सम्पादकीय

बयान और विवाद

Subhi
1 Dec 2021 2:18 AM GMT
बयान और विवाद
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कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद शशि थरूर अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में घिर जाते हैं। निस्संदेह सार्वजनिक जीवन में राजनेताओं को बयान देते या कोई टिप्पणी करते, तस्वीर आदि साझा करते समय सतर्क रहना चाहिए।

कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद शशि थरूर अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में घिर जाते हैं। निस्संदेह सार्वजनिक जीवन में राजनेताओं को बयान देते या कोई टिप्पणी करते, तस्वीर आदि साझा करते समय सतर्क रहना चाहिए। मगर इस बार थरूर एक ऐसे चित्र और टिप्पणी को लेकर विवाद में घिर गए और उन्हें उसके लिए माफी मांगनी पड़ी, जिसे सहज ढंग और खुले मन से भी स्वीकार किया जा सकता था। यही वजह है कि जब राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष सहित कुछ नामचीन महिलाओं ने उस तस्वीर और टिप्पणी को अभद्र तथा थरूर की संकीर्ण सोच का परिचायक माना, तो कुछ महिलाओं ने उसे एक सहज और अनंददायक पलों का गवाह माना।

तृणमूल की सांसद महुआ मोइत्रा ने तो यहां तक कह दिया कि थरूर के ट्वीट पर इसलिए जानबूझ कर विवाद खड़ा किया जा रहा है कि संसद सत्र में जरूरी बहसों की मांग की तरफ से ध्यान हटाया जा सके। दरअसल, हुआ यह था कि थरूर ने कुछ महिला सांसदों के साथ अपनी सेल्फी ट्विटर पर डालते हुए टिप्पणी कर दी थी थी कि 'कौन कहता है कि लोकसभा काम करने के लिए आकर्षक जगह नहीं है। आज सुबह अपनी साथी सांसदों के साथ।' थरूर का कहना है कि वह तस्वीर दरअसल, महिला सांसदों के अग्रह पर ही उतारी और ट्विटर पर डाली गई थी।
यह तस्वीर और टिप्पणी कई लोगों, खासकर महिलाओं को नागवार गुजरी। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने तो यहां तक कह दिया कि महिलाओं को 'वस्तु' की तरह देखना बंद कीजिए। हालांकि तस्वीर बहुत सहज और हल्के-फुल्के पलों में उतारी गई है। उसे देख कर साफ पता चलता है कि वह तस्वीर एक महिला सांसद ने ही उतारी है। उसमें थरूर की कोई कुत्सित भावना कहीं से नजर नहीं आती। उनकी टिप्पणी भी अपत्तिजनक नहीं कही जा सकती। मगर कुछ विषय हमारे समाज में इस कदर संवेदनशील बना दिए गए हैं, कि उन पर कुछ भी बात करने से पहले सोचना पड़ता है।
महिला और पुरुष के संबंधों को लेकर भी दुर्व्याख्याएं इसी वजह से हो जाया करती हैं। यह ठीक है कि हमारे समाज का बड़ा हिस्सा आज भी महिलाओं के प्रति संकीर्ण नजरिया रखता और अनुदार है, पर हकीकत यह भी है कि बहुत सारी महिलाएं अब खुद चारदीवारी में बंद होकर रहना सहन नहीं कर पातीं। उन्हें वस्तु की तरह देखा जाना पसंद नहीं। वे भी स्वतंत्र विचार रखती और अपने ढंग से जीवन जीना पसंद करती हैं। फिर महिला सांसदों को कोई कैसे किसी संकीर्ण दायरे में रख कर देख सकता है।
स्त्री और पुरुष आजकल साथ काम करते हैं। कार्यस्थल पर अक्सर वे हल्के-फुल्के क्षणों में इस तरह की सेल्फी लेते रहते हैं। संसद में भी हर वक्त तनाव भरे क्षण नहीं होते। अगर वहां की गरमागरम बहसों और राजनीतिक तनाव भरे समय के बीच से कुछ सांसद सहज पलों को कैमरे में कैद कर लेते हैं, तो इसमें कुछ बुरा नहीं माना जा सकता। थरूर की इस टिप्पणी की भी सहज व्याख्या की जाए, तो उसके अलग रंग खिल सकते हैं। किसी ने सच कहा है कि चीजों के अर्थ उनमें नहीं, बल्कि उन्हें देखने वालों की नजरों में खुलते हैं। हल्की-फुल्की चीजों को अगर हल्के-फुल्के ढंग से लिया जाए, तभी उनकी खूबसूरती बनी रहती है, वरना सिद्धांतों के खांचे में डाली जाकर वे विद्रूप ही हो जाती हैं। अच्छी बात है कि कुछ महिलाओं की आपत्ति पर थरूर ने माफी मांग ली।

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