सम्पादकीय

रजत से शुरुआत

Triveni
26 July 2021 1:50 AM GMT
रजत से शुरुआत
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मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए नया इतिहास रच दिया।

मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए नया इतिहास रच दिया। मणिपुर की एथलीट चानू ने रजत पदक जीतने के लिए कुल 202 किलोग्राम वजन उठाया, जबकि चीन की होउ झिहुई ने कुल 210 किलोग्राम वजन उठाकर स्वर्ण जीता है। चानू ने पदक जीतने की राह में स्नैच पार्ट में कुल 87 किलो वजन उठाया और क्लीन ऐंड जर्क में 115 किलो वजन उठाकर भारत का नाम रोशन किया है। वह ओलंपिक पदक जीतने वाली कर्णम मल्लेश्वरी के बाद दूसरी भारतीय भारोत्तोलक हैं। सिडनी ओलंपिक 2000 में कर्णम ने कांस्य जीता था। इस पदक के लिए पूरा श्रेय चानू की अथक मेहनत को दिया जा सकता है। चानू पहले विश्व चैंपियन रह चुकी हैं, जब उन्होंने अनाहेम में 48 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण जीता था, लेकिन ओलंपिक पदक की तो बात ही कुछ और है। पिछले ओलंपिक में उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा था, लेकिन उसके बाद से उन्होंने जी-जान से टोक्यो ओलंपिक के लिए खुद को तैयार किया। टोक्यो ओलंपिक की शुरुआत में ही जो भारत को खुशी मिली है, उसका कोई जोड़ नहीं है। इस बड़ी जीत ने दूसरे तमाम खिलाड़ियों को प्रेरित कर दिया है।

मीराबाई चानू ने ओलंपिक में भारोत्तोलन पदक के लिए भारत के दो दशक से अधिक लंबे इंतजार को समाप्त करके साबित कर दिया है कि भारतीय भारोत्तोलक महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। चानू ने साफ कहा है, मैं सिर्फ मणिपुर की नहीं, पूरे देश की हूं। शनिवार को पूरे प्रदर्शन के दौरान उनकी मुस्कान सबसे चमकदार थी। वह मां के आशीर्वाद के साथ खेल रही थीं और जीतने के बाद उन्होंने कहा कि मैं मां से मिलने को बेताब हूं। उनका यह कहना भारत जैसे देश में बहुत मायने रखता है, जहां लड़कियों का खेल की दुनिया में आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है। बहुत संघर्ष से वे अपने लिए जगह बनाती हैं। चानू भी लगभग दो साल से अपने परिवार से नहीं मिली थीं। पदक जीतते ही उनके दिमाग में सबसे पहले घर की याद उमड़ आई। इंफाल के पास नोंगपोक काकचिंग में जिस घर में वह पली-बढ़ीं, वह घर उन्हें पुकारने लगा। बेशक, उनके मन में यह इच्छा स्वाभाविक आई होगी कि अपनी जमीन पर जल्दी से जल्दी पहुंचकर सफलता का स्वाद चखा जाए।
पिछले साल लॉकडाउन की पूरी अवधि - 68 दिन - पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान में बिताने वाली चानू अपने कमरे तक सिमट गई थीं, लेकिन उन्होंने कभी अभ्यास से मुंह नहीं चुराया। यथासंभव व्यायाम और मानसिक तैयारी से वह गुजरती रहीं। वह चाहतीं, तो घर लौट सकती थीं, लेकिन तब शायद पदक उनके हाथ नहीं लगता। घर की याद आती थी, तो वह हर दिन अपनी मां से वीडियो कॉल पर बात करती थीं। खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया। आज भारत में न जाने कितनी बेटियां और माताएं भाव-विभोर होंगी। चानू की जीत भारतीय महिलाओं की जीत है। जो भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक में भाग ले रही हैं, निश्चित ही उनका मनोबल बढ़ा होगा। इन सभी खिलाड़ियों को चानू से सीखना चाहिए। प्रतियोगिता के दिन भी चानू इस मजबूत भावना के साथ उठी थीं कि वह जीत जाएंगी और उन्होंने कर दिखाया। उन्होंने रजत जीता है और उनका नाम भारतीय खेल पटल पर हमेशा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया है। भारतीय खिलाड़ियों से उम्मीदें बढ़ गई हैं, लेकिन यह तो अभी महज आगाज है।


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