सम्पादकीय

राज्य सीमा विवाद

Triveni
28 Dec 2022 11:48 AM GMT
राज्य सीमा विवाद
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फाइल फोटो 

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है, इससे न केवल राजनीतिक खींचतान, बल्कि स्थानीय लोगों में चिंता भी बढ़ रही है। कर्नाटक विधानसभा ने गुरुवार को एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें सीमा विवाद पर समझौता नहीं करने का संकल्प लिया गया है। अब इसके जवाब में महाराष्ट्र विधानसभा ने भी एक प्रस्ताव पारित किया है, ताकि विवादित क्षेत्रों को जल्दी से जल्दी महाराष्ट्र में शामिल किया जा सके। महाराष्ट्र की राजनीति में भावनाएं ज्वार पर हैं। राज्य विधानसभा में सोमवार को कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद के प्रस्ताव को लेकर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे थे, क्योंकि सत्तारूढ़ बालासाहेबंची शिवसेना (बीएसएस) और भारतीय जनता पार्टी इस मामले में एकमत नहीं थे। बीएसएस ने शुक्रवार को ही कह दिया था कि वह विधानसभा में प्रस्ताव लाएगी। खैर, महाराष्ट्र में अब भाजपा के लिए यह मजबूरी है कि वह बीएसएस के साथ गठबंधन में रहे। समस्या यह भी है कि शिवसेना में विभाजन के बाद पहली बार उद्धव ठाकरे ने बीएसएस का किसी मुद्दे पर समर्थन किया है। उद्धव के इस समर्थन का राजनीतिक महत्व समझा जा सकता है। यह प्रस्ताव भविष्य में भाजपा और बीएसएस की दूरी बढ़ा सकता है।

इस पूरे विवाद में भाजपा के लिए मुसीबत बढ़ना तय लगता है। महाराष्ट्र को खुश करने की कोशिश में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुश्किल हो जाएगी, जहां भाजपा सत्ता में है और अगर कर्नाटक को खुश किया, तो महाराष्ट्र में न केवल लोग नाराज होंगे, सरकार गिरने की भी नौबत आ जाएगी। शिवसेना के दोनों गुटों का कर्नाटक में वजूद नहीं है, लेकिन भाजपा के लिए कर्नाटक का बहुत महत्व है। भाजपा कर्नाटक में भी दबाव में थी, इसलिए उसने गुरुवार को प्रस्ताव पारित कर दिया। अब जवाब में महाराष्ट्र में जो प्रस्ताव पारित हुआ है, उसमें भी भाजपा भागीदार है। यह एक ऐसा विवाद हो गया है, जिसे सुलझाने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को आगे आना होगा। विवादित भूमि किसी के भी पक्ष में जाए, नुकसान भाजपा को होना तय है। अक्सर दावा किया जाता है कि डबल इंजन की सरकार ज्यादा अच्छी होती है। कर्नाटक और महाराष्ट्र, दोनों जगह भाजपा सरकार में है, तो इससे फायदे की उम्मीद दोनों राज्यों में लोगों को जरूर होगी। यह दूसरी पार्टियों के लिए सियासी अनुकूलता का समय है, जबकि भाजपा के लिए प्रतिकूलता का। नुकसान से बचने के लिए भाजपा को कर्नाटक में भी सचेत रहना होगा और महाराष्ट्र में भी।

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