सम्पादकीय

सभ्यता के मानक

Subhi
6 Oct 2022 5:50 AM GMT
सभ्यता के मानक
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महिलाओं के अधिकार, स्वतंत्रता और सुरक्षा से इस बात का ज्ञान हो जाता है कि किसी भी समाज या देश की मानसिकता कैसी है। भारत एक ऐसा देश है, जहां पर महिलाओं को देवियों के रूप में पूजने का दावा किया जाता है, मगर आज उसी भारत में दिन-प्रतिदिन महिलाओं के साथ ऐसी घटना घटित होती जा रही है

Written by जनसत्ता; महिलाओं के अधिकार, स्वतंत्रता और सुरक्षा से इस बात का ज्ञान हो जाता है कि किसी भी समाज या देश की मानसिकता कैसी है। भारत एक ऐसा देश है, जहां पर महिलाओं को देवियों के रूप में पूजने का दावा किया जाता है, मगर आज उसी भारत में दिन-प्रतिदिन महिलाओं के साथ ऐसी घटना घटित होती जा रही है जो हमारे समाज की सभ्यता के ऊपर सवाल खड़ा करती हैं। हाल में भी कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जो इस बात की तरफ इशारा करती है कि हम कितने सभ्य हैं। बल्कि सभ्यता के मानक पर हम इसके उलट ध्रुव पर खड़े लगते हैं।

उत्तराखंड में घटित घटना ने सभी का ध्यान इस बात की तरफ आकर्षित किया है कि भारत में महिलाएं कितनी असुरक्षित हैं। जब ऐसी घटनाएं हमारे सामने आती है तब 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे नारे खोखले लगने लगते हैं और हम अपनी बहु-बेटियों को घर से बाहर न जाने की सलाह देते हुए उनकी स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाते हैं। इसके कारण हम उनके साथ-साथ अपने समाज का भविष्य भी अंधकार की तरफ धकेल देते हैं।

आखिर क्या वजह है कि आजादी के इतने दशक बाद भी हमारे देश में भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है! आज भी हमारा देश इस समस्या को खत्म या कम नहीं कर पा रहा। बल्कि दिनोंदिन यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही। इसका एक बहुत बड़ा कारण हमारी देश की जनता के खासे हिस्से का खुद भ्रष्टाचार के प्रति सहज होना है।

जो हमारे देशहित के लिए जनसेवा के नाम पर सरकारी संस्थानों में किसी न किसी पद पर कार्यरत हैं, वही चंद पैसों और अपनी नौकरी में आगे पदोन्नति के लिए अपना ईमान बेचकर अपने से बड़े पदाधिकारी के मनमाने आदेशों को मानने और उसकी जी हुजूरी में लगे हुए हैं।

दुख की बात यह है की हमारे आज के युवा, जिन्हें अभी जोश उमंग से भरा होना चाहिए और अपनी काबिलियत पर भरोसा होना चाहिए, वे भी इस गलाकाट प्रतियोगिता में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे। अगर यह सिलसिला ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब शराफत से नौकरी करने वाले अधिक से अधिक लोग अवसाद ग्रस्त हो जाएंगे और हमारा देश, हमारा समाज भ्रष्टाचार में पूरी तरह लिप्त हो जाएगा। अब सवाल उठता है कि अपने आगे आने वाली पीढ़ी को हम क्या दे रहे हैं? क्या इस तरह हमारा देश शिक्षित, समृद्ध और विकासित राष्ट्र बनेगा?

अंगदान से सिर्फ किसी की जान ही नहीं बचती, बल्कि इससे कई रिश्ते भी बच जाते हैं। किसी का बेटा तो किसी का भाई और पति का प्यार मिल जाता है। अंगदान की कीमत समझनी है तो उन लोगों से पूछा जा सकता है, जिन लोगों की इससे जिंदगी वापस मिल या संवर गई। अंगदान की कमी के कारण दिल खराब होने की बीमारी से पीड़ित हर साल हजारों मरीज दम तोड़ देते हैं।

अगर हादसे के शिकार ज्यादातर लोगों का अंगदान की व्यवस्था हो तो बहुत सारे मरीजों की जान के साथ-साथ कई रिश्ते भी बचाए जा सकते हैं। हमारे देश में जरूरत के मुताबिक अंगदान नहीं हो रहा है। इसकी बड़ी वजह नियमों की बाधा और जागरूकता की कमी है।


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