सम्पादकीय

आंकड़े बताते हैं कि अमीरों और गरीबों की जिंदगी तो सुधरी, पर मिडिल क्लास का नहीं कोई माई-बाप

Gulabi
23 Aug 2021 11:03 AM GMT
आंकड़े बताते हैं कि अमीरों और गरीबों की जिंदगी तो सुधरी, पर मिडिल क्लास का नहीं कोई माई-बाप
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अगर सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो देश के अमीर तबके की जिंदगी में बहार फिर से लौट आई है

संयम श्रीवास्तव।

अगर सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो देश के अमीर तबके की जिंदगी में बहार फिर से लौट आई है. गरीब की जिंदगी में भी खुशनुमा बयार के लक्षण दिखें हैं, पर मध्य आय वर्ग वालों के लिए अभी दुख की बदली छंटी नहीं है. इंडेक्स ऑफ कंज्यूमर सेंटीमेंट के आंकड़ों को देखकर कुछ ऐसा ही लगता है. उपभोक्ताओं की स्थिति दिखाने वाला यह इंडेक्स के अनुसार जून की तुलना में जुलाई में उच्च मध्य आय वर्ग में 10.7 फ़ीसदी का सुधार जरूर हुआ है. लेकिन अभी भी है लॉकडाउन से पहले की स्थिति का आधा भी नहीं पहुंचा है. यह अभी भी 53.01 है जबकि लॉकडाउन से पहले फरवरी 2020 में 105.30 के स्तर पर था. सीधा मतलब यह है कि अभी मध्यवर्ग को अपने रोजमर्रा की जीवनशैली के लिए जूझना पड़ रहा है. इनसे भी बुरा हाल मध्य मध्य आय वर्ग का रहा है, 2 से 5 लाख तक कमाने वाले इस आय वर्ग की कमाई में इजाफा सबसे कम हुआ है.

