सम्पादकीय

श्रीलंकाः राजनीतिक स्थिरता जरूरी

Subhi
11 July 2022 5:52 AM GMT
श्रीलंकाः राजनीतिक स्थिरता जरूरी
x
पड़ोसी देश श्रीलंका से आ रही खबरें विचलित करने वाली हैं। पूरा देश अराजकता की चपेट में आ गया है। शनिवार को आखिर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे दोनों ने इस्तीफे की पेशकश कर दी

नवभारत टाइम्स: पड़ोसी देश श्रीलंका से आ रही खबरें विचलित करने वाली हैं। पूरा देश अराजकता की चपेट में आ गया है। शनिवार को आखिर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे दोनों ने इस्तीफे की पेशकश कर दी, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। शनिवार को ही प्रदर्शनकारियों की भीड़ जिस तरह से राष्ट्रपति आवास में घुस गई और हजारों की संख्या में लोग अंदर घूमते, स्विमिंग पूल में छलागें लगाते, पलंग पर बैठते, मस्ती करते दिखे, वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि लोगों का असंतोष सारी सीमाएं पार कर चुका है। सुरक्षा बल भीड़ को नियंत्रित करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। जाहिर है, भीड़ के आने से पहले राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे अपना आवास छोड़कर कहीं और निकल चुके थे। अज्ञात स्थान से ही उन्होंने स्पीकर को सूचित किया कि वह 13 जुलाई को इस्तीफा दे देंगे। माना जा रहा है कि यह तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि लोगों का गुस्सा इस बीच थोड़ा कम हो और सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण संभव हो सके। दो महीने पहले महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री बने रानिल विक्रमसिंघे के खिलाफ भी जनता में रोष कम नहीं है। शनिवार को उनके निजी आवास में भी आग लगा दी गई। उनके बारे में यह धारणा बनी है कि वह राष्ट्रपति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

जाहिर है, बरसों से सत्ता में बैठे नेताओं के प्रति लोगों का अविश्वास चरम पर पहुंचा हुआ है। खासकर राजपक्षे परिवार उनके निशाने पर है। आश्चर्य की बात यह है कि राजपक्षे परिवार लोगों की भावनाओं से इस कदर अनजान बना रहा। उसके मंत्रिमंडल में शामिल सभी सदस्य, फिर प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और आखिर में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे- पद सबने छोड़ा, लेकिन फैसले में इतनी देर कर दी कि उसका जो कुछ पॉजिटिव असर हो सकता था, नहीं हुआ। लोगों का गुस्सा जस का तस बना रहा। हालांकि श्रीलंका आर्थिक दिवालिएपन के जिस भंवर में फंस चुका है, उससे निकलने की कोई आसान राह नहीं है। न केवल इसमें वक्त लगेगा बल्कि कई कठिन, अलोकप्रिय फैसले भी करने पड़ेंगे। लेकिन ऐसे फैसले वही सरकार ले सकती है, जिसे जनता का विश्वास हासिल हो। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के इस्तीफे की घोषणा के बाद माना जा सकता है कि जन असंतोष का सबसे बड़ा स्रोत समाप्त हो गया। अब अगर अंतरिम राष्ट्रीय सरकार बनाकर उसकी देखरेख में अविलंब चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी जाए तो संभव है कि सड़कों पर विरोध प्रदर्शन की तीव्रता में कमी आए और लोग बेहतर नेतृत्व के चयन पर ध्यान दें। अच्छी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी वैश्विक एजेंसियां श्रीलंका के लिए राहत पैकेज का फॉर्म्युला तैयार कर चुकी हैं। इस मुश्किल घड़ी में भारत भी श्रीलंका के साथ खड़ा है। वह पहले से ही पड़ोसी देश को हर संभव मदद मुहैया करा रहा है। श्रीलंका में जरूरत है राजनीतिक स्थिरता की, तभी आर्थिक संकट से उबरने की प्रक्रिया शुरू होगी।


Next Story