सम्पादकीय

अनाथों का नाथ बनें राज्य सरकारें

Gulabi
20 May 2021 5:28 AM GMT
अनाथों का नाथ बनें राज्य सरकारें
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अनाथों का नाथ

आदित्य चौपड़ा। देश में कोरोना संकट का कहर भयावह है। किसी ने पिता खोया तो किसी ने मां, किसी ने माता-पिता दोनों खोये तो किसी ने भाई, बहन और चाचा-चाची। मानवीय स्तर पर भी बहुत से लोगों को आघात लगा और आर्थिक स्तर पर काफी आघात लगा। कहीं बच्चे अनाथ हो गए तो कहीं परिवार का कमाने वाला असमय ही काल कवलित हो गया। समय बड़ा निष्ठुर है, कुछ समझ में नहीं आ रहा कि इस समय क्या किया जाए। कोरोना की दूसरी लहर में राहत के आसार तो दिखाई देने लगे हैं लेकिन कोरोना वायरस से पूरी तरह मुक्ति पाने तक मौतों का आंकड़ा कहां तक पहुंचेगा, कोई कुछ नहीं कह सकता। उम्मीद है कि राज्य सरकारें ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाएंगी और साथ ही सही-सही आंकड़ें रखेंगी। केवल बच्चे ही नहीं, ऐसे परिवारों की संख्या भी कम नहीं होगी जिनके परिवार का पालन-पोषण करने वाला नहीं रहा। ऐसी स्थिति बुजुर्गों के बेटे-बेटियों की हो सकती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कोरोना वायरस से मरने वालों के परिवार को सहायता का हिस्सा बनाया है, जो अनुकरणीय है। अरविन्द केजरीवाल ने मरने वालों के परिवार को 50 हजार रुपए की सहायता, अगर परिवार का कमाने वाला सदस्य नहीं रहा तो विधवा महिलाओं को 2500 रुपए पेंशन और उनके बच्चे को 25 वर्ष की उम्र तक 2500-2500 की पेंशन हर माह दी जाएगी। बच्चों की शिक्षा का खर्च भी सरकार उठाएगी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने भी महामारी में माता-पिता की मौत के बाद अनाथ हुए बच्चों को हर माह पांच हजार रुपए की पेंशन देने और उनकी मुफ्त शिक्षा और मुफ्त राशन व्यवस्था करने की घोषणा की है। अनाथ हुए बच्चों को सामने लाना और उनकी सहायता करना सरकारों और समाज की जिम्मेदारी भी है। हम सबको यह जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी होगी। अभिभावकों की कमी तो कोई जीवन भर पूरा नहीं कर सकता लेकिन ऐसे बच्चों और परिवारों की देखभाल करके हम उन्हें भावनात्मक स्नेह प्रदान कर सकते हैं।

चुनौतियां एक नहीं बल्कि कई हैं। कोरोना के चलते लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। कोरोना के चलते अर्थव्यवस्था पहले ही चरमरा चुकी है। सरकारों के सामने बड़ी चुनौ​ती यह है कि बेरोजगारों को जीवन यापन के लिए अवसर कैसे दिए जाएं। कोरोना से राहत मिलते ही लाॅकडाउन से मुक्ति मिल जाने की उम्मीद तो है लेकिन आर्थिक गतिविधियां फिर से तेज होने में लम्बा समय लग सकता है। लाॅकडाउन से गरीबों और श्रमिकों सहित सम्पूर्ण कमजोर वर्ग की मुश्किलें बढ़ गई हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों द्वारा भारत और निम्न आमदनी वाले लोगों की चुनौतियां बढ़ने से संबंधित शोध रिपोर्टों को पढ़ा जा रहा है। पहली रिपोर्टर अंजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित की गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष कोविड-19 संकट के पहले दौर में करीब 23 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे जा चुके हैं। ये वो लोग हैं जो प्रतिदिन न्यूनतम पारिश्रमिक 375 रुपए से भी कम कमा रहे हैं। दूसरी रिपोर्ट अमेरिकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सैंटर द्वारा प्रकाशित की गई है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में बीते साल 2020 में 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी की दलदल में धकेल दिया है। रिपोर्ट में प्रतिदिन दो डालर यानी करीब 150 रुपए कमाने वाले को गरीब की श्रेणी में रखा गया है। जहां देश का गरीब और श्रमिक वर्ग पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर के थपेड़ों से मिलीं आमदनी घटने और रोजगार मुश्किलों से पूरी राहत भी महसूस नहीं कर पाया, वहीं अब फिर से देश में कोरोना की दूसरी घातक लहर ने गरीबों और श्रमिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। पिछले वर्ष केन्द्र सरकार द्वारा घोषित किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान और 40 करोड़ से अधिक गरीबाें, श्रमिकों और किसानों के जनधन खातों तक सीधी राहत पहुंचाए जाने से आर्थिक दुष्प्रभावों से देश के कमजोर वर्गों को बचाया गया। केन्द्र सरकार राशन कार्ड धारकों को पांच किलो अतिरिक्त अन्न, चावल या गेहूं मुफ्त दे रही है। सामाजिक संगठन मजदूरों को अब भी भोजन करा रहे हैं। गरीबों,असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के रोजगार से जुड़े, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को सम्भालने के लिए राहत के प्रयासों की जरूरत होगी
अनाथ हुए बच्चों और परिवार के लिए कमाने वाले लोगों की मौत के बाद विधवा महिलाओं की देखभाल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समान नीति बनाए जाने की जरूरत है। राज्य सरकारें भी संवेदनशील होकर इन पर मरहम लगाएं तो यह परिवार जल्दी ही संकट से उभर सकते हैं। कमजोर वर्गों को तुरन्त राहत की जरूरत है। इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। देखना यह भी होगा कि घोषणाएं सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने का हथकंडा बनकर न रह जाएं। सहायता में कोई बंदरबांट न हो और पात्र लोगों को इसका लाभ मिले।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने अनाथ बच्चों और परिवारों के ​लिए सहायता कार्यक्रम की घोषणा करके अन्य राज्यों को राह दिखाई है कि वे भी ऐसी ही नीतियां अपनाएं और अनाथों का नाथ बनें। समाज को भी इसकी मदद के लिए आगे आना होगा।
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