सम्पादकीय

संकट में श्रीलंका: दुनिया के साथ-साथ देश के कई राज्यों को सबक सीखने की जरूरत

Gulabi Jagat
9 July 2022 4:55 PM GMT
संकट में श्रीलंका: दुनिया के साथ-साथ देश के कई राज्यों को सबक सीखने की जरूरत
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संकट में श्रीलंका
अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने इस्तीफा देने की पेशकश कर सर्वदलीय सरकार के गठन की जो पहल की, उससे संकट का समाधान होने के आसार कम ही हैं। इसलिए कम हैं, क्योंकि ऐसी कोई पहल बहुत पहले और विशेष रूप से तब की जानी चाहिए थी, जब यह स्पष्ट हो गया था कि गोटाबाया राजपक्षे सरकार की नीतियों ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया है और श्रीलंका दिवालिया होने वाला है। बेलगाम महंगाई, पेट्रोल-डीजल की किल्लत के साथ उनके आसमान छूते दाम और बिजली संकट के साथ दवाइयों के अभाव ने श्रीलंका की जनता को बुरी तरह त्रस्त कर रखा था, लेकिन राष्ट्रपति राजपक्षे कोरे आश्वासन देने तक सीमित रहे।
वह समस्याओं का ठोस समाधान खोजने के बजाय सत्ता पर काबिज अपने कुनबे को बचाने में जुटे रहे। जब लोगों का आक्रोश और बढ़ा तो उन्होंने आपातकाल का सहारा लेना बेहतर समझा। इससे बात नहीं बनी तो उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को सत्ता से बाहर किया, लेकिन खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को संभालने और परेशान जनता का भरोसा जीतने के लिए जैसे कदम उठाने आवश्यक थे, उससे बचते रहे। इसी कारण भारत और कुछ अन्य देशों की मदद के बाद भी हालात बिगड़ते गए। लगातार बिगड़ते हालात के कारण ही आक्रोशित जनता ने राष्ट्रपति भवन में धावा बोल दिया।
पता नहीं राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका में ही हैं या फिर देश छोड़कर चले गए, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह प्रबल बहुमत के साथ सत्ता में आए थे। सत्ता में आते ही उन्होंने ऐसी नीतियों पर चलना शुरू कर दिया, जो शासन के बुनियादी सिद्धांतों के साथ-साथ आर्थिक नियमों के भी विरुद्ध थीं। उन्होंने एक खराब काम यह भी किया कि अपने परिवार के अधिकतर सदस्यों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया। वह खुद राष्ट्रपति थे तो उनके भाई प्रधानमंत्री। एक समय राजपक्षे परिवार के कम से कम दस सदस्य सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे।
साफ है कि वह देशसेवा के नाम पर परिवार की सेवा में लगे हुए थे। रही-सही कसर उनकी लोकलुभावन नीतियों ने पूरी कर दी। उन्होंने एक ऐसे समय लोकलुभावन नीतियों पर जोर दिया, जब कोविड महामारी के कारण अर्थव्यवस्था संकट में थी और विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम होता जा रहा था। श्रीलंका इस समय दोहरे संकट में है। एक ओर वह राजनीतिक अस्थिरता से त्रस्त है, वहीं दूसरी ओर गहन आर्थिक संकट से। श्रीलंका में जो कुछ हो रहा है, उससे दुनिया के साथ-साथ देश के उन राज्यों को भी सबक सीखने की जरूरत है, जो आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं।

दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

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