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- इंडिया गेट पर 'नेताजी'...
आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिवस है। मेरी इच्छा है, सुुभाष बाबू के जरिये आज राष्ट्र की सोई हुई तरुणाई को ललकारू और कहूं, जिस वीर ने युवकों से कभी यह मांग की थी-''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा,'' उसे तुमने क्यों भुला दिया? कम से कम यह ताे जानने का प्रयास किया हाेता कि वह किसने प्रतिशोध का शिकार हुए? आज समय आ गया है कि हम नेताजी सुभाष बाबू के व्यक्तित्व और कृतित्व को स्मरण करके उनके साथ न्याय करें।कहते हैं शहीद की मौत, कौम की जिन्दगी होती है। भारत को आजाद कराने अर्थात गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए जिन क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बाजी लगा दी, उनका इतिहास आने वाली पीढ़ियों से क्यों छिपा कर रखागया? जिस दिन इस राष्ट्र ने नेताजी की सम्पूर्णता को अपना लिया, उसी दिन चमत्कार घटित हो जाएगा। उस दिन राष्ट्र बोध प्रकट हाे जाएगा। राष्ट्र को महसूस करना होगा कि आजादी केवल महात्मा गांधी के आंदोलन के कारण नहीं मिली, बल्कि इसका श्रेय उन शहीदों को भी जाता है जिन्होंने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा। कोई जमाना था जब समाचार पत्र ऐसी खबरों से भरे रहते थे कि 'सुभाष बाबू' जिंदा हैं, अनेक सनसनीखेज रहस्योद्घाटन भी किए जाते रहे। भारत के लोगों को यह तड़प रही कि काश सुभाष बाबू होते ता उनकी चरण धूलि को माथे पर लगा सकते। मैं इतिहास के पन्नों में लौटना नहीं चाहता।आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इंडिया गेट के निकट स्थित छतरी पर नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण करेंगे। प्रधानमंत्री ने इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति ज्वाला के युद्ध स्मारक ज्वाला में विलय को लेकर उठे विवाद के बीच यह ऐलान किया था कि इंडिया गेट पर नेताजी की ग्रेनाइट से बनी भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी। यह घोषणा ऐसे समय की गई जब पूरा देश नेताजी सुभाष चन्द्र की 125वीं जयंती मना रहा है। मैं समझता हूं कि इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा लगाना उन्हें उचित सम्मान देना है। ये उनके प्रति भारत के ऋणी होने का प्रतीक है। जब तक ग्रेनाइट की प्रतिमा बन कर तैयार नहीं होती तब तक होलोग्राम की प्रतिमा स्थापित रहेगी। जब इंडिया गेट बना था तो इंडिया गेट के सामने छतरी में जार्ज पंचम की प्रतिमा लगी थी। 1960 में इसे हटा दिया गया, तब से यह एक छतरी रह गई। इंडिया गेट का विश्व युद्ध से कनेक्शन है, इसलिए जार्ज पंचम की मूर्ति लगाई गई थी। इस छतरी पर नेताजी की प्रतिमा लगाने के फैसले का हर कोई स्वागत कर रहा है।जहां तक 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की प्रतीक अमर जवान ज्योति ज्वाला को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्वाला में विलय कर दिए जाने का सवाल है, इस संबंध में विवाद पैदा होना मुझे नाहक ही लग रहा है। सरकर का तर्क है कि इंडिया गेट पर जिन शहीदों के नाम हैं उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और एंग्लो अफगान युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में लड़ाई लड़ी थी, जबकि अमर जवान ज्योति 1971 के युद्ध में शहीद वीरों की याद में है। दोनों बातें अलग-अलग हैं। अतः औपनिवेशिक काल के प्रतीक इंडिया गेट को अलग रखना चाहिए। यह सही है कि इंडिया गेट पर लगभग 50 वर्षों में अमर जवान ज्योति इंडिया गेट की पहचान रही है। इसे देखकर शहादत के गौरव की अनुभूति होती रही है लेकिन अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्वाला में विलय का फैसला तर्कपूर्ण ढंग से सही है। काफी संख्या में सरकार के इस फैसले पर पूर्व सैनिकों ने खुशी जताई है, लेकिन कुछ ने इसका विरोध भी किया है। अधिकांश पूर्व सैन्य अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली में एक ही स्थान पर शहादत को समर्पित ज्योति रखना यथोउचित है। यह तो एक ज्योति का दूसरी ज्योति में मिलना है। अमर जवान ज्योति का विलय पूरे सम्मान के साथ किया गया है।देशभक्ति के प्रतीकों के महत्व को लेकर टकराव की स्थिति नहीं बननी चाहिए और न ही इस फैसले को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। इस मुद्दे पर बहस के दौरान एक पक्ष बड़े जोरदार ढंग से उजागर हुआ है कि इंडिया गेट अंग्रेजी शासन में बना, जो एक तरह से गुलामी की निशानी है। इसलिए इसे अपने गौरव से जोड़ने की बजाय हमें अपनी स्वतंत्र गौरव परम्परा विकसित करने की जरूरत है। एक पक्ष यह भी है कि अगर जवान ज्योति को इंडिया गेट पर यथावत रखा जाए। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की दीर्घा में सभी शहीद जवानों के नाम अंकित हैं और यह एकमात्र स्थान है, जहां शहीदों काे सम्मानित किया जाना चाहिए तो ज्वाला का विलय सही है। इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाष की प्रतिमा स्थापित करने का फैसला अपने आप में बहुत बड़ा है। भविष्य की पीढ़ियां नेताजी की प्रतिमा पर फूलों की वर्षा करती रहेंगी और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्वाला उनमें राष्ट्र बोध जगाती रहेगी।