सम्पादकीय

सियासत में संतुलन साध चलते स्टालिन

Rani Sahu
2 Aug 2022 6:52 AM GMT
सियासत में संतुलन साध चलते स्टालिन
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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के इस बयान से विवाद खड़ा हो गया है कि ‘एक भाषा, एक धर्म और एक संस्कृति को थोपने की कोशिश करने वाले लोग देश के दुश्मन हैं

एस श्रीनिवासन,

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के इस बयान से विवाद खड़ा हो गया है कि 'एक भाषा, एक धर्म और एक संस्कृति को थोपने की कोशिश करने वाले लोग देश के दुश्मन हैं और ऐसी बुरी ताकतों के लिए अपने देश में कोई जगह नहीं है।' यह बयान उन्होंने शनिवार को दिया था। हालांकि, इसमें उन्होंने किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लिया, लेकिन यह साफ था कि वह भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर हमला कर रहे थे।
मुख्यमंत्री आखिर ऐसा क्यों कह रहे हैं, जबकि इस बयान से एक दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करते हुए उन्होंने अपनी ऐसी किसी भावना का इजहार नहीं किया? अलबत्ता, तब वह कहीं अधिक मित्रवत व्यवहार करते दिखे थे। उन्होंने न सिर्फ प्रधानमंत्री की खुद अगवानी की थी, बल्कि पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के विपरीत सभी प्रोटोकॉल का पालन भी किया था।
प्रधानमंत्री मोदी 44वें शतरंज ओलंपियाड का उद्घाटन करने के लिए चेन्नई आए थे, और उन्होंने भी स्टालिन के साथ समान मित्रता दिखाई था। उन्होंने यह भी कहा था कि इतने कम समय में मामल्लापुरम में ओलंपियाड आयोजित करने के वास्ते अच्छी व्यवस्था करने में राज्य की सरकार कामयाब रही। उन्होंने तमिल संस्कृति की भी खुलकर तारीफ की थी, जिसके साथ शतरंज काफी करीब से जुड़ा है। उन्होंने खासतौर पर इसका उल्लेख किया था कि राज्य में इस खेल की वाकई पूजा की जाती है और यहां इस खेल से जुड़ा एक मंदिर भी है।
वास्तव में, तिरुवरूर जिले के तिरुपूवनूर गांव में चतुरंग वल्लभनाथर का एक मंदिर है, जहां शतरंज के देवता और उनकी पत्नी राजराजेश्वरी स्थापित हैं। किंवदंती है कि भगवान शिव तपस्वी के वेश में आए थे और 'सतुरंगम' (शतरंज के लिए तमिल में कहा जाने वाला शब्द) जीतने के बाद राजराजेश्वरी से शादी की थी, जो भगवान पार्वती का अवतार हैं। दिलचस्प यह कि कई विदेशी मेहमानों, यहां तक कि कई शतरंज खिलाड़ियों ने भी प्रतियोगिता में उतरने से पहले इस मंदिर में प्रार्थना की।
स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में कोई विवादास्पद बयान नहीं दिया। उनकी आपसी गर्मजोशी से तो लोगों में यह बतकही भी शुरू हो गई कि क्या स्टालिन केंद्र के साथ नजदीकी बढ़ाने की बुनियाद तैयार कर रहे हैं? ऐसा इसलिए, क्योंकि भाजपा राज्य में अपना आधार मजबूत करना चाहती है और उनकी वर्तमान सहयोगी अन्नाद्रमुक उसकी मदद करने की स्थिति में फिलहाल नहीं दिख रही है।
दिलचस्प है कि स्टालिन ने सिर्फ भाषा नीति पर केंद्र को नहीं घेरा। उन्होंने यह भी कहा कि वह विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करके और पत्रकारों को गिरफ्तार करके 'निरंकुश' व्यवहार का प्रदर्शन कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह देश के स्वतंत्रता सेनानियों को 'धोखा' देने जैसा है। उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन की भी तारीफ की और कहा कि तमिलनाडु में द्रमुक व माकपा के बीच गठजोड़ वैचारिक आधार पर बना है, न कि महज चुनावी जीत के लिए।
आखिर स्टालिन ने इतना कड़ा रुख क्यों अपनाया? इसके कई कारण दिखते हैं। सबसे पहली वजह तो यही जान पड़ती है कि वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के विपरीत वह केंद्र की राजनीति में जाने को इच्छुक नहीं हैं। इसके बजाय वह खुद को राज्य तक सीमित रखना चाहते हैं और केंद्र के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध के हिमायती हैं, ताकि राज्य के विकास में सुधार की जब कभी दरकार हो, वह उसकी मदद ले सकें
दूसरी बात, वह शायद यह साफ करना चाहते थे कि वैचारिक रूप से द्रमुक भाजपा के खिलाफ है। उनके लिए यह स्पष्ट करना कम से कम दो वजहों से जरूरी है। एक, इस अफवाह को थामने के लिए कि वह भाजपा के साथ गठबंधन बना रहे हैं। और दूसरी, अपने कार्यकर्ताओं को यह बताने के लिए कि उन्हें भगवा पार्टी को आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए। यह खास तौर से इसलिए महत्वपूर्ण संदेश है, क्योंकि द्रमुक कार्यकर्ताओं के एक वर्ग में निराशा है कि उनकी पार्टी भाजपा के करीब जा रही है। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि भाजपा की निकटता संबंधी बनती आम धारणा द्रमुक पार्टी के लिए महंगी साबित हो सकती है।
तीसरी बात, वामपंथी दलों के साथ द्रमुक पार्टी अपना गठजोड़ बनाए रखेगी और इसलिए वह सेक्युलरवादियों के पक्ष में ही रहेगी। बेशक, राज्य में वामपंथी काफी कम हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के विपरीत वामपंथियों के साथ रहना उनके लिए कहीं अधिक सुविधाजनक है।
चौथी, भाषा शायद उनके लिए सबसे सुविधाजनक मुद्दा है, क्योंकि यह हिंदुत्ववादी ताकतों के खिलाफ द्रमुक को मजबूत बनाने की दिशा में कारगर साबित हो सकता है। यह पार्टी की स्थानीय पहचान के लिए भी मुफीद है। फिलवक्त, स्टालिन अच्छा संतुलन बनाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि भाजपा राज्य में राजनीतिक विमर्श पर हावी होने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। स्टालिन एक कुशल राजनेता हैं और वह जानते हैं कि भाजपा के साथ किसी भी तरह के गठबंधन का नतीजा द्रमुक के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, जैसा कि महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ हुआ और बिहार में कुछ हद तक जनता दल (यूनाइटेड) के साथ। इसके विपरीत तथ्य यह भी है कि उसका किसी भी तरह का उग्र विरोध केंद्रीय एजेंसियों की दौड़ आमंत्रण देना है, जो द्रमुक के लिए मुसीबतें बढ़ा सकता है, जैसा कि कोलकाता में हुआ।
आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण बात! द्रमुक पार्टी अच्छी तरह से जानती है कि नरेंद्र मोदी एक लोकप्रिय नेता हैं और तमिलनाडु में भी उनके प्रशंसकों की संख्या कम नहीं। इसीलिए प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत हमले करने के बजाय स्टालिन मुद्दा आधारित राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। द्रमुक के लिए वह इसे सधा हुआ सियासी कदम मानते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सोर्स - Hindustan Opinion Column


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