सम्पादकीय

अवरोध हटने की शुरुआत

Rani Sahu
29 Oct 2021 6:30 PM GMT
अवरोध हटने की शुरुआत
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यह किसी खुशखबरी से कम नहीं कि लगभग ग्यारह महीने बाद किसानों के धरना स्थल पर लगे बैरिकेड्स को हटाने की शुरुआत हो गई है

यह किसी खुशखबरी से कम नहीं कि लगभग ग्यारह महीने बाद किसानों के धरना स्थल पर लगे बैरिकेड्स को हटाने की शुरुआत हो गई है। जब यातायात की शुरुआत होगी, तब दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले लोग निश्चित ही राहत की सांस लेंगे। टीकरी सीमा के बाद गाजीपुर सीमा से भी बाधाओं के हटने से कम से कम सरकार की ओर से परेशानी कुछ कम हो जाएगी। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि बाधाओं को पूरी तरह से हटा दिया जाएगा या एक-दो या आधे लेन ही खोले जाएंगे। यदि एक-दो लेन को भी चालू कर दिया जाता है, तब भी लोगों को बड़ी राहत होगी। जयपुर की ओर जाने वाले मार्ग पर भी हरियाणा सरकार को यातायात की सुविधा बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए। बारिश में सर्विस लेन को बड़ी क्षति पहुंची है और इक्का-दुक्का लेन के चालू रहने से घंटों जाम की स्थिति बनी रहती है। हम सब जानते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एकाधिक जगहों पर यातायात बंद होने से अरबों रुपये का नुकसान हुआ है। जाम वाले इलाकों में रहने वालों के साथ ही वहां स्थित रोजगार-धंधों पर भी इसकी तगड़ी मार पड़ी है।

जिन नेताओं और अधिकारियों ने यातायात को अब खोलने का निर्णय लिया है, वे बधाई के पात्र हैं। शासन-प्रसाशन में यातायात को फिर से सहज बनाने की चिंता अगर बढ़ी है, तो यह हर दृष्टि से सराहनीय है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के कुछ दिन बाद ही उठाया गया है। सुनवाई के दौरान किसान संगठनों ने शीर्ष अदालत में यह कहा था कि उन्होंने कोई रास्ता बंद नहीं किया है, दिल्ली की सीमाओं पर बैरिकेड्स पुलिस ने लगाए हैं। वाकई, जब किसानों ने दिल्ली की ओर कूच किया था, तब उन्हें राजधानी के महत्वपूर्ण ठिकानों से दूर रोकने के लिए पुलिस ने ही अवरोधक लगाए थे। जिस तरह से कांटों की ढलाई हुई थी, सीमेंट के अवरोधक खड़े किए गए थे, सड़कों को रातोंरात खोद दिया गया था, लोग भूले नहीं हैं। किसानों को लेकर सरकार के मन में एक भय था और इस भय को कुछ कथित आंदोलनकारियों ने मौका मिलने पर लाल किले पर उत्पात मचाकर सही साबित कर दिया। कोई शक नहीं कि हम आर्थिक, सामाजिक, सांविधानिक रूप से बहुत नुकसान झेल चुके हैं, अत: अब यह संकट टलना चाहिए। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन से लोकतंत्र भले कम मजबूत हुआ है, लेकिन देश का गौरव कतई नहीं बढ़ा है। विगत ग्यारह महीने में यमुना में बहुत पानी बह चुका है, पर समस्या जस की तस बनी हुई है।
जहां सरकार कुछ लचीलापन दिखा रही है, वहीं किसानों को भी जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए। उदाहरण के लिए, गाजीपुर बॉर्डर पर डटे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि रास्ते खुलेंगे, तो हम भी अपनी फसल बेचने पार्लियामेंट में जाएंगे। अगर किसान वाकई ऐसा करने वाले हैं, तो सरकार को ज्यादा गंभीरता का परिचय देना चाहिए। टिकैत भले ही कह रहे हों कि सड़क जाम करना हमारे विरोध का हिस्सा नहीं है, लेकिन हकीकत कुछ अलग है। किसान सड़कों पर ऐसे आ जमे हैं कि उन्हें भी हटने में वक्त लगेगा। उम्मीद करनी चाहिए कि जैसे सड़कों से अवरोधक हटने की शुरुआत हो रही है, ठीक उसी तरह से समाधान का भी मार्ग प्रशस्त होगा। परस्पर संवाद और समझदारी से ही बाधाएं हटेंगी

हिन्दुस्तान

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