सम्पादकीय

राज्य कैडर की नई डोर

Rani Sahu
13 Aug 2023 7:07 PM GMT
राज्य कैडर की नई डोर
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By: divyahimachal
विभागों के बदलते तेवर में कैडर की भूमिका अहम है और जब इन्हें स्थानीय रिश्तों के फलक पर प्राथमिकता मिले, तो दफ्तर के नैन-नक्श, एक तरह के स्थानीयवाद का अवतार बन जाते हैं। ऐसे में सुक्खू सरकार की व्यवस्था परिवर्तन की पैरवी में कुछ जिला कैडर के मुकाम को राज्य स्तरीय घोषित करने की परिकल्पना का स्वागत होना चाहिए। सरकारी कार्य संस्कृति बाहों में बाहें डालकर मित्रता तो कर सकती है, लेकिन प्रशासनिक जरूरतों की हिफाजत में कड़े निर्देश अमल में नहीं ला सकती। कुछ समय पहले शहरी विकास विभाग की दृष्टि में इसी भेद को मिटाते हुए राज्य कैडर की डोर बांधी गई, तो अब दो नई फाइलें इसी तरह के मकसद को लेकर कार्मिक, वित्त और विधि मंत्रनाओं से रू-ब-रू हैं। पंचायती राज तथा राजस्व विभाग के विभिन्न ओहदे और उनसे जुड़ी ओहदेदारी अब राज्य स्तारीय दृष्टिकोण में कर्मचारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण की पद्धति को व्यापक बनाने की परिकल्पना को साकार कर सकती है। सुक्खू सरकार इस तरह के फैसलों से खुद के लिए कठिन परीक्षा के साथ सामाजिक चेतना पर भी असरदार हस्तक्षेप कर रही है। जिला से स्टेट कैडर होने की वजह निश्चित रूप से प्रशासनिक सुधारों की नई खेती है, तो इसके मुकम्मल होने के यथार्थ में स्थानांतरण नीति का सशक्तिकरण भी होगा। यह एक साथ सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि को व्यापक बनाने की वचनबद्धता है, जिससे अमूमन सरकारें बचती रहीं या जिन्होंने कैडर के कालीन पर कर्मचारियों को सियासी परिक्रमा बना दिया, उन्होंने जिला कैडर के प्रपंच में नुकसान पहुंचाया है। जिस दिन हिमाचल की राजनीति खुद को कर्मचारी मसलों की न्यायाधीश बनने की प्रथा छोड़ देगी, कई तरह के प्रशासनिक सुधार मिनटों में हो जाएंगे।
प्रदेश को आगे ले जाने के लिए विभागीय अड़चनों और कार्यसंस्कृति की सिलवटों को दूर करना होगा और इसके लिए कैडर विसंगतियों का समाधान ही नहीं, बल्कि समानता का प्रारूप भी चाहिए। यह वेतन-भत्तों से कैडर और कैडर से स्थानांतरण तक की व्यवस्था में ऐसे बदलाव चाहता है जो दीर्घकालीन सुधार करें। स्थानीय या जिला कैडर में घूमती व्यवस्था ने दरअसल राजनीति को ही घुमाया है, नतीजतन कर्मचारी संगठनों के हर पड़ाव में मूल भावना केवल सियासत को ही पोषित करती है। जिस दिन यह भेद मिट जाएगा या सरकारी नौकरी के मायने क्षेत्रवाद से ऊपर उठ जाएंगे, एक कुशल स्थानांतरण नीति का उदय होगा और होना भी यही चाहिए। स्थानांतरण अब तक सियासी व कर्मचारी कौशल की मिलीभगत में एक ऐसी परिपाटी बन चुका है, जहां समाज के स्वार्थ भी जुड़ जाते हैं। हम राज्य की कुशलता में अगर ऐसी परंपराओं के कौशल को अहमियत देते रहेंगे, पंचायती उत्थान से राजस्व की मचान तक शिकार होते रहेंगे। यह दीगर है कि राज्य कैडर में सुविधाओं की नई संस्कृति और प्रोत्साहन के पैगाम स्पष्ट होने चाहिएं। यानी सरकारी आवासीय व्यवस्था पंचायत सचिव, पटवारी, स्कूल के प्राइमरी टीचर से पशु औषधालय के सहायक तक होनी चाहिए और यह भी कि घर से दफ्तर की दूरी के हिसाब से वित्तीय लाभ भी वर्णित करने होंगे। सुशासन के लिए व्यवस्था परिर्वतन की सबसे बड़ी ईमानदारी निर्दयी ट्रांसफर आर्डर नहीं हो सकती, बल्कि एक ऐसी नीति चाहिए जो कर्मचारी-अधिकारी को इसलिए अस्थिर न करे कि स्थानीय सियासी चरित्र को इनके ईमानदार इरादे, संकल्प और सक्रियता पसंद नहीं। बहरहाल स्टेट कैडर अगर एक मुहिम की तरह सभी विभागों की ताजपोशी करे, तो सरकारी सेवाओं का अंदाज व इनकी प्रतिष्ठा का मूल्यांकन काफी हद तक गैर राजनीतिक हो जाएगा।
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