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पुलिस को कठपुतली बना राज्य सरकारें राजद्रोह कानून का मनचाहा इस्तेमाल करने से नहीं आ रही बाज
तिलकराज| राज्य सरकारें किस मनमाने तरीके से काम करती हैं, इसका उदाहरण है छत्तीसगढ़ पुलिस की ओर से निलंबित आइपीएस अधिकारी जीपी सिंह को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार करने की कोशिश। इस कोशिश के खिलाफ जीपी सिंह सुप्रीम कोर्ट गए, जहां से उन्हें राहत मिल गई। उन्हें राहत प्रदान करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणियां कीं उन पर छत्तीसगढ़ सरकार ही नहीं, अन्य राज्य सरकारों को भी गौर करना चाहिए, क्योंकि पुलिस का मनमाना इस्तेमाल केवल राज्य विशेष की ही समस्या नहीं है। इस मनमानी का परिचय समय-समय पर लगभग सभी राज्य सरकारें देती हैं। वे ऐसा करने में इसीलिए सफल रहती हैं, क्योंकि पुलिस को अपनी कठपुतली की तरह इस्तेमाल करती हैं।
विडंबना यह है कि खुद पुलिस भी राज्य सरकारों की कठपुतली बनना पसंद करती है। पुलिस को अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करनी चाहिए। वह हर तरह के अधिकारों से लैस है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि राजनेताओं के इशारे पर उसका मनमाना इस्तेमाल किया जाए और अफसर ऐसा होने दें। पता नहीं निलंबित आइपीएस अधिकारी जीपी सिंह के खिलाफ दर्ज आय से अधिक संपत्ति का मामला कितना गंभीर है, लेकिन इतना तो है ही कि इस तरह के मामले राजद्रोह की श्रेणी में नहीं आते। यह समझना कठिन है कि यदि राज्य सरकार किसी कारण से जीपी सिंह के पीछे पड़ गई तो छत्तीसगढ़ पुलिस यह क्यों नहीं देख सकी कि उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला बनता है या नहीं?
राजद्रोह संबंधी कानून के दुरुपयोग का यह कोई पहला उदाहरण नहीं। इस तरह के मामले रह-रहकर सामने आते ही रहते हैं। राज्य सरकारें छोटी-छोटी बातों को लेकर लोगों पर राजद्रोह का आरोप मढ़ देती हैं। हालांकि, ऐसे ज्यादातर मामले अदालतों में टिकते नहीं, फिर भी राज्य सरकारें राजद्रोह कानून का मनचाहा इस्तेमाल करने से बाज नहीं आ रही हैं। यह समस्या इसीलिए देखने को मिल रही है, क्योंकि पुलिस और सत्ता का गठजोड़ लगातार मजबूत होता चला जा रहा है। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने इस गठजोड़ को परेशान करने वाला बताया और इसे रोकने की जरूरत भी जताई, लेकिन उचित यह होगा कि वह यह स्मरण करे कि पुलिस सुधार संबंधी उसके दिशा-निर्देशों पर अभी भी अमल नहीं हो सका है।
पुलिस सुधारों की अनदेखी के सिलसिले के लिए राज्यों के साथ-साथ कहीं न कहीं केंद्रीय सत्ता भी जिम्मेदार है। उसने अपने स्तर पर ऐसी कोई ठोस पहल नहीं की जिससे राज्य पुलिस सुधारों की दिशा में आगे बढ़ें। राज्य सरकारों और केंद्र को यह समझने में देर नहीं करनी चाहिए कि यदि पुलिस सुधारों की दिशा में आगे नहीं बढ़ा गया तो समस्याएं गंभीर ही होंगी। राज्य सरकारों के रवैये को देखते हुए बेहतर यह होगा कि पुलिस खुद में सुधार लाने के लिए प्रयत्न करे।