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- सत्य के पुतले

इतिहास से बाहर निकलकर राजा हरीशचंद्र कुतुब मीनार के ठीक सामने सत्य की खोज में बैठ गए हैं। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि सत्य यहीं कहीं छिपा है, बल्कि आधुनिक भारत में उन्हें हर इमारत के ऊपर तो पता नहीं, लेकिन नीचे सत्य जरूर छिपा है, यह विश्वास है। दरअसल सत्य की अपनी कसौटियों में रहे राजा ने पुनः जन्म लेकर अपने ही मार्ग को खोजने की कसम ली है। वह चाहते थे कि अयोध्या में बैठकर सत्य खोजा जाए, मगर उन्हें बताया गया कि सत्य का सारा प्रकाश तो अब दिल्ली से आता है। अयोध्या को अब प्रकाश की जरूरत नहीं, इसलिए दिल्ली में इसके मुख्य स्रोत का पता लगाया जाए, सो कुतुब मीनार को चुन लिया। वहां हर आने वाला हैरान था कि भारत में सत्य की खोज में अतीत क्यों आकर बैठ गया। एक मुस्कराते व्यक्ति से हरीशचंद्र ने पूछ लिया, 'क्या तुम नहीं चाहते कि देश में सत्य फिर से खोजा जाए।' व्यक्ति ने कहा, 'महाराज! आज यह प्रश्न ही अप्रासंगिक है. किसी को सत्य से लेना-देना नहीं, बल्कि असली खोज तो यह है कि झूठ किन तरीकों से सत्य लग सकता है।' सत्य में अब न कोई कला और न ही कोई काल बचा है, जबकि झूठ को सत्य बनाना हुनर है। यह सत्य है कि भारत आजाद है, लेकिन इसी तथ्य को झूठ के जरिए बताना पड़ता है कि असली आजादी तो अभी आनी बाकी है। भारत का सत्य वर्तमान इतिहास नहीं, बल्कि या तो अतीत से लाना पड़ेगा या भविष्य को बताना पड़ेगा। राजा हरीशचंद्र परेशान थे कि देश में सत्य से मिलने के लिए किसे माध्यम बनाएं। तभी उन्होंने अपने पास माइक और कैमरा आते देखा, तो सोचने लगे कि भारत ने सत्य के लिए कितने पुख्ता इंतजाम कर लिए हैं।
सोर्स- divyahimachal
