सम्पादकीय

भुखमरी का आपातकाल

Rani Sahu
22 March 2022 7:23 PM GMT
भुखमरी का आपातकाल
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रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मानवीय संकट की एक बार फिर चर्चा करना लाजिमी है

रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मानवीय संकट की एक बार फिर चर्चा करना लाजिमी है। इस बार हालात 'भुखमरी के आपातकाल' सरीखे हो गए हैं। खाद्यान्न उपलब्ध नहीं है अथवा बेहद महंगा हो गया है। गेहूं का आयात-निर्यात बाधित हो गया है, लिहाजा संयुक्त राष्ट्र की रपट इनसानी रूह तक कंपाने वाली हैै कि करीब 1.30 करोड़ लोग भूखे रह सकते हैं। यह आंकड़ा बड़ा भी हो सकता है, क्योंकि जब रपट संकलित की गई होगी, उसके बाद हालात और भी वीभत्स हुए हैं। युद्ध और भी विध्वंसकारी होता जा रहा है। बहरहाल रपट में आकलन किया गया है कि सोमालिया, यमन, सीरिया, मंगोलिया, इथियोपिया और ऑर्मेनिया आदि देशों में भुखमरी के हालात इतने पक चुके हैं कि देशों ने 'अनाज का आपातकाल' घोषित कर दिया है। रूस और यूक्रेन बीते कई सालों से 30 फीसदी से अधिक गेहूं का निर्यात इन देशों को करते थे। युद्ध ने उसे लील दिया है। युद्ध के कारण 20-30 फीसदी फसल इस बार बोई भी नहीं गई है। सप्लाई चेन टूट चुकी है।

अनाज के भंडारण खाली होते जा रहे हैं। युद्ध के कारण एक ही माह में खाद्यान्न के दाम 20-35 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। खाद्यान्न अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से इन देशों तक पहुंचाना 'मौत के दरवाजे' तक जाना है, क्योंकि पड़ोस में ही मिसाइलें दागी जा रही हैं। बमबारी जारी है। तोपखाने गोले बरसा रहे हैं। इनसान की कोई कीमत नहीं है, क्योंकि उन्हें भी निशाना बनाया जा रहा है। युद्ध की नैतिकता गई भाड़ में! भुखमरी के हालात का अनुमान सिर्फ एक घटना से ही लगाया जा सकता है। रूस ने खाद्यान्न वाहक जहाज पर हमला किया और हजारों टन अनाज चुरा लिया। ऐसे में भुखमरी के शिकार देशों ने भारत की तरफ देखना शुरू किया है। भारतीय गेहूं, चावल, मक्का आदि की मांग बढ़ने लगी है। भारत कमोबेश ज्यादातर खाद्यान्न के मामले में 'आत्मनिर्भर' है, लेकिन खाद्य तेल, उर्वरक, खाद, कच्चा तेल आदि का आयात करना पड़ता है। चूंकि आयात भी बमुश्किल किया जा रहा है, लिहाजा भारत का आयात बिल 600 अरब डॉलर तक बढ़ने की आशंका जताई गई है। भारत सरकार के राजस्व में भी, वित्त-वर्ष 2022-23 के दौरान, एक लाख करोड़ रुपए की कमी हो सकती है। उससे चालू खाते का घाटा भी बढ़ सकता है। ऐसे हालात में युद्ध के 26 दिन बीत चुके हैं।
यूक्रेन लगभग तबाह और मलबा हो चुका है। अभी तो रूसी सेनाएं शहरों के अंदर नहीं घुसी हैं। यूक्रेन की प्रथम राजधानी और आर्थिक-व्यावसायिक केंद्र खारकीव का करीब 80 फीसदी शहर 'मिट्टी' हो चुका है। करीब 500 इमारतें ज़मींदोज की जा चुकी हैं। यूक्रेन के एक करोड़ सेे ज्यादा नागरिक देश छोड़ कर जा चुके हैं। जाहिर है कि वे अब शरणार्थी की जि़ंदगी बसर करने को अभिशप्त होंगे! करीब 115 बच्चों की मौत हो चुकी है। रूसी सेनाएं लगातार हमले कर यूक्रेन के अस्तित्व को ध्वस्त करने में जुटी हैं। राजधानी कीव फिलहाल 'अभेद्य दुर्ग' बनी है, लेकिन समझ नहीं आता कि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की अंतिम रणनीति क्या है? वह अमरीका, यूरोप, नाटो देशों की हथियार और आर्थिक मदद के बूते कब तक युद्ध में, अपने देश कोे, झांेकते रहेंगे? क्या वह यूक्रेन का अस्तित्व खत्म करने पर आमादा हैं और खुद विदेश भाग सकते हैं? ऐसे में जेलेंस्की की चेतावनी हास्यास्पद और चौंकाऊ लगती है कि तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है! अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की यूरोप यात्रा बेहद महत्त्वपूर्ण है। वह नाटो देशों के साथ भी युद्ध को लेकर विमर्श करेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के कीव दौरे की भी बात कही गई है। हम नहीं मानते कि नौबत तीसरे विश्व युद्ध की आएगी। हमारा प्रथम और बुनियादी सरोकार मानवीय संकट को लेकर है। संयुक्त राष्ट्र ही इस संदर्भ में कुछ कर सकता है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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