सम्पादकीय

भुखमरी का दायरा

Subhi
8 July 2022 4:25 AM GMT
भुखमरी का दायरा
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इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि जिस दौर में दुनिया विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विकास और प्रयोग की नई ऊंचाइयां छू रही है, उसी में समूचे विश्व में भुखमरी के हालात का सामना करने वाले लोगों की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

Written by जनसत्ता; इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि जिस दौर में दुनिया विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विकास और प्रयोग की नई ऊंचाइयां छू रही है, उसी में समूचे विश्व में भुखमरी के हालात का सामना करने वाले लोगों की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। यों अमूमन हर साल इस मसले पर आने वाली अध्ययन रिपोर्टों में भुखमरी की व्यापकता और जटिलता की व्याख्या की जाती है, मगर यह समझना मुश्किल है कि इसकी जद में सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सरकारें भुखमरी पर काबू पाने के लिए ठोस और नीतिगत कदम क्यों नहीं उठातीं! अब एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र की ताजा वैश्विक खाद्य सुरक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में भुखमरी की स्थिति पहले के मुकाबले ज्यादा विकराल हुई है।

विश्व की करीब दो अरब तीस करोड़ लोगों को भोजन सामग्री जुटाने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध ने हालात को और विकट बनाने में अहम भूमिका निभाई है। संयुक्त राष्ट्र की कई एजंसियों की ओर से संयुक्त रूप से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया 2030 तक सभी रूपों में भूख, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को खत्म करने के अपने लक्ष्य से और दूर जा रही है।

हाल के उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि दुनिया भर में स्वस्थ खुराक का खर्च उठाने में असमर्थ लोगों की संख्या तीन अरब से ज्यादा हो गई। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में मुख्य कारण के रूप में कोविड-19 महामारी के दौरान उपभोक्ता खाद्य कीमतों में वृद्धि के प्रभाव को बताया गया है। जाहिर है, महामारी का सामना करने के क्रम में जो उपाय अपनाए गए, उनसे विषाणु के प्रसार की रोकथाम में कितनी मदद मिली, इसका आकलन बाकी है, लेकिन इसके व्यावहारिक असर के रूप में अगर लोगों के सामने पेट भरने तक का संकट पैदा हो गया तो इस पर फिर से सोचने की जरूरत है।

यह सवाल भी स्वाभाविक है कि जहां अलग-अलग देशों सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मसले पर बारीक नजर रखने वाली संस्थाओं सहित बड़ी तादाद में उच्च स्तर के विशेषज्ञ मौजूद हैं, वहां से इसके दूरगामी हल के लिए ठोस नीतियां क्यों तैयार नहीं हो पातीं! उल्टे यह समस्या लगातार और गंभीर होती गई है और इस मसले पर किसी नई रिपोर्ट पर हैरानी नहीं होती, मगर इससे इतना जरूर पता चलता है कि विश्वभर में नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने को लेकर कोई संतुलित रुख नहीं अपनाया जाता।

दरअसल, सुझाव के समांतर अगर धरती पर मौजूद संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल को लेकर गंभीर प्रयास किए जाएं तो खाद्य असुुरक्षा और भुखमरी के हालात से निपटने के रास्ते निकल सकते हैं। लेकिन युद्ध और अन्य बेमानी मामलों पर बेलगाम धन खर्च करने और मौजूद संसाधनों को भी नष्ट किए जाने के बरक्स भुखमरी को लेकर विश्व समुदाय की ओर से इतनी ही गंभीरता नहीं दिखाई जाती, तो इसके पीछे किसका हित है? अभाव से जूझती आबादी को पोषणयुक्त संतुलित भोजन मुहैया कराने को लेकर चिंता जताई जाती है, लेकिन हकीकत यह है कि बहुत सारे लोगों को जीने के लिए न्यूनतम भोजन भी नहीं मिल पा रहा।

लंबे समय से क्या यह समस्या स्थिर इसलिए है कि भुखमरी के भुक्तभोगी तबके बेहद गरीब और कमजोर समुदायों के होते हैं, जिनकी परवाह करना सरकारें जरूरी नहीं समझतीं? ऐसा क्यों है कि दुनिया में विज्ञान के आविष्कारों और इसकी प्रगति के नए आयामों के बीच अंतरिक्ष की दुनिया और नए ग्रहों पर जीवन तक बसाने की बातें होती हैं और दूसरी ओर धरती पर ही मौजूद आबादी का पेट भरने के इंतजाम नहीं हो पा रहे!



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