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
आज़ादी मिलने के पश्चात 15 अप्रैल 1948 को जब हिमाचल राज्य बना तो उद्योगों की उपस्थिति हिमाचल में नाम मात्र की थी। वैसे भी पहाड़ी इलाका होने के कारण अधिकतर यह पर्यटकों के लिए गर्मियों में शीतल वातावरण व सर्दियों में बर्फ के दीदार करने के लिए जाना जाता था। उद्योगों के नाम पर नाहन की ''नाहन फाउंडरी'', कसौली व सोलन स्थित ''मोहन मिकिन ब्रूरी'', मंडी के द्रंग में स्थित ''नमक की खानें'', नूरपुर की ''रेशम मिल'' व पालमपुर की ''सहकारी चाय फैक्टरी'', नाहन व बिलासपुर की ''रोजिन व तारपीन फैक्टरी'' तथा मंडी में लगी ''4 छोटे बंदूक के कारखानों'' की उपस्थिति थी। 1972 तक लगभग यही स्थिति रही। उस समय प्रदेश की आय का लगभग 58 प्रतिशत कृषि व बागवानी से आता था व उद्योगों का हिस्सा लगभग 7 प्रतिशत का ही था। 1971 में जब राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला तो उसके पश्चात ही प्रदेश में वास्तविक रूप से औद्योगिकरण के लिए प्रयास शुरू हुए। ''औद्योगिक क्षेत्र व बस्तियां'' विकसित होने लगीं जिनमें परवाणू, बरोटीवाला, बिलासपुर व कुल्लू प्रमुख थे। कुल्लू ने हैंडलूम के क्षेत्र में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। बिलासपुर के बरमाणा में सीमेंट फैक्टरी आने से, उसे औद्योगिक पहचान मिली। बरोटीवाला का क्षेत्र चंडीगढ़ व पंजाब के साथ लगने के कारण वहां के उद्यमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना तथा टैक्सटाइल, फार्मा व पैकेजिंग के उद्यम यहां स्थापित हुए। परवाणू ''लाइट इंजीनियरिंग'' के क्षेत्र में अपना नाम बनाने लगा। 1990 के दशक में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में उद्योगों का योगदान बढक़र लगभग 27 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2003 के पश्चात, जब केन्द्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, उस समय राज्य के लिए ''विशेष औद्योगिक पैकेज'' की घोषणा की गई
By: divyahimachal
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