं करती, बल्कि इसके बिना मुझे ऐसा आभास होता है कि वास्तविक सत्य यही है कि सत्य ढूंढने के बजाय पुतला बन जाओ।' इतने में आईटी सैल की टीम राजा हरीशचंद्र को ढूंढते-ढूंढते पहुंच गई। सत्य खोजने वाले राजा को पुतला बना दिया गया। वहां अनेक पुतले थे, जो कभी सत्य तक पहुंचना चाहते थे, लेकिन देश की खातिर वे अब पुतले हैं। आईटी सैल जैसा कहता है, वे सत्य मानकर खिलखिलाते हैं, बिना किसी आत्मबोध के।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक

सोर्स- divyahimachal


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