कंज्यूमर इंडेक्स के आंकड़ों पर विश्वास इसलिए भी हो रहा है कि देशभर में कारों, मंहगे फ्लैट्स और एफएमसीजी कि डिमांड बहुत तेजी से बढ़ी है. पेट्रोल डीजल के दाम में बढ़ोतरी के बावजूद डिमांड में बड़े लेवल की घटोतरी नहीं देखी जा रही है. दूसरी तरफ महंगाई के चलते मध्य वर्ग की कमर टूट रही है. घर का खर्च बढ़ता जा रहा है पर कंपनियों में इन्क्रीमेंट उस लेवल का नहीं हो रहा है कि वो अपने खर्च की भरपाई कर सकें. दरअसल निम्न आय वर्ग के लिए महामारी के दौरान सरकार कई तरह की योजनाएं लेकर आई जिसका सीधा फायदा इन्हें हुआ है. करीब 80 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त खाद्यान्न की व्यवस्था की गई. उसी तरह कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए भी कई योजनाएं सरकार ले कर आई पर मध्य वर्ग के लिए सरकार के पास कुछ नहीं था. इसलिए महामारी की सबसे बड़ी मार यही तबका भुगत रहा है.
निम्न और उच्च मध्य आय वर्ग के लोगों की कमाई में सुधार है
दरअसल बाजारों में उपभोक्ताओं की तीन कैटेगरी होती है, पहला उच्च मध्य आय वर्ग, दूसरा निम्न मध्य आय वर्ग और तीसरा मध्य आय वर्ग. यह तीनों ही वर्ग बाजार में जिन वस्तुओं को खरीदते हैं उन्हीं के हिसाब से इंडेक्स ऑफ कंज्यूमर सेंटीमेंट के आंकड़े निकाले जाते हैं. कोरोना महामारी ने हर वर्ग के लोगों को परेशान किया. सभी की मुसीबतें बढ़ाईं. लेकिन निम्न और उच्च मध्यवर्ग धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है. इंडेक्स ऑफ कंज्यूमर सेंटीमेंट के आंकड़े बताते हैं कि जुलाई में इस सूचकांक में जो सुधार हुए, उसमें निम्न और उच्च मध्यम वर्ग के लोगों में सुधार हुआ है. जबकि मध्य आय वर्ग के लोग अभी भी बाजार में कम सक्रिय नजर आते हैं. हालांकि इस बीच अगस्त के जो शुरुआती 2 हफ्ते रहे वह उपभोक्ताओं के मिजाज से इतने अच्छे नहीं रहे. 8 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में उपभोक्ता धारणा सूचकांक 1.6 फ़ीसदी गिर गया. वहीं 15 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में यह 2 फीसदी और नीचे चला गया.
सालाना एक लाख से कम आय वाले परिवारों में सुधार हुआ है
जिन परिवारों की कमाई सालाना एक लाख रुपए से कम है उन परिवारों के उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 46 फ़ीसदी का सुधार हुआ है. जुलाई में यह सुधार सबसे बेहतर देखा गया. जबकि कोरोना की दूसरी लहर में यही तबका सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. मई के आंकड़ों को देखें तो यह तबका धारणा सूचकांक में 25 फ़ीसदी नीचे लुढ़क गया था. वहीं जुलाई में इस समूह के लिए सूचकांक 56.4 फ़ीसदी था, जो अप्रैल 2021 के स्तर 55.3 से थोड़ा अधिक था. कोरोना महामारी से पहले देश में सालाना एक लाख से कम कमाने वाले परिवारों की संख्या लगभग दो करोड़ के आसपास थी. जो कोरोना महामारी के बाद से बढ़कर तकरीबन 5.4 करोड़ हो गई है. यानि पहले से अब की संख्या में लगभग तीन करोड़ की बढ़ोतरी देखी गई है.
सालाना दस लाख से अधिक आय वाले परिवारों की भी हालत सुधरी है
उपभोक्ता धारणा सूचकांक में केवल निम्न आय वर्ग के लोगों में ही सुधार नहीं देखा गया है, बल्कि उन परिवारों के धारणा सूचकांक में भी सुधार देखा गया है जिनकी सालाना आय दस लाख से अधिक है. इस महीने के उपभोक्ता धारणा सूचकांक में इनकी धारणा 16.6 फ़ीसदी से बढ़कर 63.3 फ़ीसदी हो गई है. कोरोना की रफ्तार धीमी होने के बाद संपन्न परिवारों की धारणा में दूसरे समूह के मुकाबले सबसे ज्यादा तेजी से सुधार हुआ है. जहां जुलाई में उपभोक्ता धारणा सूचकांक फरवरी 2020 के स्तर का 60 फ़ीसदी था, वहीं दूसरे समूहों के लिए यह आंकड़ा फरवरी 2020 के स्तर पर करीब 50 फ़ीसदी था. देश में ऐसे 30 लाख के करीब परिवार हैं जिनकी सालाना आय लगभग दस लाख से अधिक की है. हालांकि महामारी के पहले यह संख्या करीब 40 लाखों हुआ करती थी.
उच्च मध्य वर्ग समूह का क्या है हाल
जिनकी सालाना कमाई 5 लाख से 10 लाख के बीच है उन्हें हम उच्च मध्य वर्ग समूह कहते हैं. देश में इन परिवारों की संख्या लगभग 2 करोड़ है. इस समूह की उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 7.8 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है. वहीं अगर हम मध्य आय वर्ग समूह की बात करें तो ऐसे समूह में देश के करीबन 16 करोड़ परिवार आते हैं, जिनकी सालाना कमाई 2 लाख से 5 लाख के बीच है. इनके उपभोक्ता धारणा सूचकांक पर महज 1 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
बेरोजगारी से कमर टूटी
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी (सीएमआईई) और इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स (आईएसएलई) की रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन में लगभग 13 करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं. इनमें से 40 फीसदी यानी 5.25 करोड़ ब्लू कॉलर जॉब वाले थे. जो ऑफिस में काम करते थे. जाहिर है कि इनमें 90 प्रतिशत लोग मध्य वर्ग के होते हैं. निजी क्षेत्र में काम करने वाले अधिकतर मध्यवर्गीय अपने वेतन पर ही निर्भर होते हैं. घर का खर्च चलाना हो, बच्चों की की पढ़ाई-लिखाई या फ्लैट की किश्त सब पर असर पड़ता है. इन सवा पांच करोड़ लोगों के अलावा जिनकी नौकरी बच गई थी उनकी सैलरी कट हो गई जिसको पुरानी स्थित में आने मे अभी समय लगेगा.
किसी भी तरह की राहत नहीं मिली
उद्योगों को राहत पहुंचाने के लिए 21 लाख करोड़ रुपए का भारी-भरकम पैकेज घोषित किया. पर सरकार ने मध्य आय वर्ग के लिए कोई योजना नहीं बनाई. लॉकडाउन खत्म होने के बाद प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत काम मिला तो कुछ नौकरी पर वापस लौट चुके हैं. छोटे और मझोले उद्योगों के लिए भी राहत की घोषणाएं हुईं. पर मध्य वर्ग के लिए सबसे बड़ी मुसीबत ईएमआई में कोई राहत सरकार नहीं दे सकी.
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